Jharkhandईन्यूज़रूम इंडिया

बाबूलाल और जेवीएम ने झारखंड की जनता के साथ हमेशा धोखा किया!

राँची/गिरिडीह: बाबूलाल मरांडी, झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे और इस वजह से वो झारखंड की राजनीति में भाजपा छोड़ने के बाद भी महत्वपूर्ण कहलाए। 2006 में जब बाबूलाल ने नयी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) बनाई तो लगा के वो कोई बड़ा बदलाव झारखंड की राजनीति में ला सकेंगे, पर 14 साल बाद धनवार विधायक फिर एक बार बीजेपी में वापस जा रहे हैं और अपनी पार्टी का विलय भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में करा रहे हैं।

2009, 2014 में भी गए जेवीएम के विधायक भाजपा में

पिछले 14 सालों में, जेवीएम ने 3 विधान सभा चुनाव लड़ा- 2009, 2014 और 2019। 2009 में बाबूलाल की पार्टी के 11 विधायक बने, पर कुछ ही दिनों में उनमें से 8 एमएलए जेवीएम छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। किसी भी राजनीतिक दल के साथ इस तरह का मामला पहली और आखिरी बार हो सकता है, पर फिर 2014 में जब जेवीएम के 8 एमएलए चुन कर आए, तो उनमें से 6, बीजेपी में शामिल हो गए।

फिर 2019 के विधान सभा चुनाव में पार्टी के 3 विधायक बने, पर इस बार 62-साल के बाबूलाल न सिर्फ खुद भाजपा में जा रहे बल्कि, अपनी पार्टी का भी विलय करने वाले हैं।

बाबूलाल के भाजपा में जाने को लेकर कमेंट के लिए ईन्यूज़रूम ने उनके गृहजिला से दो विधायक  से बात की। सीपीआई-एमएल के विनोद सिंह और जेएमएम के सुदिव्य सोनू  से।  दोनों विधायकों के राजनीतिक जीवन की सबसे खास बात ये रही कि दोनों ने कभी पार्टी नहीं बदला।

झारखंड की दुर्दशा के लिए बाबूलाल भी जिम्मेदार

“बाबूलाल और उनकी पार्टी ने हमेशा झारखंड के लोगों के साथ धोखा किया और आज अगर झारखंड की तरक्क़ी, झारखंड बनने के बाद भी नहीं हो पायी तो उसमें बाबूलाल सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं जिसने हमेशा सेकुलर ताकतों को कमज़ोर किया। वैसे अब अच्छा हुआ, नक़ाब उतर गया। वो सही कह रहे हैं कि वो अपने वास्ताविक जगह वापस जा रहे हैं। वो हमेशा बीजेपी और आरएसएस के लाइन पे ही रहे। अब झारखंड की जनता के मन में कोई शंका नहीं रहेगी,” विनोद सिंह ने कहा।

सुदिव्य सोनू कहते हैं, “बाबूलाल के भाजपा में जाने से झारखंड की राजनीति में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस बार के चुनाव में ही 28 अनुसूचित जनजाति के सीटों में से 26 पर जेएमएम या उसके गठबंधन को सीटें मिलीं, जो ये बताने के लिए काफी है के बाबूलाल जी आदिवासियों के नेता नहीं हैं। और 81 सीटों पे लड़ कर सिर्फ 3 सीट जीत पायी जेवीएम”।

“वैसे बाबूलाल जी राजनीति में बहुत शिष्टाचार की बात करते हैं, तो उन्हें एमएलए पद त्याग कर दोबारा चुनाव लड़ना चाहिए, क्योंकि आखिरी चुनाव वो सेकुलर वोट्स से जीते हैं,” सोनू ने कहा।

डूबती नाव की सवारी

विनोद सिंह तो यह भी मानते हैं कि बाबूलाल का केस सूप्रीम कोर्ट के रुलींग्स के अनुसार एक फिट केस है, उनकी सदस्यता जा सकती है,  ये फैसला स्पीकर को लेना है।

वहीं गाण्डेय के विधायक और लगभग 40 सालों से राजनीति में सक्रीय सरफराज अहमद का मानना है, “बाबूलाल जी डूबती नाव में सवार हो रहे हैं, अब भाजपा का छदम राष्ट्रवाद देश जान चुका है, नफरत की राजनीति करने वालों की अब हर जगह हार हो रही है।” सरफराज पिछली विधान सभा चुनाव के दौरान जेएमएम में शामिल हुए हैं।

भाजपा का अजेंडा  सांप्रदायिकता और कॉर्पोरेट लूट, नहीं शामिल होंगे

सामाजिक कार्यकता दयामनी बरला, जो आदिवासियों के हक़ की लड़ाई के लिए झारखंड में सबसे आगे रही हैं और विधान सभा चुनाव में जेवीएम की टिकट पे चुनाव लड़ी थीं बाबूलाल के साथ भाजपा में शामिल नहीं हो रही हैं।

“पिछले 14 सालों में कई ऐसे मौके आए जब लगा के बाबूलाल मरांडी जल-जंगल-ज़मीन के सवालों को लेकर आदिवासी समाज के साथ खड़े हैं, पर भाजपा की राजनीति न सिर्फ आदिवासियों की जल-जंगल-जमीन लूटने की रही बल्कि समाज को बांटने के भी काम करता है, दलित और अल्पसंख्यकों के बीच जाति और धर्म के नाम पे फूट डालने का भी काम किया है। भाजपा के एजेंडा में सांप्रदायिकता और कॉर्पोरेट लूट को बढ़ावा देना है। इसलिए हम कई सामाजिक संगठन जिनमें खूंटी, तोरपा और सिसई छेत्र के लोग हैं, भाजपा में शामिल नहीं होंगे और हमारा संघर्ष भाजपा के खिलाफ जारी रहेगा।”

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He loves doing human interest, political and environment related stories.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button