कभी राष्ट्रीय दलों की पसंद, आज क्षेत्रीय पार्टियों का सीट बना गिरिडीह
झारखंड मुक्ति मोर्चा और आजसू में मुकाबला, जयराम की भी पहचान बनाने की कोशिश। सीपी के सामने मथुरा और जयराम ही नहीं, भाजपा के कार्यकर्ताओं को साथ लेने की भी चुनौती

गिरिडीह: “नोमिनेश्न के बाद अब तक, जितने दिन हमारे ‘माननीय’ (सांसद) क्षेत्र में दिख रहे, उतना तो वो पिछले पाँच सालों में कभी इतने लंबे वक़्त तक नहीं दिखे।“ गिरिडीह लोकसभा जहां, 25 मई को मतदान होना है, प्रचार खत्म होने के ठीक एक दिन पहले, एक मतदाता ने अपना नाम नहीं छापे जाने के एवज में बताया।
असल में ये भाजपा कार्यकर्ता हैं और ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें भाजपा का आजसु के लिए फिर से गिरिडीह सीट छोड़ना और सांसद चन्द्रप्रकाश चौधरी का दुबारा गिरिडीह से चुनाव लड़ना सही फैसला नहीं लगा।
रामगढ़ के रहने वाले सांसद महोदय, का गिरिडीह की जनता के बीच नहीं होने से आम लोगों को जो परेशानी हुई, वो तो हुई ही पर भाजपा के कार्यकर्ता ज्यादा मायूस हुए। आजसू को ये सीट दिये जाने से पहले भाजपा गिरिडीह से पाँच बार जीत चुकी थी।
और बात सिर्फ क्षेत्र में मौजूद होने की भी नहीं, केंद्र में भाजपा और मोदी की सरकार होने के बावजूद भी कोई बड़ा काम नहीं होना, भी एक वजह से सांसद चौधरी को ‘अनपॉपुलर’ बना दिया है।
केंद्र में भाजपा की सरकार और रेल मंत्रालय के ट्रेनों के विस्तार के दावों के बीच गिरिडीह को कोलकाता और पटना से जोड़ने वाले वर्षो पुराने तीन कोच न सिर्फ सांसद महोदय के कार्यकाल में बंद हो गए, बल्कि चैम्बर ऑफ कॉमर्स के प्रयासों के बावजूद, गिरिडीह को कोलकाता-पटना से जोड़ने के लिए कोई नई ट्रेन और न किसी ट्रेन का ठहराव ही हुआ।
भाजपा के नेताओं की तरह, आजसु उम्मीदवार का प्रचार भी जो राम को लाये हैं, हम उनको लाएँगे के गाने के साथ हो रहा। आजसु के नेता के न काम का ज़िक्र हो रहा और न क्षेत्रीय पार्टी होने के नाते झारखंड से जुड़े आम आदमी के किसी मुद्दे की बात हो रही।
इंडिया गठबंधन के मथुरा प्रसाद महतो से मुकाबला
अपने एंटी-इंकम्बेंसी को झेल रहे चन्द्रप्रकाश चौधरी का सामना इस बार जेएमएम के मथुरा प्रसाद महतो से है। महतो, पार्टी के तीन बार के विधायक हैं, टुंडी विधानसभा से। टुंडी के अलावा बाघमारा (दोनों धनबाद ज़िला), गोमिया और बेरमो (बोकारो), डुमरी और गिरिडीह (गिरिडीह ज़िला) के छह विधानसभाओं- से मिल कर बना है गिरिडीह लोकसभा। इनमें तीन (टुंडी, डुमरी और गिरिडीह) से जेएमएम के विधायक हैं, वहीं बेरमो से सहयोगी कांग्रेस, गोमिया से आजसू, और उसके सहयोगी बीजेपी के विधायक हैं बाघमारा से।
टुंडी विधायक को इंडिया गठबंधन का साथ होना, उनकी दावेदारी को और मजबूत बना रहा है। पिछले दो बार से स्वर्गीय डुमरी विधायक जगरनाथ महतो जेएमएम से उम्मीदवार रहे थे, पर इंडिया से जुड़े पार्टियों जैसे कांग्रेस, राष्ट्रिय जनता दल, सीपीआईएमएल और आम आदमी पार्टी के जमीनी स्तर पर पहली बार प्रभाव दिख रहा, जिसका लाभ मथुरा महतो को मिल सकता है।
एक वक़्त था जब गिरिडीह से राष्ट्रीय पार्टियों के नेता चुन के संसद पहुँचते थे। कांग्रेस और भाजपा 5-5 बार यहाँ से जीत चुकी है, पर अब क्षेत्रीय पार्टियाँ यहाँ चुनाव लड़ रही हैं। छठे चरण में हो रहे गिरिडीह में चुनाव में राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता अपने गठबंधन प्रत्याशी के प्रचार के लिए भी नहीं आया।
जयराम का तड़का
जयराम महतो, 29 साल का खातिहानी आंदोलन से जुड़े युवा की पहचान तो झारखंड की राजनीति में सिर्फ दो साल की है, पर झारखंड भाषा-खातिहान संघर्ष समिति के बैनर के तहत जयराम भी अपने 10 और साथियों के साथ गिरिडीह से लोकसभा के उम्मीदवार बन चुके हैं।
जयराम की सभाओं में वैसे तो भीड़ जुट रही है, पर जयराम का सीधे लोकसभा चुनाव लड़ना, सभाओं में होने वाले खर्च के स्रोत का पता नहीं होना, कई सवालों को जन्म दे रहा। वहीं जयराम के पार्टी के उपाध्यक्ष का धनबाद भाजपा कैंडिडेट को समर्थन करने का ऑडियो वायरल होने से मतदाताओं का जयराम के साथ ट्रस्ट इश्यू बनता दिख रहा।
चन्द्र प्रकाश से जब जयराम के बारे में पूछा गया कि क्या वो आजसु को नुकसान पहुँचा सकता है तो सांसद का जवाब था, कुछ नहीं होगा और ऐसे कई लोग मैदान में होते हैं।
जहां चुनाव में जाति के समीकरण की बात आती है, तो गिरिडीह लोकसभा के तीनों प्रमुख उम्मीदवार एक ही जाति कुर्मी से आते हैं।
अब ये देखना रोचक होगा कि, 25 मई को मतदाता जयराम या जय श्री राम (आजसू के उम्मीदवार जिस उद्धघोष का ज्यादा सहारा ले रहे) या झारखंडी जोहार (जेएमएम उम्मीदवार महतो के), किसका अभिनंदन स्वीकार करते हैं और संसद भेजते हैं।