झारखंड

पहले चरण में नफरत की राजनीति खारिज, जन मुद्दों पर जनता का विश्वास- लोकतंत्र बचाओ अभियान

अभियान का दावा, झारखंड ने खारिज की नफरत की राजनीति, भाजपा के बांग्लादेशी राग और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सच आया सामने। सामाजिक सुरक्षा, जल-जंगल-जमीन, और स्थानीय अधिकारों के मुद्दों पर झामुमो की नीतियां मजबूत दावेदारी पेश करती हैं। अडानी प्रोजेक्ट में जमीन अधिग्रहण से लेकर सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने तक भाजपा की हर रणनीति पर सवाल

दुमका/रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 43 सीटों पर हुए मतदान ने साफ कर दिया है कि जनता ने नफरत और विभाजन की राजनीति को खारिज कर, जन मुद्दों को प्राथमिकता दी है। दुमका के जोहार में आयोजित एक प्रेस वार्ता में लोकतंत्र बचाओ अभियान (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) के सदस्यों ने यह दावा किया। इस अभियान के तहत राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों को उनके अधिकारों के लिए संगठित किया जा रहा है।

अभियान के सदस्यों ने आरोप लगाया कि भाजपा का सांप्रदायिक और विभाजनकारी एजेंडा अब जनता के सामने उजागर हो चुका है। भाजपा आदिवासियों और मूलवासियों के अधिकारों पर बात करने के बजाय धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दों को हवा दे रही है। बांग्लादेशी घुसपैठ का राग अलापकर भाजपा ने क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। अभियान ने अपने तथ्यात्मक विश्लेषण में पाया कि संथाल परगना में प्रचारित घुसपैठ का कोई प्रमाण नहीं है। खुद केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय और संसद में स्वीकार किया है कि उनके पास घुसपैठियों का कोई आंकड़ा नहीं है, और अधिकांश विवाद स्थानीय हैं।

वास्तविक मुद्दों पर चुप्पी साधे भाजपा

अभियान ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह आदिवासियों और मूलवासियों के ज्वलंत सवालों—जैसे कि सीएनटी-एसपीटी कानून, सरना कोड, खतियान आधारित स्थानीय नीति, जल-जंगल-जमीन के अधिकार, और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)—पर चुप्पी साधे हुए है। इसके विपरीत, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने अपने घोषणापत्र में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने और लैंड बैंक रद्द करने का वादा किया है।

भाजपा की आदिवासी-विरोधी राजनीति का उदाहरण यह भी है कि उनके घोषणापत्र में सरना कोड का उल्लेख तक नहीं है। जहां झामुमो और INDIA गठबंधन इसे लागू करने की बात कर रहे हैं, वहीं भाजपा के नेता आदिवासियों को सरना और ईसाई समुदायों में बांटने की कोशिश कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने सरना कोड और स्थानीयता नीति को 9वीं अनुसूची में डालने के राज्य प्रस्ताव को रोक रखा है, और पिछड़ों के आरक्षण को 27% करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को भी मंजूरी नहीं दी है।

सामाजिक सुरक्षा और विकास पर दिखा फर्क

भाजपा और झामुमो के घोषणापत्रों में सामाजिक और पोषण सुरक्षा के मुद्दों पर बड़ा अंतर दिखा। मोदी सरकार ने आंगनवाड़ी और मध्याह्न भोजन के बजट में कटौती की है, जबकि झामुमो ने बच्चों को प्रतिदिन अंडा या फल उपलब्ध कराने का वादा किया है। बुजुर्गों को केंद्र सरकार केवल ₹200 प्रति माह पेंशन देती है, जबकि हेमंत सरकार ₹800 दे रही है और इसे ₹2500 तक बढ़ाने का ऐलान किया है। झामुमो ने पेंशनधारियों की संख्या 6.6 लाख से बढ़ाकर 30 लाख कर दी है।

INDIA गठबंधन ने राशन की मात्रा 5 किलो से बढ़ाकर 7 किलो करने की बात की है, जबकि भाजपा इस पर भी मौन है।

बांग्लादेश को बिजली, झारखंड अंधेरे में

अभियान ने अडानी पावर प्रोजेक्ट का मुद्दा उठाते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने आदिवासियों की जमीन का जबरन अधिग्रहण कर झारखंड को घाटे में रखा और बांग्लादेश को बिजली दी। संथाल परगना को बिजली से वंचित रखकर बांग्लादेश को लाभ पहुंचाना भाजपा की दोहरी राजनीति को दर्शाता है।

सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति

अभियान के अनुसार, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, और भाजपा नेताओं ने सांप्रदायिक भाषणों से चुनावी माहौल को खराब किया है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने झारखंड को तोड़कर संथाल परगना को अलग करने का सुझाव तक दे डाला। भाजपा की सोशल मीडिया रणनीति पर शोध रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि करोड़ों रुपये खर्च कर फर्जी अकाउंट के माध्यम से नफरत और झूठ फैलाया जा रहा है।

जनता का विश्वास जन मुद्दों पर

अभियान के प्रतिनिधियों का मानना है कि जैसे पहले चरण में जनता ने नफरत की राजनीति को नकारा, वैसा ही दूसरे चरण में भी होगा। झारखंड के आदिवासी और मूलवासी जल-जंगल-जमीन और अस्तित्व के सवालों को प्राथमिकता देते हुए लोकतंत्र और अपने अधिकारों की रक्षा करेंगे।

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