हेमंत सोरेन सरकार के एक साल: घोषणा के बाद भी पत्थलगड़ी मामले वापस नहीं हुए

Date:

Share post:

रांची: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार अपना एक साल पूरा करने वाली है. और सत्ता में आते ही खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घोषणा की थी के पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े सभी केस वापस होंगे. पर केस वापस नहीं हुआ और जिन आदिवासियों पे ये मामले लगे हुए हैं, वो अभी भी परेशान हैं.

झारखंड जनाधिकार महासभा ने पत्थलगड़ी मामलों के स्थिति की समीक्षा और झारखंड में हो रहे मानवाधिकार हनन के घटनाओं की विवेचना के लिए राँची में एक सेमिनार का आयोजन किया. इसमें अनेक जन संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. पत्थलगड़ी मामलों के कई पीड़ित और पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के चिरियाबेरा गाँव के पुलिस/ CRPF द्वारा प्रताड़ित ग्रामीणों ने भी सेमिनार में भाग लेकर अपनी आपबीती बताई.

सेमिनार के बाद महासभा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया, जिसे अपने पाठकों के लिए आगे हम हूबहू साझा कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद, 29 दिसम्बर 2019 को हेमंत सोरेन ने पत्थलगड़ी से सम्बंधित सभी पुलिस केस को वापस लेने की घोषणा की थी. इससे पहले की रघुबर दास की भाजपा सरकार ने पत्थलगड़ी आन्दोलन के विरुद्ध बड़े पैमाने पर पुलिसिया हिंसा और दमनात्मक कार्यवाई की थी. सरकार ने आन्दोलन से जुड़े आदिवासियों व अनेक पारंपरिक ग्राम प्रधानों के विरुद्ध कई मामले दर्ज किया था जो तथ्यों पर आधारित नहीं थे. पुलिस ने लगभग 200 नामज़द लोगों और 10000 से भी अधिक अज्ञात लोगों पर कई आरोप दर्ज किया, जैसे भीड़ को उकसाना, सरकारी अफसरों के काम में बाधा डालना, समाज में अशांति फैलाना, आपराधिक भय पैदा करना और देशद्रोह भी शामिल था.

मुख्य मंत्री द्वारा घोषणा करने के एक साल बाद भी ये पुलिस केस वापस नहीं लिए गए फलस्वरूप अभी भी कई आदिवासी और ग्राम प्रधान जेलों में ही हैं. सूचना के अधिकार के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार पत्थलगड़ी सम्बंधित ज़िलेवार FIR हैं : खूँटी -23, सराइकेला-खरसाँवा – 5 और पश्चिमी सिंघभूम – 2 (कुल 30). ज़िला समिती, जिसके सदस्य होते हैं – DC, SP और सार्वजनिक अभियोक्ता, ने मात्र लगभग 60% मामलों के वापसी की अनुशंसा की है (कोचांग सामूहिक बलात्कार वाले दो केस भी वापसी की सूची में नहीं है). साथ ही खूँटी ज़िला समिती ने सात मामलों में सिर्फ़ धारा 124A/120A/B को हटाने की अनुशंसा की है. राज्य गृह विभाग ने ज़िला समितियों द्वारा भेजे गए अनुशंसा पर कार्यवाई के बारे में सिर्फ़ इतना कहा है कि ‘कार्यवाही हो रही है’.

पर हेमंत सोरेन सरकार द्वारा पत्थलगड़ी मामलों की वापसी की घोषणा ने यह इंगित किया था कि यह सरकार मानती है कि पिछली रघुवर दास सरकार ने पत्थलगड़ी आन्दोलन को सही से समझा नहीं था. साथ ही, वर्तमान सरकार पिछली सरकार द्वारा पत्थलगड़ी आन्दोलन के विरुद्ध की गयी गलत कार्यवाई को सुधारना भी चाहती है. लेकिन ज़िला समिति द्वारा केवल आधे मामलों की वापसी की अनुशंसा एवं मामलों की वापसी में हो रही विलम्ब यह दर्शाती है कि हेमंत सोरेन सरकार की राजनैतिक मंशा अभी तक ज़मीनी स्तर पर कार्यवाई में नहीं बदली है.

विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान महागठबँधन दलों ने हेमंत सोरेन के अगुवाई में ज़ोर-शोर से तत्कालीन राज्य सरकार के दमनकारी नीतियों और आदिवासियों पर हो रहे लगातार हमलों (पुलिसिया दमन, लिंचिंग आदि की घटनाओं आदि) के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी. लेकिन यह देख कर निराशा होती है कि हेमंत सोरेन सरकार ने न तो पूर्व के मामलों पर निर्णायक कार्यवाई की न ही वर्तमान में ऐसे कृत्यों को रोकने की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है.

पिछले शासन के दौरान पत्थलगड़ी सम्बंधित राजकीय दमन से पीड़ित ग्रामीणों को अभी तक न्याय नहीं मिला. घाघरा गाँव की गर्भवती महिला असृता मुंडू को सुरक्षा बलों द्वारा पीटा गया, उसकी बच्ची विकलांग पैदा हुई, लेकिन अभी तक उसे कोई सहायता प्राप्त नहीं हुआ. हिंसा के दोषियों को (बिरसा मुंडा और अब्राहम सोय जैसे मारे गए आदिवासी के मामले भी) भी अभी तक चिन्हित कर क़ानून के हवाले नहीं किया गया है. पत्थलगड़ी आन्दोलन से जुड़े कई लोगों, पारंपरिक ग्राम प्रधान व सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे अमित टोपनो, सुखराम मुंडारामजी मुंडा की इस दौरान हत्या हो गयी थी लेकिन अभी तक स्थानीय पुलिस द्वारा दोषियों को नहीं पकड़ा गया है.

पिछले एक साल में भी मानवाधिकार हनन की घटनाएँ लगातार घटती रही. इनमें सबसे चर्चित घटना थी पश्चिम सिंहभूम ज़िले के चिरियाबेरा गाँव की है जहां 20 आदिवासियों को जून 2020 में CRPF के जवानों ने नक्सल सर्च अभियान के दौरान बेरहमी से पीटा था जिनमें तीन बुरी तरह घायल हुए. ग्रामीणों का दोष यही था की वे CRPF के जवानों को हिंदी में जबाब नहीं दे पा रहे थे. उन्हें माओवादी कहा गया और डंडों, जूतों, कुंदों से पीटा गया. हालाँकि पीड़ितों ने पुलिस को अपने बयान में स्पष्ट रूप से बताया था कि सीआरपीएफ ने उन्हें पीटा था, लेकिन पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कई तथ्यों को नज़रंदाज़ किया गया है और हिंसा में सीआरपीएफ की भूमिका का कोई उल्लेख नहीं है.. अभी तक इस FIR को सुधरा नहीं गया है, CRPF के लोगों पर कोई कारवाही नहीं की गई और पीड़ितों को मुआवज़ा नहीं दिया गया है. इस सम्बन्ध में कई बार उपायुक्त, पुलिस अधीक्षण व महानिदेशक से मिलकर कार्यवाई की अपील की गयी है. पिछले एक साल के दौरान राज्य के विभिन्न भागों में सुरक्षा कर्मियों द्वारा आम जनता पर हिंसा की वारदातें होती रही है.

साथ ही, राज्य में आदिवासियों, गरीबों व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर माओवादी का फ़र्ज़ी आरोप लगाने का सिलसिला जारी है. पिछले कई सालों से UAPA के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है. यह दुखद है कि पुलिस द्वारा UAPA के बेबुनियाद इस्तेमाल कर लोगों को परेशान करने के विरुद्ध हेमंत सोरेन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. बोकारो के लालपनिया के कई मज़दूरों व किसानों, जो आदिवासी-मूलवासी अधिकारों के लिए संघर्षत रहे हैं, पर माओवादी के आरोप व UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया है. वे पिछले कई सालों से बेल के लिए एवं अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

