कारोबारझारखंड

इंफोसिस से एलएंडटी तक: लंबी ड्यूटी का आह्वान और गिरिडीह के मज़दूरों का हाल

आज 70 घंटे काम करने की बहस जोरों पर है, गिरिडीह के मजदूर अपनी 12 घंटे की शिफ्टों में लंबे समय से काम करने पर मजबूर हैं। स्पंज आयरन फैक्ट्रियों से होने वाला प्रदूषण एक समानांतर संकट बन चुका है, जिससे विरोध और न्याय की मांगें उठ रही हैं। राजनीतिक महत्व के बावजूद, यह ज़िला श्रमिक कानूनों और पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी का एक बड़ा उदाहरण बना हुआ है

कोलकाता/गिरिडीह: इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति के 70 घंटे के वर्क वीक के सुझाव के बाद, एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने एक बोर्ड मीटिंग के दौरान 90 घंटे के वर्क वीक का प्रस्ताव रखा, जिसे पूरे मुल्क में सख़्त आलोचना का सामना करना पड़ा है। बॉलीवुड अदाकारा दीपिका पादुकोण ने भी एलएंडटी के चेयरमैन के बयान की निंदा करते हुए मानसिक सेहत के मुद्दे को उजागर किया और #MentalHealthMatters का इस्तेमाल किया। मशहूर टेनिस खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा ने भी सुब्रह्मण्यन के बयान को औरतों के खिलाफ़ बताया और इसे मिज़ाजपरस्त (misogynistic) करार दिया।

सीपीआईएमएल के सांसद राजा राम सिंह, जो लेबर, रोजगार और स्किल डेवलपमेंट पर स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य भी हैं, ने लेबर मिनिस्ट्री को खत लिखकर एलएंडटी, इंफोसिस और दूसरी कंपनियों की मज़दूर विरोधी बयानबाज़ी और अमल के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने लेबर कानूनों के सख़्त पालन की जरूरत पर ज़ोर दिया ताकि मुलाज़िमीन को 8 घंटे से ज्यादा काम करने पर मजबूर न किया जाए।

गिरिडीह: जहां 72 घंटे का वर्क वीक आम बात है

जब मुल्कभर में लंबे वर्किंग आवर्स के खिलाफ़ आवाज़ें उठ रही हैं, गिरिडीह, जो झारखंड का एक शहर है, यहां पिछले एक दशक से 72 घंटे का वर्क वीक आम है। यहां की औद्योगिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लोगों ने अपनी ज़िंदगी और काम के बीच का संतुलन के माएने खत्म हो चुके हैं।

क्रांतिकारी युवा संगठन के सदस्य बसंत तांती ने ई-न्यूजरूम को बताया, “यहां 12 घंटे की शिफ्ट अब आम बात हो गई है, खासकर मज़दूरों और मुलाज़िमों के लिए। मुझे ऐसे लोग भी मालूम हैं, जिन्होंने महीनों तक छुट्टी नहीं ली। अगर कोई छुट्टी लेता है, तो उसकी दिहाड़ी काट ली जाती है।”

बसंत ने आगे बताया, “कंपनियां ठेकेदारों के ज़रिए मज़दूरों को भर्ती करती हैं। यहां फैक्ट्रियां तीन की बजाय दो शिफ्ट में चलती हैं, जिसकी वजह से ज्यादातर वर्कर्स को 12 घंटे की शिफ्ट करनी पड़ती है। लेकिन उन्हें इस एक्स्ट्रा टाइम का सही मेहनताना नहीं दिया जाता।”

हालांकि, इन फैक्ट्रियों ने बड़े पैमाने पर रोज़गार दिया है, जिसकी वजह से लंबे वर्किंग आवर्स का मुद्दा अब तक बड़े स्तर पर तवज्जो नहीं पा सका है।

जब इस बारे में लेबर सुपरिटेंडेंट रवि शंकर से बात की गई, तो उन्होंने कहा, “12 घंटे का काम करना जायज़ नहीं है और कंपनियां शायद 4 घंटे का ओवरटाइम दे रही होंगी।” मगर जब उन्हें बताया गया कि मज़दूरों को बिना सही ओवरटाइम पे के 12 घंटे काम करने पर मजबूर किया जा रहा है, तो उन्होंने इस मामले को दूसरे अफसर के हवाले कर दिया, जो तब तक उपलब्ध नहीं थे।

प्रदूषण (Pollution): दूसरा बड़ा मसला

गिरिडीह में लंबे वर्किंग आवर्स के मुकाबले स्पॉन्ज आयरन फैक्ट्रियों से फैलने वाली आलूदगी ने ज्यादा ग़ुस्सा पैदा किया है। यहां के बाशिंदों ने इन फैक्ट्रियों से बढ़ते वायु प्रदूषण और माहौल पर पड़ने वाले खतरनाक असर के खिलाफ़ बार-बार एहतजाज किया है।

