देश का सबसे बड़ा घोटाला है मोदी सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना
चुनावी बॉन्ड चंदे के कारण फार्मा कंपनियों को विशेष छूट - स्क्रॉल, द हिंदू और न्यूज़मिनट की जांच में पता चला कि कैसे चुनावी बॉन्ड से भाजपा को चंदा देने के कारण अनेक फार्मा कंपनियों के उल्लंघनों को रोकने के प्रति सरकारी संस्थाएं निष्क्रिय रही। घटिया व खतरनाक दवाओं को बाजार में बिकने दिया गया, जिससे देश में लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है
रांची: इलेक्टोरल बॉन्ड्स घोटाला देश का, और शायद दुनिया का, अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला है। चुनावी बॉन्ड से रु 16,500 करोड़ चंदा जो कंपनियों ने राजनैतिक दलों को दी, वो केवल रिश्वत या kickbacks की राशि है जिसके बदले कंपनियों को Quid pro quo में लाखो करोड रुपये के ठेके/प्रोजेक्ट दिये गए। रु 16,500 करोड़ के बॉन्ड्स में से 50% (8251 करोड़ रु) केवल भाजपा को चंदा दिया गया. इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले ने भाजपा के भ्रष्टाचार मुक्त भारत जुमले का पर्दाफ़ाश किया है। यह बातें सर्वोच्च न्यायलय के अधिवक्ता प्रशांत भूषण और कॉमन कॉज से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भरद्वाज ने प्रेस वार्ता में कही। यह दोनों इलेक्टोरल बॉन्ड मामले के क़ानूनी केस में जुड़े रहे हैं। दोनों विशेषज्ञ लोकतंत्र बचाओ 2024 अभियान के विशेष आमंत्रण पर रांची में प्रेस वार्ता को संबोधित किये और निम्न तथ्य पेश किये।
मोदी सरकार ने चंदा देने वाले के गुमनामी और चंदे के विवरण को छुपाने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम में संशोधन किया था। 15 फरवरी, 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया और चुनावी बॉन्ड की आगे की बिक्री पर रोक लगा दी। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने चुनावी बॉन्ड लाने के लिए विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया।
RTI से मिली सूचना से पता चला कि आरबीआई और चुनाव आयोग सहित विभिन्न प्राधिकरणों ने चुनावी बॉन्ड योजना लागू होने से पहले इसके खतरों को उजागर किया था। उन्होंने कहा था कि इससे पारदर्शिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, सिस्टम में मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन में वृद्धि होगी और शेल (shell) कंपनियों के माध्यम से फंडिंग को भी बढ़ावा मिलेगा। मोदी सरकार ने इन चिंताओं को नजरअंदाज किया, जनता के समक्ष नहीं प्रस्तुत किया और योजना को लागू कर दिया।
सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के बाद SBI और चुनाव आयोग द्वारा बॉन्ड्स के आंकड़ों को सार्वजानिक किया गया जिसके आधार पर कई पत्रकारों व नागरिकों ने आंकलन व जांच की. इससे निम्न रुझान साफ़ हैं।
1) जबरन वसूली – कई कंपनियां जो ईडी (ED), सीबीआई (CBI) और आईटी विभाग (IT Department) के जांच के दायरे में थीं, उन्होंने चुनावी बॉन्ड्स खरीदे और उसके प्रमुख हिस्से को भाजपा को चंदा दिया। राज्य एजेंसियों द्वारा कारवाई और उस राज्य में सत्तारूढ़ी दल को चंदा देने के भी कुछ उदाहरण पाए गए हैं। उदाहरण के लिए, हैदराबाद स्थित व्यवसायी सरथ रेड्डी जो अरबिंदो फार्मा लिमिटेड के निदेशक हैं, को ED ने 10 नवंबर, 2022 को शराब घोटाला मामले में गिरफ्तार किया था। उनकी कंपनी अरबिंदो फार्मा ने 15 नवंबर को 5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे और बीजेपी को दिए। मई 2023 में जब रेड्डी की जमानत याचिका की सुनवाई हुई तब ED ने इसका विरोध नहीं किया। जेल से रिहा होने के बाद, रेड्डी जून, 2023 में इस मामले में सरकारी गवाह बन गए। 