गिरिडीह/रांची: सत्तर वर्षों से, गिरिडीह के छात्रों को विश्वविद्यालय से संबंधित किसी भी काम के लिए और स्नातकोत्तर पढ़ाई के लिए 115 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी। लेकिन अब, वे अपने ही शहर में उच्च शिक्षा हासिल कर सकते हैं, झारखंड सरकार के कैबिनेट के फैसले ने सर जेसी बोस विश्वविद्यालय के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।
झारखंड के नए मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के नेतृत्व में गुरुवार को कैबिनेट में सर जेसी बोस विश्वविद्यालय की स्थापना को मंजूरी दी, जिसका क्षेत्र भारत के दो सबसे शैक्षिक रूप से पिछड़े जिलों गिरिडीह और कोडरमा को कवर करेगा। गिरिडीह और कोडरमा का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) क्रमशः 11.71 और 11.26 है, जो उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय जीईआर 28.4 की तुलना में बहुत कम है।
300 करोड़ रुपये से अधिक की विश्वविद्यालय की परियोजना 70 एकड़ क्षेत्र में फैली होगी। इसमें कार्यालय के साथ-साथ, कई खेल के मैदान, कुलपति और सभी संकाय सदस्यों के आवास भी होंगे। इसके दायरे में गिरिडीह और कोडरमा जिले के सभी कॉलेज आएंगे।
शिक्षाविद् और पचम्बा गर्ल्स हाई स्कूल की प्रिंसिपल शमा परवीन ने कहा, “इससे बड़ी संख्या में लड़कियों को मदद मिलेगी, जो पढ़ाई के लिए, जिले से बाहर जाने के कारण उच्च शिक्षा के अपने सपने को पूरा नहीं कर पाती थीं।”
शमा, जो साइंस फॉर सोसाइटी की कार्यकारी सदस्य भी हैं ने बताया, “एक महान वैज्ञानिक के नाम पर विश्वविद्यालय छात्रों को विज्ञान विषयों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करेगा।”
सर जेसी बोस के नाम पर यूनिवर्सिटी क्यों?
यहाँ के लोगों की लंबे समय से एक यूनिवर्सिटी की मांग थी, वहीं यह मांग भी थी कि इसका नाम क्रेस्कोग्राफ के आविष्कारक के नाम पर रखा जाए। दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में से एक बोस कोलकाता के निवासी थे लेकिन उन्होंने गिरिडीह को अपना कार्यक्षेत्र बनाया था। उन्होंने 23 नवंबर, 1937 को गिरिडीह में अंतिम सांस ली थी। बोस के साथ, सांख्यिकीविद् पीसी महालनोबिस, कवि रवींद्रनाथ टैगोर, स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली और कई अन्य बंगाली दिग्गजों ने जिले को अपनी कर्मभूमि बनाया था। पीसी महालनोबिस ने कोलकाता के बाद भारत में दूसरे भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना यही की थी।
गिरिडीह में केवल एक, सर जेसी बोस गर्ल्स हाई स्कूल, जो उनके मकान (विज्ञान केंद्र के रूप में नामित) के पास है जहाँ उनकी मृत्यु हुई थी, का नामकरण उनके नाम पर किया गया है।
“जहाँ तक गिरिडीह की शैक्षणिक स्थिति का सवाल है तो यह एक बड़ी उपलब्धि है। यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था, लेकिन गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू की बदौलत कम से कम अब यह हो पाया है। यह महान वैज्ञानिक को सच्ची श्रद्धांजलि है,” सर जेसी बोस मेमोरियल सोसाइटी के रितेश सराक ने कहा। सोसाइटी ने इस मुद्दे को नियमित रूप से उठाया था।
रितेश ने आगे कहा, “आज के इस दौर में जब काम से ज्यादा सरकारों द्वारा नाम बदलने की होड़ लगी है, सर जेसी बोस के प्रति लगाव के कारण उम्मीद है कि विश्वविद्यालय का नाम कभी भविष्य में बदला नहीं जाएगा।”
राजनीतिक रूप से इतना पिछड़ा भी नहीं गिरिडीह ज़िला
गिरिडीह ने पहले बिहार को केबी सहाय और फिर झारखंड को बाबूलाल मरंडी के तौर पे पहला मुख्यमंत्री दिया। बाबूलाल के वक़्त पे गिरिडीह से तीन मंत्री भी हुए और उनमे एक शिक्षा मंत्री भी रहें। इसलिए राजनीति में गिरिडीह को प्रतिनिधित्व मिला भी, पर कभी उच्च शिक्षा या किसी बड़े सरकारी उद्योग के लिए पहल नहीं हुई। देश के रेल मानचित्र पे ये ज़िला अभी भी पिछड़ा है।
सबसे पिछड़े ब्लॉक में पेयजल परियोजना
कैबिनेट के फैसले गिरिडीह जिले के लिए ऐतिहासिक हैं, क्योंकि इसे न केवल एक विश्वविद्यालय मिला, बल्कि इसके सबसे पुराने ब्लॉक के लिए पेयजल योजना भी मिली।
विश्वविद्यालय के अलावा गिरिडीह के सबसे पुराने ब्लॉक पीरटांड़, जो कभी नक्सली गतिविधियों का केंद्र था और अति पिछड़ा क्षेत्र है, को 639 करोड़ रुपये की पेयजल आपूर्ति योजना मिली है। संभवतः यह गिरिडीह जिले को मिली अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है।
सौर ऊर्जा वाले शहर के बाद अब सौर ऊर्जा वाला जिला बनेगा गिरिडीह
इसके अतिरिक्त, गिरिडीह, जहां सोलर सिटी योजना चल रही है, का विस्तार शहरी से ग्रामीण क्षेत्रों तक किया गया है। इसलिए अब यह पूरे गिरिडीह जिले को कवर करेगा।
“ये सब हमारे चार साल के काम का नतीजा है। मेरा सपना था कि सर जेसी बोस के नाम पर एक विश्वविद्यालय हो और पीरटांड़ क्षेत्र के लिए पेयजल की सुविधा हो। ये वे कार्य भी हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा आगे बढ़ाए गए थे, उन्होने गिरिडीह की जनता के सामने घोषणा की थी कि उनके पास जल्द ही एक विश्वविद्यालय होगा,” सुदिव्य सोनू ने ईन्यूजरूम को बताया।
गिरिडीह विधायक ने यह भी बताया कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का शिलान्यास समारोह होगा।