राय

प्रियंका अगर बनारस से चुनाव लड़ गई होती तो मोदी हार गए होते- राहुल गांधी। तो क्या ये कांग्रेस की रणनीतिक भूल थी?

प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड्गे को चुनाव नहीं लड़ाना, कन्हैया कुमार को बिहार से नहीं लड़ाना, प्रियंका का झारखंड के महत्वपूर्ण क्षेत्र में कोई प्रोग्राम का नहीं होना, इंडिया गठबंधन की कम सीटों का वजह बना

“मेरी बहन प्रियंका गांधी अगर बनारस से चुनाव लड़ गई होती तो नरेंद्र मोदी कम से कम दो लाख वोट से चुनाव हार गए होते।” – राहुल गांधी ने रायबरेली में कहा।

लोकसभा चुनाव को भले आम चुनाव भी कहा जाता हो, पर सच्चाई ये है कि 2024 का लोकसभा चुनाव भारत के इतिहास में एक खास चुनाव था। और अगर सत्ताधारी भाजपा, उसके सहयोगी और गोदी मीडिया (एक्ज़िट पोल को भी शामिल कर लीजिये) को छोड़ दें तो, विपक्ष की लगभग सभी पार्टियों और सवतंत्र मीडिया सबको ये पता था कि भाजपा को बहुमत नहीं आने वाली और तब एक-एक सीट का महत्व बढ़ जाएगा। फिर भी इंडिया गठबंधन जिसमें खासकर कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा की अपनी रणनीति में कई कमियाँ रहीं, आइए राहुल गांधी के बयान के बहाने उसे समझते हैं।

लेकिन मैं यहाँ ये भी बता दूँ कि राहुल गांधी ने इस बात के लिए भी ये बयान दिया होगा कि कई राजनीतिज्ञ विश्लेषक ये मानते हैं कि भाई अपने बहन को चुनाव नहीं लड़ाना चाहते, क्योंकि इससे दोनों में बेहतर कौन वाली कवायद, खासकर गोदी मीडिया शुरू कर देगी। और ये बयान दर्शाता है कि प्रियंका गांधी खुद से चुनाव नहीं लड़ीं।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की बातों को सीधे तरीके से लेते हुए ये पूरा विश्लेषण कर रहा हूँ।

प्रियंका और मल्लिकार्जुन को चुनाव लड़ने नहीं उतारना

बनारस में कांग्रेस के अजय राय से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरुआत में पिछड़े और फिर मात्र 1.5 लाख वोटों से हारे तो लगा कि प्रधानमंत्री हार सकते थे। और अब राहुल गांधी का बयान आया है इस पर। कांग्रेस को हर हाल में प्रियंका गांधी को चुनाव लड़वाना चाहिए था। बड़ा नेता जब किसी क्षेत्र को चुनता है चुनाव लड़ने के लिए तो वहाँ के और आसपास के कार्यकर्ताओं में जोश आता है। प्रियंका अगर वाराणसी से लड़तीं तो नज़ारा कुछ और होता। बीजेपी का पूरा तंत्र वहाँ लग जाता और इसका फायदा कांग्रेस इंडिया गठबंधन को आसपास के कई और सीटों पर होता। इस बार और ज्यादा फायदा होता क्योंकि समाजवादी पार्टी पूरी ताकत से मैदान में थी। और अगर चुनाव प्रियंका हार भी जातीं तो भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को इसका लाभ मिलना तय था। जनचौक न्यूज़ पोर्टल ने लिखा भी था कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं।

कांग्रेस ने सिर्फ प्रियंका को मैदान से दूर नहीं रखा बल्कि पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे भी कर्नाटक से चुनाव लड़ सकते थे और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी पार्टी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई, वहाँ पार्टी अध्यक्ष के चुनाव लड़ने से जरूर फर्क पड़ता।

बंगाल में टीएमसी से गठबंधन नहीं होना

पश्चिम बंगाल में भले तृणमूल को 29 सीटें मिली और बीजेपी को 12। पर विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कांग्रेस और टीएमसी मिलकर चुनाव लड़ती तो भाजपा 5 पर सिमट जाती। 29 सीटों के लिए ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी को बहुत मेहनत करनी पड़ी और अगर, संदेशखाली मामले पर परिस्थितियाँ नहीं बदलती, टीचर बहाली मामले में सुप्रीमकोर्ट, हाइ कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाता तो ये रिज़ल्ट मुश्किल था।

