झारखंड

गिरिडीह के अधूरे वादे: डबल इंजन सरकार और विश्वगुरु के दिखाये सपने दफन हो गए

रेलवे कनेक्टिविटी में राजनीतिक उपेक्षा की कीमत गिरिडीह के लोगों को चुकानी पड़ रही है

गिरिडीह/कोलकाता: जल्द ही, 17वीं लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा करेगी और चुनाव आयोग अगले कार्यकाल के लिए नए संसद सदस्यों को चुनने के लिए मतदान की तारीखों की घोषणा करेगा। गिरिडीह जिले में दो संसदीय क्षेत्र, गिरिडीह और कोडरमा शामिल हैं, दोनों केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से संबंधित हैं। लेकिन फिर भी गिरिडीह न तो कोलकाता और न ही पटना से जुड़ा है।

गिरिडीह के लगभग 25 लाख लोग निकटतम मेट्रो शहर और बिहार की राजधानी तक पहुंचने के लिए या 50 किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर धनबाद, मधुपुर या पारसनाथ जैसे अन्य स्टेशनों से ट्रेन, बसों या निजी वाहनों पर निर्भर हैं।

गिरिडीह में चार स्टेशन हैं- गिरिडीह, न्यू गिरिडीह, पारसनाथ और हज़ारीबाग़ रोड। इनमें गिरिडीह स्टेशन 1871 से है, लेकिन इसे कभी इतना विकसित नहीं किया गया के ये सुपरफास्ट ट्रेन देख पाये।

विडंबना यह है कि गिरिडीह के जिन निवासियों के पास अपने शहर से कोलकाता और पटना जाने के लिए कोई ट्रेन नहीं है, वे निकटतम स्टेशनों-धनबाद, मधुपुर और पारसनाथ- से ट्रेन लेते हैं, लेकिन इन तीन स्टेशनों पर भी वंदे भारत ट्रेनों का स्टॉपेज नहीं मिला, जिनका उद्घाटन हाल के दिनों में बड़ी संख्या में किया गया।

12 मार्च को भी, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 नये वंदे भारत ट्रेनों की शुरुआत की, लेकिन कोई भी गिरिडीह के नजदीकी स्टेशनों पर नहीं रुकेगी।

लोगों ने डबल इंजन की सरकार बनायी लेकिन गिरिडीह को शहरों को जोड़ने वाला इंजन नहीं मिला

2014 के बाद, जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में आई, तो भाजपा ने लोगों से डबल इंजन की सरकार – राज्य और केंद्र दोनों में एक ही पार्टी की सरकार – स्थापित करने के लिए राज्य विधानसभाओं में उन्हें वोट देने का आग्रह किया। यदि हम ‘इंजन’ को रूपक के रूप में उपयोग करें, तो 2014-2019 के बीच डबल इंजन सरकार होने के बावजूद, गिरिडीह को एक इंजन नहीं मिला, जो यहां के लोगों को भारत की पहली राजधानी और बिहार की राजधानी से जोड़ सके।

2019 के बाद, 17वीं लोकसभा के दौरान, भारत के लिए विश्वगुरु नामक एक नया शब्द गढ़ा गया, जिसमें दावा किया गया कि भारतीय समृद्ध हो रहे हैं और विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

गिरिडीह जिला भारतीय रेलवे वंदे भारत ट्रेनें

गिरिडीह भाजपा का गढ़ पर रेलवे सुविधा से वंचित

लेकिन इस अवधि के दौरान भी, आजसू और भाजपा के दो सांसद- क्रमशः चंद्र प्रकाश चौधरी और अन्नपूर्णा देवी, जिले को कोलकाता और पटना से जोड़ने में मदद नहीं कर सके। पिछले तीन दशकों से कोयला और अभ्रक खनिज समृद्ध दो क्षेत्रों से ज्यादातर समय बीजेपी के ही सांसद रहे हैं. लेकिन हर राजनीतिक परिस्थिति अपने पक्ष में जाने के बाद भी भाजपा सांसदों ने गिरिडीह को भारतीय रेलवे के मानचित्र पर प्रमुखता से लाने की कभी कोशिश नहीं की।

न्यू गिरिडीह और रांची के बीच एकमात्र इंटरसिटी ट्रेन का परिचालन 2023 में शुरू हुआ। 12 मार्च को उसी ट्रेन को आसनसोल तक बढ़ा दिया गया।

इस संबंध में काम करने वाले चैंबर ऑफ कॉमर्स ने भारत के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात कर गिरिडीह-रांची के बीच इंटरसिटी शुरू होने पर संतोष जताया है।

“कम से कम इतना तो हो हुआ, के हमें एक इंटरसिटी ट्रेन मिली और इसे आसनसोल तक बढ़ा दिया गया। हम कोलकाता और पटना के बीच ट्रेनों के लिए अपना प्रयास जारी रखेंगे,” प्रदीप अग्रवाल, क्षेत्रीय उपाध्यक्ष, एफजेसीसीआई और जेडआरयूसीसी (पूर्वी रेलवे) के सदस्य ने ईन्यूजरूम को बताया।

हालाँकि, लोग राजनेताओं से संतुष्ट नहीं हैं बल्कि निराश हैं, जिनहे वो वोट देकर संसद भेजते हैं। “अब गिरिडीह से कोलकाता जाना ऑस्ट्रेलिया जाने जैसा है,” चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म के एक कर्मचारी ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिसका कार्यालय गिरिडीह और कोलकाता दोनों में हैं।

कुछ विपक्षी नेताओं ने भी इस मुद्दे को उजागर किया। बगोदर विधायक विनोद सिंह ने फेसबुक पर पोस्ट कर कहा कि वंदे भारत ट्रेनों का इतना प्रचार है, फिर भी गिरिडीह जिले में किसी भी वंदे भारत का स्टॉपेज नहीं है।

 

ये इंग्लिश में प्रकाशित लेख का अनुवाद है

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He loves doing human interest, political and environment related stories.

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