महाराष्ट्र: कोरोना महामारी की मार से त्रस्त सोनगीर के बर्तन कारीगर

लॉकडाउन और मंदी के बाद बरसात शुरू हो गई। इस मौसम में तांबे के बर्तन काले हो जाते हैं। इसलिए, उन्हें बनाने का काम रोक दिया जाता है। स्पष्ट है कि दिवाली तक काम बंद रहेगा। यही वजह है कि तांबे और बर्तन बनाने वाले कारीगर के सामने जीने का संकट और अधिक गहरा गया है

Date:

Share post:

हाराष्ट्र में धुले के करीब सोनगीर तांबे और पीतल के बर्तनों के लिए देश भर में जाना जाता है। करोना संक्रमण के कारण सख्त लॉकडाउन आपदा और मंदी के कारण यहां पिछले एक साल से काम प्रभावित हुआ है। वहीं, बरसात के दिनों में तांबा काला पड़ने से कारीगरों द्वारा बर्तन बनाने का काम रोक दिया जाता है। ऐसे में यहां बर्तन कारीगरों और व्यवसायिकों के सामने आजीविका का संकट गहरा गया है।

हालात इतने खराब हैं कि इस क्षेत्र से जुड़े अधिकतर परिवार अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ने के लिए मजबूर हैं। ये लोग अब दो जून की रोटी के लिए नए काम ढूंढ़ रहे हैं।

सोनगीर में तांबा-पीतल बर्तनों के व्यवसाय से जुड़े अविनाश कासर कहते हैं, “यहां कारीगरों की माली हालत कोई खास अच्छी नहीं है। वे कई महीनों तक खाली नहीं बैठ सकते हैं। आजकल तांबे और पीतल के बर्तनों की मांग न होने से पूरा कारोबार मंद पड़ गया है।”

अविनाश बताते हैं कि पिछले वर्ष की तरह इस बार भी यहां के बर्तन कारोबारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा। वहीं, सोनगीर के सैकड़ों कारीगरों को अपनी घर-गृहस्थी बचाने के लिए काम की सख्त जरूरत है। लेकिन, इस आपदा में नया काम मिलना आसान नहीं रह गया है।

लॉकडाउन आपदा

दूसरी तरफ, सोनगीर से तांबे और पीतल के बर्तन राज्य से बाहर भी जाते हैं। लेकिन, लॉकडाउन के कारण उपजे वित्तीय संकट में माल की आवाजाही संबंधी गतिविधियां भी ठप रही हैं। लिहाजा, कुशल श्रमिकों की आजीविका पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। सोनगीर में तांबे और पीतल के बर्तन बनाने के व्यवसाय से सीधे तौर पर पांच सौ से अधिक कारीगर परिवार हैं। इसके अलावा, लगभग ढाई सौ छोटे व्यापारी और बर्तन की दुकान कर्मचारी जुड़े हुए हैं। कई कारीगर बताते हैं कि उन्होंने बर्तन बनाने की कला के अलावा कोई दूसरा काम नहीं किया है। लेकिन, अब वे जीविका चलाने के लिए मजदूरी करने को तैयार हैं।

सतीश कासर बताते हैं कि यहां तांबे-पीतल के बर्तन बनाने और बेचने वाले कारीगर तांबट, बागडी और गुजराती कसार समुदाय का पारंपरिक व्यवसाय माना जाता है। हालांकि, पिछले कुछ समय से अन्य समुदाय से जुड़े परिवार भी इस काम में सक्रिय हुए हैं। लिहाजा, इस धंधे में बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा आ गई है। इसलिए, बर्तन बनाने से लेकर उनकी उचित कीमत पाने तक अब बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है और उन्हें पहले की तरह मुनाफा नहीं मिल पा रहा है।

दरअसल, स्टील के बर्तनों में आने और मशीनरी के अत्याधिक प्रयोग के कारण इस क्षेत्र से जुड़े कारीगर और व्यवसायिकों की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब चल रही थी। ऐसे में लॉकडाउन के कारण उत्पादन और व्यवसाय महीनों तक बंद रहा। इसके चलते बाजार में मंदी छाई हुई है।