बिहार का हाल

कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से नहीं लड़ा कर, जहाँ से कन्हैया 2019 में चुनाव लड़े थे, उसे दिल्ली से लड़ा कर सबको अचंभित कर दिया। कन्हैया बेगूसराय से हैं और इस बार वो चुनाव जीत सकते थे, पर जैसी चर्चा है कि लालू प्रसाद ये नहीं चाहते थे कि तेजस्वी यादव के अलावा बिहार में कोई दूसरा नौजवान चेहरा राजनीति में रहे इसलिए कन्हैया को राज्य से बाहर भेजा गया।

तेजस्वी ने भी जब प्रचार चरम पर था तो अपना पूरा एक हफ्ता पप्पू यादव जो कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे थे उसके खिलाफ लगाया। जिससे पार्टी को दूसरे सीटों पर खासकर जहाँ कम मार्जिन से जीत-हार हुई है, वहाँ नुकसान हुआ।

झारखंड की कहानी

झारखंड में तो माजरा ही अलग रहा। इंडिया गठबंधन तो बना, पर ये स्टेज तक रहा, ज़मीन में नहीं दिखा। झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस-आरजेडी जो सत्ता में है, उनके कई नेतागण अपने-अपने इलाके से इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार को लीड भी नहीं करवा सके।

और ज्यादातर लोग लोकसभा से ज्यादा विधानसभा उपचुनाव जिसमें हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन चुनाव लड़ रही थीं के लिए लगे हुए थे। हालांकि कल्पना सोरेन 26000 वोटों से जीती पर ये मार्जिन जितने लोग उनके लिए लगे थे यहाँ तक कि मुख्यमंत्री चंपई सोरेन भी कई बार आए, के हिसाब से कम रहा। कल्पना सोरेन तो शुरुआती चरणों में पिछड़ी भी। सबसे खास बात, कल्पना सोरेन को कुल मत मिले 1.8 लाख और उसी गाण्डेय विधानसभा क्षेत्र से इंडिया गठबंधन के लोकसभा उम्मीदवार विनोद सिंह को मिले मात्र 82000 वोट्स।

कोडरमा लोकसभा का रिज़ल्ट ये बताता है कि गाण्डेय विधानसभा क्षेत्र जहां से झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम उपाध्यक्ष की पत्नी चुनाव मैदान में थी पर वहाँ से भी इंडिया गठबंधन को लीड नहीं मिली|

वहीं, कोडरमा लोकसभा में प्रधानमंत्री के प्रोग्राम के बाद राहुल या प्रियंका गाँधी के प्रोग्राम का होना बहुत जरुरी था, खास कर अगर प्रियंका को जेएमएम, कल्पना सोरेन के लिए लाती तो इससे गाण्डेय, कोडरमा और गिरिडीह के लोकसभा चुनाव में फर्क पड़ता। गिरिडीह में जेएमएम के मथुरा महतो, 80000 वोटों से हार गए। जेएमएम का सारा ध्यान  सिर्फ एक उपचुनाव में रहने के कारण इंडिया गठबंधन उत्तरी छोटानागपुर की सभी सीटों के साथ ही गोड्डा, रांची और जमशेदपुर की महत्वपूर्व क्षेत्रों से भी हार गई।

झारखंड में 6 महीने के अंदर चुनाव है और अगर इंडिया गठबंधन पहले सही रणनीति और फिर ज़मीन पर एकजुट होकर नहीं लड़ती तो कम से कम उत्तरी छोटानागपुर में उनके लिए बहुत मुश्किल होने वाली है। आरक्षित सीटों पर तो फिर भी इंडिया गठबंधन ने बाजी मर ली भाजपा से।

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He brings over two decades of journalism experience, having worked with The Telegraph, IANS, DNA, and China Daily. His bylines have also appeared in Al Jazeera, Scroll, BOOM Live, and Rediff, among others. The Managing Editor of eNewsroom has distinct profiles of working from four Indian states- Jharkhand, Madhya Pradesh, Rajasthan and Bengal, as well as from China. He loves doing human interest, political and environment related stories.

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