मानवाधिकार उल्लंघनों के विरुद्ध सरकार द्वारा कार्यवाई की कमी का एक और उदहारण है – आदिवासियों और मुसलमानों पर गोमांस बेचने/ खाने के आरोप लगा कर हिन्दुत्ववादी गुंडों द्वारा पीटे जाने की लगातार हो रही घटनाएँ. लेकिन सरकार और पुलिस इन पर चुप है. पिछले शासन के दौरान 24 से भी ज़्यादा लोगों की लिंचिंग गोमांस खाने/ बेचने के नाम पर हुई. यही सिलसिला अब् भी जारी है. जुलाई 2020 में दुमका व जमशेदपुर में गौ मांस खाने / बेचने के आरोप में आदिवासियों की भीड़ द्वारा पिटाई हुई थी. सितम्बर 2020 में सिमडेगा के सात आदिवासियों को बेरहमी से पीटा गया, उनका मुंडन किया गया और उनसे ‘जय श्री राम’ का नारा लगवाया गया. ज़्यादातर मामलों में पीड़ितों को सहायता नहीं मिली और पुलिस दोषियों को बचाने में जुटी है. सरकार द्वारा अभी तक लिंचिंग के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया – जैसे स्पीडी ट्रायल, 30 दिनों में अंतरिम मुआवज़ा, SP द्वारा केस का अनुश्रवण आदि.

महासभा हेमंत सोरेन सरकार को याद दिलाना चाहती है की विधान सभा चुनाव में उनके गठबंधन की निर्णायक जीत पिछले सरकार के दमनकारी और जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध एक जनमत था. इसलिए सरकार से उम्मीद की जाती है कि शोषण और मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति कठोर रवैय्या अपनाया जाएगा. हम आशा करते हैं की सरकार सुरक्षा बलों पर लगाम लगाएगी और उन्हें आम जनता और आदिवासियों के प्रति ज़िम्मेवार बनाया जाएगा.

महासभा ने झारखंड सरकार से माँग कि:

  • पत्थलगड़ी से सम्बंधित मामलों को अविलम्ब वापस लिया जाय, खूँटी के मानवाधिकार हनन के मामलों में कार्यवाई की जाय और पीड़ितों को मुआवज़ा मिले.
  • चिरियाबेरा घटना की न्यायिक जाँच हो, दोषी CRPF पुलिस और प्रशासनिक कर्मियों पर हिंसा करने के लिए कार्यवाई हो और पीड़ितों को उचित मुआवज़ा दिया जाय.
  • स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश दें कि वे किसी भी तरह से लोगों, विशेष रूप से आदिवासियों, का शोषण न करें. मानव अधिकारों के उल्लंघन की सभी घटनाओं से सख्ती से निपटा जाए. नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए. मानवाधिकार हनन के मामलों को सख़्ती से निपटाया जाय. आम जनता को नक्सल-विरोधी अभियान के नाम पर बेमतलब परेशान न किया जाय.
  • स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाय और समवेदनशील बनाया जाय.
  • लिंचिंग से सम्बंधित सुप्रीम कोर्ट के अनुदेशों को सही olxslot मायनो में लागू किया जाय, दोषियों को बचाने वाले पुलिस और अधिकारियों पर कार्यवाही हो, पीड़ितों को मुआवज़ा मिले और लिंचिंग के विरुद्ध कठोर क़ानून बनाया जाय.

निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग को पुनर्जीवित किया जाय और यह जनता के लिए सुलभ हो. मानवाधिकार उल्लंघन मामलों के लिए स्वतंत्र शिकायत निवारण तंत्र बनाया जाय.

spot_img

Related articles

Odisha Mob Attack Kills Bengal Migrant Worker, Family Alleges Identity-Based Lynching

Migrant workers from Murshidabad were allegedly attacked in Odisha after being accused of being “Bangladeshis” despite showing valid documents. One worker, Jewel Rana, succumbed to his injuries, while two others remain hospitalised. The lynching has renewed concerns over the safety of Bengali-speaking Muslim migrant workers in BJP-ruled states.

The Incident at Brigade and Bengal’s Uneasy Turn

On December 7, the Sanatan Sanskriti Sansad organised a mass Gita recitation programme at Kolkata’s historic Brigade Parade...

‘Whoever Sets the Narrative Wins’: Khan Sir on Perception and Technology

Khan Sir highlights the power of combining religious and modern education as Umeed Global School, led by Wali Rahmani, celebrates its annual day. Underprivileged students impress with languages and performances. Abdul Qadeer urges spending on education, not weddings, inspiring hope and shaping a generation ready to contribute to society

Taking Science to Society: Inside ISNA and Radio Kolkata’s Unique Collaboration

The Indian Science News Association and Radio Kolkata have launched a joint science communication initiative to counter fake news, promote scientific temper, and revive interest in basic sciences. Using community radio and Indian languages, the collaboration aims to connect scientists, students, and society amid climate crisis and growing misinformation.