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वंदे भारत ट्रेनों के विस्तार के बीच, एक जोड़ी ट्रेन के लिए तरसती गिरिडीह की आवाम

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गिरिडीह: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नौ वर्षों के कार्यकाल में विकास के बहुत दावे किए गए और अब वंदे भारत ट्रेन को लेकर भी रेलवे के विकास की गाथा गाई जा रही है।

लेकिन इन सब के बीच झारखंड का ऐतिहासिक शहर गिरिडीह, देश के उन शहरों में शुमार है जहाँ के लोगों को देश की राजधानी दिल्ली, अपने राज्य की राजधानी रांची सहित महानगरों जैसे कोलकाता का सफर करने के पहले 43 से 60 किलोमीटर सङ्क मार्ग का सफर तय करना पड़ता है। जिसमें लोगो का अतिरिक्त समय और पैसा खर्च होता है तब जाकर उन्हें भारतीय रेल की सुविधा प्राप्त होती है।

ऐतिहासिक शहर पर देश के रेल मानचित्र में स्थान नहीं

उल्लेखनीय है कि गिरिडीह के लोगों की दशको से गिरिडीह-कोलकाता, गिरिडीह-पटना ट्रेन परिचालन की मांग है। दोनों शहरों से गिरिडीह का आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव सदियों पुराना है। इसके अलावा व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी गिरिडीह-कोलकाता का अतंयंत मजबूत गठजोड़ है। गिरिडीह के माईका निर्यातकों, स्टील कंपनियों, जड़ीबूटी के कारोबारियों के कमर्शियल कार्यालय कोलकाता में स्थित है। बात कोलकाता की, की जाय जहाँ अस्सी के दशक तक गुरुदेव ऱविन्द्रनाथ टैगोर, महान वैज्ञानिक सर जेसी बोस, डा० पीसी महलनविस, क्रांतिकारी अरूणा आसफ अली सहित कई अन्य महान हस्तियों का गिरिडीह आना-जाना लगा रहा और इन लोगों ने हेल्थ रिज़ॉर्ट माने जाने वाले शहर को अपना कर्मस्थली भी बनाया पर बाद के दिनों में देश के रेलवे मानचित्र पे गिरिडीह का नहीं होने से आवागमन में दुश्वारी के वजह कर आम आदमी और अधिकारी भी गिरिडीह आना या पोस्टेड होना पसंद नहीं करते। इसी प्रकार से पटना-बिहार की एक बड़ी आवादी एकीकृत बिहार के समय से गिरिडीह काम के अलग-अलग विभागों में पदस्थापित रही है। बड़ी संख्या में बिहार के लोग स्थानीय कोयला, अभ्रख उद्योग एंव स्टील फैक्ट्रियों में नियोजित हैा जिनका पर्व, त्योहारों के अलावा शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में पटना और बिहार के दूसरे शहर आना जाना लगा रहता है।

इन सब के वावजूद गिरिडीह से कोलकाता, पटना के लिए आजादी क़े 75 सालों बाद भी एक जोड़ी ट्रेन का परिचालन नहीं होना क्षेत्र के जन प्रतिनिधियो का जनता की ज़रूरतों के प्रति अविश्वास का भाव दर्शाता है। हालांकि सन अस्सी के दशक में काँग्रेस के शासन में गिरिडीह-पटना, गिरिडीह-कोलकाता के लिए रात्री में दो अतिरिक्त बोगियों का परिचालन शुरू हुआ जिससे लोगों को काफी राहत मिली थी। लेकिन कोविड काल में दोनों बोगियों का परिचालन बंद हुआ। कहा जा रहा है कि रेल मंत्रालय ने अतिरिक्त कोचों का परिचालन व्यवस्था को बंद कर दिया हैा बोगियो के परिचालन बंद होने से गिरिडीह के यात्रियों को कोलकाता, पटना ट्रेन पकड़ने के लिए मधुपुर 55 किलोमीटर, पारसनाथ 43 किलो मीटर और धनबाद रेल स्टेशन तक जाने के लिए 60 किलो मीटर सड़क मार्ग का सफर तय करना पड़ता हैा जिसमें समय और पैसो का अतिरिक्त खर्च होता हैा उक्त परेशानी से बचने के लिए आमयात्री बसों से सफर करते हैं। कोलकाता के लिए गिरिडीह से रोजाना 5-6 बसें अलग-अलग स्थानों से खुलती हैं।

