Jharkhandईन्यूज़रूम इंडिया

झारखंड पारा-वेट्स ‘कोविड योद्धाओं’ को 10 महीने से मजदूरी नहीं

पशुपालन मंत्री के पैतृक जिले देवघर के तीन पारा-वेट्स ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस बारे में पत्र लिखा है

रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड के लोगों के रोजगार के मुद्दे पर समय-समय पर चिंता व्यक्त की है, लेकिन अधिकारी उनका उल्टा करते हैं।

तीन पारा-वेट्स (कोविड योद्धाओं) जो झारखंड के पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री बादल पत्रलेख के जिले, देवघर से आते हैं, उन्हें अब दस महीने से मजदूरी नहीं मिली है। इसमें मार्च 2020 से दिसंबर 2020 तक लॉकडाउन अवधि शामिल है।

देवघर जिले के विभिन्न प्रखंडों में प्रशिक्षित पारा-वेट्स – अनीस हाशमी, गुणाधर दास और पूरन कुमार राउत कोविड योद्धाओं की तरह पशुपालन अस्पतालों में तैनात रहें और काम किया।

“मैं सितंबर 2019 में पारा-वेट्स के रूप में शामिल हुआ था और सितंबर से फरवरी 2020 तक (छह महीने की) मजदूरी मुझे मिली है। लेकिन मार्च के बाद से, जो कोविड के वजह से लॉकडाउन अवधि थी, की हमें हमारी मजदूरी नहीं दी गई है। हमने अपने और अपने परिवार के जीवन को खतरे में डाल कर लॉकडाउन के दौरान अपना कर्तव्य निभाया। लेकिन हमारे रोज़गार की सराहना करने के बजाय, हमारी मजदूरी ही रोक दी गई है।” हाशमी ने ईन्यूज़रूम को बताया।

अब तीनों पारा-वेट्स ने मुख्यमंत्री, झारखंड, पशुपालन मंत्री बादल पत्रलेख और सचिव, पशुपालन मंत्री को पत्र लिखा है। उन्होंने संयुक्त याचिका में अपने ज्वाइनिंग लेटर भी संलग्न किए।

“मुख्यमंत्री (हेमंत सोरेन) रोजगार देने की बात करते हैं, लेकिन जिले के अधिकारी हमारे साथ अलग ही व्यवहार कर रहे हैं। वे हमें अपनी नौकरी से निकालना चाहते हैं। इन सभी अस्पतालों में कोई पशु चिकित्सा कर्मचारी या सहायक नहीं है और इस तरह के केंद्र में हमारे जैसे पारा-वेट्स की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।”

झारखंड कोविड योद्धाओं पारा-वेट्स पशुपालन विभाग

जबकि गुणाधर दास ने कहा, “जब से नए जिला पशुपालन अधिकारी डॉ संजय कुमार आए, हमारी मजदूरी रोक दी गई है। हमें यह भी जानकारी मिली है कि हमारे वेतन का भुगतान करने के लिए आवंटन भी है। इसके बावजूद हमें भुगतान नहीं किया जा रहा है।”

अपने पत्रों में, तीन पारा-वेट्स (कोविड योद्धाओं) ने उल्लेख किया कि उन्होंने जिला पशु चिकित्सा अधिकारी को अपनी मजदूरी जारी करने के लिए लिखा है और अनुरोध किया है, लेकिन अधिकारी ने कार्रवाई नहीं की।

मजदूरी का भुगतान न करने के कारण, इन सभी परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है, और इस बीच 21 मार्च को, राउत ने अपने पिता को भी खो दिया।

“मेरे पिता का मेदांता, रांची में इलाज चल रहा था, लेकिन पैसे की कमी के कारण मुझे उन्हें मधुपुर लाना पड़ा। यहाँ उनका इलाज सही से नहीं हुआ और पिता का निधन हो गया,” राउत ने उदासी के साथ कहा।

नैन्सी सहाय, निदेशक, पशुपालन विभाग ने ईन्यूज़रूम को बताया कि उसने एक रिपोर्ट मांगी है, फिर आगे कहा, “जिला पशु चिकित्सा अधिकारी देवघर ने मुझे मौखिक तौर पे सूचित किया है कि दैनिक वेतन पर इन पारा-वेट्स की नियुक्तियां कानूनी नहीं हैं।”

सहाय ने यह भी उल्लेख किया कि उनके पास ऐसे दैनिक मजदूरी देने के लिए कोई आवंटन नहीं होता।

लेकिन उन्होंने आगे कहा, “चूंकि तीनों व्यक्तियों ने दस महीने तक काम किया है, इसलिए मैं यह सुनिश्चित करूंगी कि उन्हें उनका बकाया मिल जाए।”

हालांकि, तीनों व्यक्तियों का दावा है कि पारा-वेट्स के रूप में उनकी नियुक्ति राज्य सरकार के आदेश (दिनांक- 15 फरवरी, 2019) पर आधारित थी, जो कि सचिव, पशुपालन विभाग (चित्र देखें) के द्वारा जारी हुआ है। सचिव ने महालेखाकार को भी एक पत्र लिखा था और विशेषज्ञों का मानना ​​है, जब महालेखाकार इन नियुक्तियों को अवैध करार देगा तब ही इसे समाप्त किया जा सकता है।

ये ख़बर इंग्लिश में पब्लिश हो चुकी न्यूज़ का अनुवाद है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button