17 दिसंबर को, क्रांतिकारी युवा संगठन के लोगों ने डिप्टी कमिश्नर नमन प्रियेश लकड़ा से मुलाक़ात की और उन्हें स्पॉन्ज आयरन फैक्ट्रियों को बंद करने का अल्टीमेटम दिया अगर प्रदूषण के स्तर में कमी नहीं की गई। मोहानपुर, श्रीरामपुर और उदनाबाद के गांववालों ने यहां तक कि लोकसभा चुनाव के बायकॉट का भी एलान कर दिया। मगर प्रशासन के दखल के बाद, गांववालों ने वोट देने की हामी भरी।

गिरिडीह में तकरीबन 200 से ज्यादा छोटे और मध्यम दर्जे के कारखाने हैं, जिनमें स्पॉन्ज आयरन फैक्ट्रियां, रोलिंग मिल्स, चारकोल फैक्ट्रियां, रस्सी फैक्ट्रियां, माइका फैक्ट्रियां, और चावल और आटा मिल्स शामिल हैं। इन फैक्ट्रियों में कम से कम 30,000 वर्कर्स काम कर रहे हैं।

बसंत ने कहा, “दिलचस्प बात यह है कि बंगाल में इन्ही बड़ी कंपनियों के ब्रांच में 8 घंटे की शिफ्ट चलती हैं और मुलाज़िमों को छुट्टियां, बोनस और पेंशन जैसे फायदे देती हैं। मगर गिरिडीह में कंपनियां खुल्लम-खुल्ला इन कानूनों को तोड़ती हैं, और न अफसरान और न ही सियासतदान इस मसले पर ध्यान देते हैं।”

पायनियर्स और क्रांतिकारियों की ज़मीन

1980 के पहले, गिरिडीह को सेहत के लिए मुफ़ीद रिज़ॉर्ट के तौर पर जाना जाता था। यहां कई बंगाली अज़ीम शख्सियतों ने काम किया, जिनमें मशहूर साइंटिस्ट सर जेसी बोस और स्टैटिस्टिशियन पीसी महालानोबिस शामिल हैं। जेसी बोस ने यहीं पर अपने आविष्कार ‘क्रेस्कोग्राफ’ पर काम किया और यहीं आखिरी सांस ली। वहीं, महालानोबिस ने कोलकाता के बाद दूसरा भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute) गिरिडीह में स्थापित किया।

नोबेल इनाम से नवाजे गए रवींद्रनाथ टैगोर ने भी इस शहर का दौरा किया और महालानोबिस के घर में ठहरे। वह घर, जिसके हॉल्स का नाम टैगोर की मशहूर किताब ‘गीतांजलि’ के चैप्टर्स पर रखा गया है, अब एक महिला कॉलेज में तब्दील हो चुका है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन ने भी गिरिडीह में अपनी क्रांतिकारी मुहिम चलाई और जमींदारी और महाजनी सिस्टम के खिलाफ़ बगावत की।

सियासी एहमियत का बावजूद मज़दूरों के हक़ की अनदेखी

गिरिडीह झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का वतन है। यह विधानसभा सीट अब मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अहलिया कल्पना सोरेन के पास है। वहीं मंत्री सुधिव्य कुमार सोनू का भी ताल्लुक इसी इलाके से है।

गिरिडीह जिले के तहत कई अहम सियासी चेहरे रहे हैं, लेकिन यहां के मज़दूर अब भी अमानवीय हालात में काम करने पर मजबूर हैं। वहीं उनके घरवालों को आलूदगी और गंदे पानी की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

इश्तिहार पर खरबों, मगर वर्कर्स को बोनस नहीं

गिरिडीह की लोहे और इस्पात की कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स की तिजारत के लिए देशभर में खरबों रुपये खर्च करती हैं। मगर इन्हीं कंपनियों को अपने वर्कर्स के बुनियादी हक़ देने में कोताही करते देखा गया है।

“दुर्गा पूजा और होली पर बोनस सिर्फ़ चुनिंदा मुलाज़िमों को दिया जाता है,” बसंत ने बताया।

ई-न्यूजरूम ने डिप्टी कमिश्नर नमन प्रियेश लकड़ा से 12 घंटे के वर्क वीक और प्रदूषण के मुद्दों पर बातचीत के लिए राब्ता किया। जवाब का अभी इंतजार है। अब देखना यह है कि हुकूमत इन अहम मसलों को हल करने के लिए क्या कदम उठाती है।

 

ये इंग्लिश में प्रकाशित रिपोर्ट का अनुवाद है।

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He brings over two decades of journalism experience, having worked with The Telegraph, IANS, DNA, and China Daily. His bylines have also appeared in Al Jazeera, Scroll, BOOM Live, and Rediff, among others. The Managing Editor of eNewsroom has distinct profiles of working from four Indian states- Jharkhand, Madhya Pradesh, Rajasthan and Bengal, as well as from China. He loves doing human interest, political and environment related stories.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button