दिलचस्प मुक़ाबला: हेमंत सोरेन का दाहिना हाथ माने जाने वाले जेएमएम उम्मीदवार और 2 बार विधायक रहकर मंत्री नहीं बन सके भाजपा प्रत्याशी के बीच

Date:

Share post:

गिरिडीह: झारखंड विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के मतदान में जिन विधानसभा में वोटिंग होनी है, उन सब में सबसे खास महत्व वाली सीटों में से एक गिरिडीह विधान सभा है।

वैसे गिरिडीह ज़िला के राजनीतिक महत्व को इस तरह समझा जा सकता है के इस ज़िले ने झारखंड को पहला मुख्यमंत्री दिया।

2014 से यहाँ से निर्भय कुमार शाहाबादी विधायक हैं, जो दूसरी बार चुन के आए। इस बार शाहाबादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जीते थे, और पहली बार झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) से जीत कर आए थे। पर जब पिछले चुनाव में शाहाबादी जीते तो वो सिर्फ अकेले नहीं, बल्के गिरिडीह ज़िला से तीन और विधायक भाजपा से जीत कर झारखंड विधान सभा गए थे। और पूरे गिरिडीह ज़िला के लोगों को लगा के ज़िला से एक मंत्री जरूर बनेगा। शाहाबादी जो दूसरी बार जीते थे वो प्रबल दावेदार थे, पर भाजपा जिसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला था, उसने बहुमत तो जुगाड़ कर लिया, लेकिन प्रदेश के मुखिया, रघुवर दास ने कभी बारहवां कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया।

झारखंड कैबिनेट सिर्फ 11 मंत्रियों से पूरे पाँच साल चला जो असंवैधानिक था। और इससे 68 साल के शाहाबादी के मंत्री बनने की आस पूरी नहीं हो पायी।

वहीं दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी हैं सुदिव्य कुमार सोनू। सोनू, पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर थे और 10 हज़ार से कम वोटों के अंतर से शाहाबादी से हारे थे।

सोनू, जेएमएम के संस्थापक और गुरुजी के नाम से मशहूर शिबू सोरेन के परिवार से काफी करीबी माने जाते हैं। सोनू अब जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के साथ भी कई महतवपूर्ण मौके पर साथ नज़र आए है। जेएमएम उम्मीदवार सोनू के प्रचार के लिए भी दोनों, शिबू सोरेन और हेमंत गिरिडीह आए।

हालांकि जब सोनू से ईन्यूज़रूम ने ये पूछा के उनके सोरेन परिवार से नजदीकी का लाभ गिरिडीह कि जनता को मिलेगा, तो सोनू का जवाब था, “मैं 30 सालों से जेएमएम का कार्यकर्ता रहा हूँ और जब आप जूतों की तरह पार्टियाँ नहीं बदलते हैं तो आपकी पार्टी फॉरम पे सुनी जाती है। वैसे इलैक्शन जीतना और मंत्री बनना अलग बात है, पर जब भी मैंने अपने इलाके की बात रखी है, इसे ध्यान से सुना भी गया है और माना भी गया है”।

एक दूसरी बात जिसे गिरिडीह के मतदाता भूल नहीं पा रहे हैं कि जब शाहाबादी 2014 में चुने गए उस वक़्त नरेंद्र मोदी की सरकार दिल्ली में बन गयी थी और गिरिडीह से भाजपा के सांसद, रघुवर दास की सरकार, बाद में मेयर, उप मेयर सभी जगह बस भाजपा ही थी।

पर गिरिडीह जो विकास के निचले पैदान पर है, यहाँ कोई बड़ा काम नहीं हुआ। और तमाम तरह की समस्या जल संकट, लाइट का जाना आम बात बन गयी, प्रदूषण, शहरी इलाको की सड़कों का बुरा हाल, स्वास्थ सेवाओं का बुरा हाल तो सब जानते हैं। और तो और जो ऑफिसर अच्छा काम कर रहे थे उनका ट्रान्सफर विधायक-मेयर के वजह से होना चलता रहा।

प्रचार के आखिरी दिन, निर्भय शाहबादी के लिए वोट मांगने गृहमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी गिरिडीह पहुंचे।

अब 16 दिसम्बर जो सिर्फ दो दिनों की बात है, वो गिरिडीह के लिए बदलाव लेकर आता है या पुराने चेहरे को दुहराता है, यह 23 दिसंबर को पता चल ही जायेगा।

spot_img

Related articles

How the Babri Masjid Demolition Became a Turning Point in India’s Constitutional Decline

Thirty-three years after the demolition of the Babri Masjid, the event occupies a troubled and unresolved position in...

Babri Demolition’s Echo in 2025: Why 6 December Still Defines the Muslim Experience in India

There are dates in a nation’s history that refuse to stay confined to calendars. They do not fade...

“Bring Her Home”: SC Orders Return of Pregnant Sunali Khatun ‘Dumped’ Across Bangladesh Border

Delhi/Kolkata: After months of uncertainty and anguish, a ray of hope broke through on December 3, when the...

Unregulated Access, Unchecked Power: The Hidden Dangers of India’s Mandatory Sanchar Saathi App

Delhi: The Government of India’s directive requiring the preinstallation of the Sanchar Saathi application on all smartphones marks...