झारखंड

क्या कहती है, झारखंड भाजपा के बारे में दो दिनों की ये तस्वीरें?

अमित शाह से चंपई सोरेन की मुलाकात और पीएम मोदी से बाबूलाल मरांडी की मीटिंग को लेकर झारखंड में अटकलों का बाजार गर्म। भाजपा क्या खेमों में बंटी?

रांची/कोलकाता: तो आखिरकार चंपई सोरेन भारतीय जनता पार्टी ‘ही’ जॉइन करेंगे। पहली बार जब पूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली से चश्मा बनाकर लौटे तो चंपई ने कहा था कि अब वो नई पार्टी बनाएँगे, पर एक हफ्ता भी नहीं हुआ और वे फिर से देश की राजधानी पहुँच गए, गृह मंत्री अमित शाह से मिलने। उसके बाद झारखंड के भाजपा प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा का 26 अगस्त को ट्वीट आया कि चंपई सोरेन 30 अगस्त को उनकी पार्टी जॉइन करेंगे। ठीक अगले दिन, प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने दिल्ली पहुंच गए।

दो दिनों में दिल्ली जाकर भाजपा के दो शीर्ष नेताओं से बाबूलाल की अलग-अलग मुलाकातों की टाइमिंग को लेकर झारखंड में कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। क्या चंपई सोरेन के भगवा ब्रिगेड में आने से पार्टी के नेता खुश नहीं हैं और पार्टी दो धड़ों में बंट गई है?

हालांकि, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने बुधवार को कहा कि उनकी प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात में झारखंड को लेकर सिर्फ राजनीतिक चर्चा हुई।

रांची के पत्रकार आनंद दत्ता ने ईन्यूज़रूम को इस बाबत बताया, “सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल ही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी भी चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से असहज महसूस कर रहे हैं। इन तीनों ने अपनी तरफ से चंपई सोरेन को पार्टी में न लेने और सरायकेला विधायक के पार्टी बनाने पर उन्हें बाहर से खुलकर समर्थन देने की बात कही थी।”

“चंपई सोरेन के भाजपा में आने की घोषणा के ठीक दूसरे दिन प्रधानमंत्री से मिलने पर बाबूलाल ने जरूर अपनी पीड़ा बताई होगी,” दत्ता ने आगे कहा।

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक अमित राजा, जो बाबूलाल के गृह जिले से आते हैं, बताते हैं, “लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद पार्टी के केंद्रीय नेता, बाबूलाल के हाथों सब कुछ छोड़ना नहीं चाहते। पार्टी ने विधानसभा में बाबूलाल के अनुसार टिकट वितरण किया था। बहुत सारे जेवीएम से आए नेताओं को लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में टिकट बाबूलाल ने दिलवाया था, पर चुनाव में भाजपा सभी सुरक्षित सीटें हार गई थी।”

“वैसे बाबूलाल की तरह शिवराज सिंह चौहान भी आदिवासी राजनीति की समझ रखते हैं, एक मुख्यमंत्री बनने से पहले वो छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच काम कर चुके हैं, इसलिए वो जानते हैं कि कौनसा आदिवासी नेतृत्व पार्टी के लिए कितना फायेदेमंद साबित होगा,” अमित ने आगे कहा।

दत्ता ने अमित के बात को और विस्तार दी, “जिस तरह चंपई सोरेन को लेकर भाजपा में चल रहा है, उससे ये भी लगता है कि शिवराज सिंह चौहान, जो पहले चंपई सोरेन को अमित शाह से मिलवाना चाहते थे, वे भी नहीं चाहते कि चंपई भाजपा में आएं। इसलिए वे इस बार अमित शाह के पास चंपई सोरेन को लेकर नहीं गए।”

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