8 नवंबर, 2023 को अरबिंदो फार्मा ने बॉन्ड के माध्यम से भाजपा को 25 करोड़ रुपये का चंदा दिया. उसी दिन और 25 करोड़ रुपये दो कंपनियों- यूजिया फार्मा स्पेशलिटीज लिमिटेड (15 करोड़ रुपये) और एपीएल हेल्थकेयर (10 करोड़ रुपये)- के माध्यम से भी भाजपा को दिया गया, जो कि अरबिंदो फार्मा की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। रेड्डी का बयान उन सबूतों का हिस्सा है जिनका इस्तेमाल कथित शराब घोटाला मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है।
2) संभावित लाभ के एवज में दिया गया चंदा (Quid pro quo) – कई कंपनियों द्वारा जब चुनावी बॉन्ड खरीदा गया, उसी समय के आसपास उन्हें बड़े ठेके दिए गए। उदाहरण के लिए, इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच में पाया गया कि मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड, जो चुनावी बॉन्ड का दूसरा सबसे बड़ा दानकर्ता है, ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कुल 966 करोड़ रुपये का दान दिया।इसमें से लगभग 60 प्रतिशत भाजपा को मिला। कंपनी ने अप्रैल 2023 में 140 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे, जिनमें से 115 करोड़ रुपये भाजपा को दिया गया। इस से एक महीने पहले कंपनी को मुंबई में 14,400 करोड़ रुपये की सुरंग परियोजना दी गई थी।
3) मनी लॉन्ड्रिंग में चुनावी बॉन्ड का प्रयोग – घाटे में चल रही कंपनियाँ चुनावी बॉन्ड्स के माध्यम से भारी मात्रा में चुनावी चंदा दिए हैं. अनेक कंपनियाँ अपने लाभ से कई गुना ज्यादा दान किये हैं। जाँच एजेंसियों की निगरानी सूची में शामिल अनेक कंपनियाँ बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिए हैं. यह सब संकेत देता है की चुनावी बॉन्ड्स योजना में शेल (shell) कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन के लेन-देन को प्रोत्साहन मिल रहा था। उदाहरण के लिए- द हिंदू की एक जांच में पाया गया कि 33 कंपनियों ने बॉन्ड्स से कुल ₹576.2 करोड़ का चंदा दिया, जिसमें से ₹434.2 करोड़ (लगभग 75%) भाजपा को मिला। इन 33 कंपनियों का कुल घाटा ₹1 लाख करोड़ से ज़्यादा था।
4) चुनावी बॉन्ड चंदे के कारण फार्मा कंपनियों को विशेष छूट – स्क्रॉल, द हिंदू और न्यूज़मिनट की जांच में पता चला कि कैसे चुनावी बॉन्ड से भाजपा को चंदा देने के कारण अनेक फार्मा कंपनियों के उल्लंघनों को रोकने के प्रति सरकारी संस्थाएं निष्क्रिय रही। घटिया व खतरनाक दवाओं को बाजार में बिकने दिया गया, जिससे देश में लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है।
5) नव-निर्मित कंपनियाँ राजनीतिक दलों को बड़ी रकम दी हैं- कंपनी अधिनियम की धारा 182(1) किसी भी सरकारी कंपनी या 3 साल से कम समय से अस्तित्व में रही कंपनी को राजनीतिक चंदा देने से प्रतिबंधित करती है। इसके बावजूद, कम से कम 20 नए कंपनियों ने तीन साल के अन्दर ही चुनावी बॉन्ड्स खरीदा
वक्ताओं ने कहा कि बॉन्ड्स घोटाले में हुए व्यापक घोटाले का पर्दाफाश होना ज़रूरी है. इसके लिए अदालत की निगरानी में SIT के गठन के लिए कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है।
ये लोकतंत्र बचाओ 2024 अभियान द्वारा प्रशांत भूषण और अंजलि भरद्वाज के प्रेस वार्ता का विज्ञप्ति है जिसे यहाँ अपने पाठकों के लिए पब्लिश किया गया है।
दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कोलकाता में भी एक प्रेस वार्ता इसी विषय पे की थी, जिसे इंग्लिश में यहाँ पढ़ सकते हैं।