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महाराष्ट्र: साप्ताहिक बाजारों पर पाबंदी से इस सीजन काजू की खरीद बंद, आफत में किसान

महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की संख्या में बेहताशा वृद्धि के वजह से पिछली 22 अप्रैल से 15 जून तक सख्त पाबंदियां लगी हुई हैं। इसके तहत पिछले कई दिनों से राज्य में संपूर्ण साप्ताहिक बाजार भी बंद किए गए हैं। इन बाजारों में बड़े पैमाने पर काजू की जो खरीदी-बिक्री चलती है वह फरवरी के पहले सप्ताह से लेकर मई के आखिरी सप्ताह तक रहती है। जाहिर है कि जिन दिनों में काजू की खरीद-बिक्री होती है ठीक उन्हीं दिनों में साप्ताहिक बाजार बंद होने से काजू का पूरा कारोबार प्रभावित हुआ है

सिंधुदुर्ग/सांगली: कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से महाराष्ट्र सरकार द्वारा लगने वाले साप्ताहिक बाजार बंद करने के बाद काजू के लिए प्रसिद्ध कोंकण के काजू उत्पादक किसान इन दिनों मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। वजह है कि यही समय होता है जब काजू के बीजों की बिक्री और खरीदी की जाती है। वहीं, इस बार बेमौसम बरसात, ओले और बादलों की नमी के कारण काजू की फसल की पैदावार और गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। इसलिए कोरोना-काल में बाजार की गतिविधियों पर लगाई गई रोक के कारण यहां के काजू उत्पादक किसान आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

सिंधुदुर्ग जिले के एक काजू उत्पादक किसान सुशांत नाइक बताते हैं कि उनके जिले में साप्ताहिक बाजार बंद होने की स्थिति का फायदा उठाते हुए क्षेत्र में कई दलाल सक्रिय हो गए हैं, जो किसानों से महज 50 से 60 रुपए किलोग्राम के हिसाब से काजू के बीज खरीद रहे हैं। यह दर सामान्य तौर पर निर्धारित दर से करीब आधी है। सुशांत कहते हैं, “किसानों को चाहिए कि काजू के बीजों को सुखाकर स्टोर कर लें और किसी भी हालत में दलालों को सस्ती दर पर अपना कच्चा माल न बेचें। किसान ही यदि ऐसा करेंगे तो काजू के बीजों के रेट अपनेआप बहुत नीचे चले जाएंगे। सरकार को भी चाहिए कि दलालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें, क्योंकि दलाल मौके का फायदा उठाकर किसानों का शोषण कर रहे हैं।”

बता दें कि अकेले सिंधुदुर्ग जिले में करीब 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में काजू का उत्पादन किया जाता है। काजू के उत्पादन के मामले में सिंधुदुर्ग का वैभववाडी क्षेत्र प्रसिद्ध है। सिर्फ इसी क्षेत्र से हर साल 15 सौ करोड़ रुपए के काजू का कारोबार किया जाता है। सामान्यत: हर साल फरवरी से काजू की फसल का मौसम शुरू होता है। इनमें से ज्यादातर काजू उत्पादक किसान अपने बगीचे से जिले में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में अपनी उपज लाकर बेचते हैं। काजू की फसल का मौसम शुरू होने के साथ ही दूर-दूर से काजू के बड़े व्यापारी सिंधुदुर्ग जिले के साप्ताहिक बाजारों में घूम-घूमकर काजू की बड़े पैमाने पर खरीदी करते हैं। लेकिन, इस बार फिर कोरोना की दूसरी लहर के कारण काजू उत्पादक किसान और व्यापारी साप्ताहिक बाजार बंद होने के कारण काजू की खरीदी और बिक्री नहीं कर पा रहे हैं। इससे इस साल फिर उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। पिछले कुछ दिनों से सिंधुदुर्ग सहित आसपास के राज्य के सभी जिलों में कोरोना संक्रमण का प्रसार बहुत तेजी से हुआ है। स्थिति यह है कि सिंधुदुर्ग में अब तक ग्यारह हजार से अधिक व्यक्ति कोरोना संक्रमण से पीड़ित हो गए हैं जिनमें ढाई सौ अधिक मरीजों की मृत्यु हो चुकी है।

