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15 अगस्त से रूपेश कुमार सिंह झारखंड की जेल में भूख हड़ताल करेंगें

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स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को एक और केस में फंसा दिया गया है, मामला क्या है यह अभी तक न रूपेश को पता है न ही मुझे। बोकारो जिला के तेनुघाट के जागेश्वर बिहार थाना के केस सं – 16/22 में आज रूपेश की पेशी कराई गई। इस केस में रूपेश नामजद नहीं हैं। फिर भी इन्हें घसीटा जा रहा है।

मुझे तो शुरूआत से ही लग रहा था कि सत्ता के खिलाफ लिखने, बोलने की कीमत रूपेश को बुरी तरह से चुकानी पड़ेगी।अब यह और स्पष्ट हो रहा है कि सत्ता रूपेश को फिर से बाहर की दुनिया में देखना नहीं चाह रही है, और इसके लिए वो एड़ी चोटी का जोड़ लगा रही है। बहुत संभावना है कि रूपेश को ऐसे कई और केस में फंसाकर जेल में रख देने की पूरी कोशिश की जाएगी। और हम बस मूकदर्शक बने रहेंगे।

रूपेश को जेल में एक पूरी तरह से जर्जर हो चुकी बिल्डिंग में बिल्कुल अकेले रखा गया है, जहां छत के 80% हिस्से से बारिश का पानी टपक रहा है, साथ ही छत भी टूटकर गिर रही है। आस पास भी लम्बे लम्बे घास फैले हुए हैं, जहां जहरीले जीव हो सकते हैं।हम कल्पना कर सकते हैं कि यह कितना खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसा भी नहीं है कि इस बारे में किसी से बात नहीं की गई है, रूपेश ने बीते 31 जुलाई को सीजेएम मंजू कुमारी के सामने जगह बदलने की बात की पर परिणाम सिफर रहा। मैंने 8 अगस्त से अब तक इससे संबंधित पत्र 2-2 बार जेल आईजी, मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री सचिव, डीसी सरायकेला, स्वास्थ्य मंत्रालय, मानवाधिकार आयोग को मेल किया पर अब तक किसी पर न तो कोई कार्रवाई हुई है और न ही किसी का कोई जवाब ही आया है। यह सब रूपेश को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है।

रूपेश ने अब तक कितनी ही बार सरायकेला जेल सुपरिटेंडेंट से बात करने की कोशिश की है पर वह आज तक रूपेश से नहीं मिली है। नतीजन रूपेश ने जेल के बड़े जमादार के सामने जेल प्रशासन से तीन मांगें रखी हैं:-

1. मुझे एक सुरक्षित स्थान पर रखा जाए। बाकि बंदियो से मिलने जुलने भी दिया जाए।
2. मुझे पढ़ने लिखने का सामान उपलब्ध कराया जाए।
3. जेल मेन्युल के हिसाब से खाना,और ठीक तरह पका खाना दिया जाए। क्योंकि रोटियां बिल्कुल अधपकी रहती है।

रूपेश ने यह ऐलान किया है कि अगर 14 अगस्त तक उनकी ये मांगें नहीं मानी जाती है, तो वह 15 अगस्त से भूख हड़ताल पर बैठेंगे। जिसका जिम्मेवार जेल प्रशासन होगा। उन्होंनें 9 अगस्त को ही ये बातें जमादार के सामने रखीं हैं पर अभी तक कुछ एक्शन नहीं लिया गया है।

रूपेश ने बताया कि 298 कैदियों जिसमें 290 पुरुष और 8 महिला की क्षमता वाले जेल में कुल 500 कैदी हैं। जेल में सिपाही की नियुक्ति भी आधी है। खाने का स्तर काफी खराब है, और जेलमैन्यूल को तो बिल्कुल भी फाॅलो नहीं किया जाता है।

हम रूपेश की गिरफ्तारी के दिन यानी 17 जुलाई से ही देखें तो 18 जुलाई को उन्हें जब पहली बार जेल में डाला जाता है तब उन्हें 4 संक्रामक रोगियों के साथ रखा जाता है, फिर 2 बार पुलिस रिमांड के बाद दुबारा जेल भेजने से अभी तक उस जर्जर बिल्डिंग में बिल्कुल तन्हा रखा गया है, बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है,एक भी बंदी से मिलने नहीं दिया जा रहा है।

कुल मिलाकर एक निर्भीक, साहसी जनपक्षीय पत्रकार को जेल में ही रखने की कोशिश और जेल में मानसिक प्रताड़ना का शिकार बनाया जा रहा है। जबकि 3 अगस्त को इनकी रिहाई की मांग बगोदर विधायक विनोद सिंह द्वारा विधानसभा में उठाया गया था। साथ ही जेल में इनकी स्थिती को भी रखा गया था और उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की गई थी।

एक तरफ सरकार आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है, दूसरी ओर देश के निर्दोष आदिवासी जनता को नक्सली का आरोप लगा जेल में सालों से बंद रखा जा रहा है, और जेल में भी आदिवासी बंदियों के साथ दुर्व्यवहार और उनका जमकर शोषण किया जाता है। दूसरी तरफ इनके लिए आवाज उठाने वाले रूपेश सरीखे लोगों को भी इनकी तरह ही जेल में डाल दिया जाता रहा है, और जेल से बाहर न आने देने की पूरी कोशिश भी की जाती है।

पर सवाल है कि आवाज उठाने वालों की संख्या अगर ऊंगली पर गिनने लायक हो तो सत्ता को भी इनका दमन करना आसान होता है, पर अगर यही आवाज की संख्या हजारों, लाखों में हो तो?? तब ये किस-किस को कैद करेंगें? किस-किस पर जुल्म करेंगें?

यह समय है सबके साथ खड़े होने का क्योंकि यह मामला अकेले रूपेश कुमार सिंह या सिद्दीक कप्पन या हिमांशु कुमार या भीमा कोरेगांव में फंसाए गए तमाम साथियों का ही नहीं है यह पूरे देश,पूरी दुनिया को शोषण मुक्त बनाने की लड़ाई है और इसमें हम सभी अमन पसंद,  न्याय पसंद लोगों की भागीदारी की जरूरत है।

‘रूपेश ने देश-दुनिया के सभी न्यायपसंद लोगों से सत्ता की क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाने और एकजुट होने की अपील की है।’

जरूरत है इस लड़ाई में आगे खड़े लोगों के साथ खड़े होने की, उनपर हो रहे जुल्म, दमन के खिलाफ आवाज की, एकजुटता की। और सत्ता को खुली चुनौती देने की–‘

दम है तेरे दमन में कितने देख लिया है, देखेंगे,
जगह है कितनी जेल में तेरे देख लिया है, देंखेंगे।

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