लेकिन, मुसीबत यहीं समाप्त नहीं हुईं। लॉकडाउन और मंदी के बाद बरसात शुरू हो गई। इस मौसम में तांबे के बर्तन काले हो जाते हैं। इसलिए, उन्हें बनाने का काम रोक दिया जाता है। स्पष्ट है कि दिवाली तक काम बंद रहेगा। यही वजह है कि तांबे और बर्तन बनाने वाले कारीगर के सामने जीने का संकट और अधिक गहरा गया है। ऐसी स्थिति में उनके सामने सवाल हैं कि वे कहां जाएंगे और क्या करेंगे। इस तरह, इस बुरे दौर में उन्हें उनके परिवार को सुरक्षित और संभालना सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।

बता दें कि इस क्षेत्र के कई व्यापारी लंबे समय से सोनगीर के कारीगरों से थोक में बर्तन खरीदकर देश की दूसरी जगहों पर बेचते रहे हैं। यहां पहले सिर्फ बर्तन कारीगर होते थे। बाद में कई कारीगर व्यापारी भी हो गए। बर्तनों के लिए आवश्यक कच्चा माल पुणे, भंडारा, इंदौर और उज्जैन सहित कई अन्य शहरों से मंगाया जाता है।

इस क्षेत्र से जुड़े लोग बताते हैं कि सोनगीर के बर्तनों की अच्छी मांगी के पीछे वजह यह है कि यहां तैयार बर्तन टिकाऊ, मजबूत और आकर्षक होते हैं। शादियों में इन बर्तनों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इसके अलावा, दिवाली-दशहरा में भी खासी मांग होती है। राज्य के खानदेश अंचल में भी बर्तनों से जुड़े सबसे अधिक कारीगर और व्यापारी सोनगीर से ही हैं। वहीं, रोजगार की तलाश में कई कारीगर दूर-दराज की जगहों पर जाकर बस गए और जहां-तहां अपनी आजीविका चला रहे हैं।

यह मुख्य रूप से मांग के अनुसार तांबे और पीतल की धातु से परात, लोटा, गुंड, कलश, कटोरे और बाल्टी जैसे बर्तन तैयार किए जाते हैं। यहां के कारीगरों द्वारा बनाई गए कलश देश के अधिकांश प्रमुख मंदिरों पर लगे हैं। हालांकि, कोरोना और आगे अनेक तरह की आशंकाओं के कारण इन कारीगरों से बर्तन व्यापारियों और उपभोक्ताओं की दूर बनी हुई है। वहीं, विवाहों की रौनक छिन जाने की वजह से भी यहां का बर्तन कारोबार उभर नहीं पा रहा है।

सोनगीर का तांबा कारोबार

तांबा कच्चा माल: 480 रुपये प्रति किलो

तैयार बर्तन: 580 रुपये प्रति किलो

कुल कारीगर: 500

स्थानीय व्यापारी: 20

व्यवसाय पर निर्भर परिवार: 200

spot_img

Related articles

Bengal SIR Exercise Reveals Surprising Patterns in Voter Deletions

ECI draft electoral rolls show 58 lakh voter deletions in West Bengal. Data and independent analysis suggest non-Muslims, particularly Matuas and non-Bengali voters, are more affected. The findings challenge claims that voter exclusions under the SIR exercise primarily target Muslim infiltrators.

A Veil Pulled, a Constitution Crossed: The Nitish Kumar Hijab Controversy

A video showing Bihar Chief Minister Nitish Kumar pulling Dr Nusrat Parveen’s veil during an official event has sparked constitutional concern. Critics say the act violated bodily autonomy, dignity, and Article 21, raising questions about state restraint, consent, and the limits of executive power in a democracy.

গীতা পাঠের অনুষ্ঠানের আক্রমণকারীদের সম্বর্ধনা দেওয়ার নিন্দা করা জরুরী

গত ৭ই ডিসেম্বর, কলকাতার ঐতিহাসিক ব্রিগেড প্যারেড গ্রাউন্ডে সনাতন সংস্কৃতি সংসদ আয়োজন করেছিল, ৫ লক্ষ কন্ঠে গীতাপাঠের অনুষ্ঠান।...

‘She Is Too Hurt’: AYUSH Doctor May Not Join Service After Nitish Kumar Hijab Incident

Patna/Kolkata: AYUSH doctor Nusrat Parveen has decided not to join government service, for which she had recently received...