एक काजू प्रसंस्करण यूनिट के मालिक धनश्री सावंत बातचीत करने पर कोरोना रोकने के लिए लगाई गई पाबंदी के कारण फिलहाल शादी और अन्य पार्टियां बंद हो गई हैं। इस महामारी से डरकर लोग घर पर ही हैं और यात्राएं भी लगभग पूरी तरह से बंद हैं। लिहाजा रेस्टोरेंट और पर्यटन क्षेत्र के जरिए भी होने वाली काजू की मांग नहीं हो रही है। वह कहते हैं, ” एक बार कोरोना के दौरान लगाई पाबंदियां हटें और लोगों की दिनचर्या सामान्य हो तो काजू के दाम निर्धारित किए जाने में सहूलियत होगी। ज्यादातर कारखाने वाले और व्यापारी स्थिति सामान्य होने की राह देख रहे हैं, क्योंकि स्थानीय स्तर पर उन्होंने किसानों से काजू के बीज खरीद भी लिए तो उनका पैसा जाम हो जाएगा।”

बता दें कि महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की संख्या में बेहताशा वृद्धि को देखते हुए राज्य की उद्धव ठाकरे सरकार ने पिछली 22 अप्रैल से 15 जून तक सख्त पाबंदियां लगाई हुई हैं। इसके तहत पिछले कई दिनों से राज्य में संपूर्ण साप्ताहिक बाजार भी बंद किए गए हैं। अकेले सिंधुदुर्ग जिले में 20 से 25 स्थानों पर साप्ताहिक बाजार लगता है। इन साप्ताहिक बाजारों में बड़े पैमाने पर काजू की जो खरीदी-बिक्री चलती है वह फरवरी के पहले सप्ताह से लेकर मई के आखिरी सप्ताह तक रहती है। जाहिर है कि जिन दिनों में काजू की खरीद-बिक्री होती है ठीक उन्हीं दिनों में साप्ताहिक बाजार बंद होने से काजू का पूरा कारोबार भी प्रभावित हुआ है।

इसी तरह, पश्चिम महाराष्ट्र के सांगली और कोल्हापुर जिले के काजू उत्पादक किसान अपेक्षाकृत कहीं अधिक मुसीबत का सामना कर रहे हैं। इसके पीछे वजह यह है कि कोरोना महामारी के पहले इन दोनों जिलों में आई भयंकर बाढ़ के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।

इस बारे में सांगली के तासगांव क्षेत्र में काजू उत्पादक किसान दिलीप डभोले बताते हैं, “सांगली के किसान जब बाढ़ की तबाही से उबरने लगे थे तब कोरोना का संकट हमारे सिर पर आ गया। सरकार को चाहिए कि विशेष पैकेज की घोषणा करें, क्योंकि प्राकृतिक आपदा के चलते सांगली और कोल्हापुर जिले में काजू उत्पादक किसानों को दो सौ करोड़ रुपए का घाटा सहना पड़ा था। यहां कई हजार हेक्टेयर काजू की फसल बाढ़ ने सड़ा दी थी।”

दूसरी तरफ, कई काजू उत्पादक किसानों ने इस संभावना के कारण अब तक फुटकर में काजू के बीज नहीं बेचे हैं कि बाद में जब बाजार खुलेगा तो उन्हें बाजार में काजू की बिक्री पर एकमुश्त अच्छे दाम मिलेंगे। यही वजह है कि काजू उत्पादक किसानों ने उपज के लिए जो लागत लगाई थी उसका पैसा अभी तक नहीं निकला है और इन किसानों को मुनाफे के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। हालांकि, सिंधुदुर्ग जिले में इस समय यहां काजू की दर 105 से लेकर 115 रुपए प्रति किलोग्राम बनी हुई है। लेकिन, साप्ताहिक बाजार बंद होने से व्यापारियों द्वारा काजू के बीजों की खरीदी नहीं हो रही है, इसलिए किसानों को यह डर है कि काजू के बीजों के दाम नीचे जा सकते हैं।

हालांकि, पिछली बार भी काजू उत्पादक किसानों को उनकी उपज के अपेक्षित दाम नहीं मिल सके थे। इसका कारण यह था कि पिछले वर्ष मार्च में भी कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने पूरे देश में सख्त लॉकडाउन लगाने की घोषणा की थी। केंद्र की इस घोषणा के बाद सिंधुदुर्ग सहित राज्य के भी सभी साप्ताहिक बाजार बंद कर दिए गए थे और तब काजू व्यापारियों ने काजू के दाम 130 रुपए प्रति किलोग्राम से घटाकर 70 से 80 रुपए प्रति किलोग्राम तक कर दिए थे। लिहाजा यहां के काजू उत्पादक किसान यह सोचकर निराशा और दुख में डूबे हुए हैं कि पिछले वर्ष की तरह कहीं इस वर्ष भी उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ जाए।