रेल (अ)सुविधा वाला शहर

हालांकि गिरिडीह सदर क्षेत्र में दो रेलवे स्टेशन है। अंग्रेजों के जमाने में 1871 में बना गिरिडीह का पहला रेलवे स्टेशन शहर के बीच स्थित है। कोविड काल में करोड़ों खर्च कर इस रेलवे स्टेशन का आधुनिकीकरण किया गया। उम्मीद की गई थी कि अब कुछ जोड़ी ट्रेनों का परिचालन शुरू होगा लेकिन इसके विपरित गिरिडीह-कोलकाता, गिरिडीह-पटना चलने वाली रात्री कोचों का परिचालन जो पहले लॉकडाउन में बंद किया गया, दुबारा चालू ही नहीं किया गया, हमेशा के लिए बंद हो गया।

वर्तमान में इस स्टेशन से मात्र गिरिडीह-मधुपुर सवारी ट्रेन रोजाना चार फेरा करती है।

दूसरा न्यु गिरिडीह रेल स्टेशन तीन वर्षों पूर्व चालू हुआ। इस स्टेशन की त्रासदी यह है कि मात्र एक जोड़ी पैसेंजर ट्रेन (कोडरमा-गिरिडीह) का रोजाना आवागमन होता हैा

लंबे समय से हो रही अनदेखी

इस संबंध में गिरिडीह के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने सिर्फ इतना कहा कि इस समस्या से वे अवगत हैं और प्रयासरत है। भरोसा जताते हुए कहा कि जल्दी ही कुछ न कुछ अच्छा होगा। लेकिन सांसद श्री चौधरी ने इस दिशा में उनके द्वारा क्या प्रयास किये गये इस बाबत कुछ नहीं बताया।

इस बीच गिरिडीह के आवाम से जुड़ी इस समस्या को लेकर, फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स के आंचलिक उपाध्यक्ष एवं जेडआरयूसीसी (Eastern Railway) कोलकाता रेलवे के जोनल सदस्य प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि झारखंड फेडरेशन एंव चेम्बर ऑफ कॉमर्स लगातार इस दिशा में प्रयासरत है। इसी वर्ष केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी के माध्यम से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात करने की कोशिश हो रही है। कोलकाता से पटना वाया गिरिडीह के लिए नई रेल सेवा शुरू करने का अनुरोध प्रस्ताव दिया गया है। उन्होने कहा कि इसी सिलसिले में जुलाई माह में एक मीटिंग की मांग रेलवे मंत्रालय से की गई है।

गौरतलब है कि विश्व के मानचित्र में उम्दा क़िस्म के कोयला और अभ्रक की खदानों केलिए विख्यात एवं वर्तमान में देश के पूर्वी क्षेत्र में सबसे बड़ी स्टील मंडी के रूप में शुमार गिरिडीह में रेल सेवा को लेकर क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने कभी संजीदा प्रयास नहीं किया। गिरिडीह से पाँच दफे रविन्द्र पाण्डेय सांसद निर्वाचित हुए और उस वक़्त ‘डबल इंजिन’ की सरकार थी और अब भी एनडीए के ही संसद चार साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं।

जनप्रतिनिधियों ने थोडी भी इच्छा शक्ति दिखायी होती तो गिरिडीह के लोगों की दशकों से चली आरही उक्त समस्या का समाधान अब तक हो गया होता। इस बाबत जिला कांग्रेस के कार्यकारी प्रमुख सतीश केडिया ने कहा कि काँग्रेस शासन में गिरिडीह के पूर्व सांसद डा० सरफराज अहमद के प्रयास से सन अस्सी के दशक में गिरिडीह से कोलकाता, पटना के लिए दो अतिरिक्त कोच की व्यवस्था हुई थी। लेकिन भाजपा शासन में कोच व्यवस्था बंद कर दिये जाने से रोजाना कोलकाता-पटना जाने वाले सैकड़ों लोगों को कई प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन मौका परस्त नेताओं को जनता की इस अति गंभीर समस्या से कोई मतलब नहीं है।

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