काजू उत्पादक किसानों पर संकट को लेकर सिंधुदुर्ग जिले में खांबाले गांव के किसान मंगेश गुरव बताते हैं कि मौसम की मार भी अब स्थायी-सी हो गई है और पिछले कई वर्षों से लगातार अनियमित बारिश और प्रतिकूल तापमान के कारण काजू की उत्पादकता के साथ उसकी गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है। इसके अलावा लगातार दूसरे साल भी कोरोना महामारी के कारण सरकार द्वारा लगाए जाने वाले लॉकडाउन और सख्त पाबंदियों की वजह से काजू की मंडियां भी प्रभावित हो रही हैं।

इस बारे में मंगेश अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, “मेरे दो एकड़ के बगीचे में काजू के कई झाड़ हैं। पहले काजू के झाड़ों से 800 से 1,000 किलोग्राम तक काजू की पैदावार होती थी। लेकिन, अब यह घट गई है और इस वर्ष सीजन के आखिरी दिनों तक अंदाजा यह है कि करीब 400 से 800 किलोग्राम तक काजू पैदा होंगे। कारण यह है कि कुछ दिन पहले ही यहां ओले पड़ने से काजू की फसल को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। फिर भी मुझे लगता है कि आधे से ज्यादा काजू तो झाड़ों में होंगे हीं। लेकिन, हमारी समस्या यही खत्म नहीं हो जाती है, क्योंकि किसी तरह जब काजू को बेचने की बारी आई है तो साप्ताहिक बाजार बंद होने से हमें हमसे अच्छी और थोक कीमत में उपज खरीदने के लिए बड़े व्यापारी नहीं मिल रहे हैं।”

मंगेश इस स्थिति से बेहद हताशा में कहते हैं, “सीजन में यदि बाजार खुले ही नहीं तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि कई किसानों को तुरंत नकद की जरूरत पड़ रही है और उन्हें अपनी लागत भी निकालनी है। सारे किसान काजू की उपज को लंबे समय तक घर पर नहीं रख सकते हैं, इसलिए आप यह कह सकते हैं कि हम पर दोहरी मार पड़ी है। सरकार काजू उत्पादक किसानों की उपज खरीदने के लिए कोई व्यवस्था बनाए तो ही हम लोग संकट से उभर सकेंगे।”

सिंधुदुर्ग में किसान व फल उत्पादक संघ के अध्यक्ष विलास सांवत बताते हैं कि महाराष्ट्र में एक लाख 91 हजार हेक्टेयर पर काजू की खेती की जाती है। काजू की सबसे अधिक खेती सिंधुदुर्ग, रत्नागिरी, रायगड, पालघर, कोल्हापुर और सांगली जिलों में होती है। राज्य में हर साल सामान्यत: दो लाख सत्तर हजार टन का काजू उत्पादित किया जाता है। कोंकण और पश्चिम महाराष्ट्र का काजू अपने विशिष्ट स्वाद और आकार के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन, पिछले सालों में काजू की फसल की दर लगातार घट रही है। कुछ साल पहले काजू उत्पादक किसानों ने व्यापारियों को अपना कच्चा माल दौ सौ रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेच रहे थे, लेकिन अब यही किसान पिछले साल महज 70 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर व्यापारियों को काजू के बीज बेचने के लिए मजबूर हुए हैं।

विलास सांवत इसके पीछे के कारण स्पष्ट करते हुए बताते हैं, “सरकार काजू की न्यूतम राशि पर खरीदी की गारंटी नहीं देती है। सरकार को चाहिए कि 150 से 160 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर खरीद की न्यूनतम राशि निर्धारित कर दे। यदि महाराष्ट्र सरकार न्यूनतम राशि पर खरीद नहीं कर सकती है तो गोवा सरकार की तर्ज पर 25 रूपए प्रतिग्राम पर सब्सिडी दे।”

शिरीष खरे

शिरीष पिछले दो दशकों से भारतीय गांवों और हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर बयां कर रहे हैं, इन दिनों इनकी पुस्तक 'एक देश बारह दुनिया' चर्चा में है

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