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क्रिकेट पसंद करने के देश में, फुटबॉल को दिल में बसाने वाले एक अंतरराष्ट्रीय कॉमेंटेटर की कहानी

गौस मोहम्मद जिन खेलों में टिप्पणीकार की भूमिका निभाई, उन खेलों के खिलाड़ियों और अधिकारियों से उन्हे बहुत प्यार मिला। बहुत बड़े-बड़े हस्तियों से मिलना हुआ पर इतना पैसा कभी नहीं कमा पाए के उनके पास दिल्ली जैसे शहर में अपना घर हो

जिस देश की धड़कन में क्रिकेट धड़कता हो, उस देश में एक इंसान ने फूटबाल को अपने दिल में बसाया। न सिर्फ वो खेले बल्के, अंतरराष्ट्रीय कॉमेंटेटर भी बने और फीफा वर्ल्ड कप के फ़ाइनल तक में लाइव कमेंट्री की।

इस शख्स का नाम है, गौस मोहम्मद। दिल्ली के रहने वाले, गौस देश के पहले ऐसे कॉमेंटेटर हैं, जिन्होंने सुब्रतो और डूरंड कप में 25-25 सालों तक लगातार कमेंट्री की। कुछ वर्षों तक दिल्ली से डूरंड कप भी खेला।

डूरंड कप को इंडियन आर्मी और सुब्रतो को इंडियन एयरफोर्स आयोजित करती है।

“1979 में जब मैं गुवाहाटी गया था नेशनल के लिए तो मिल्खा सिंह ने खेल को देखकर जालंधर आने और पंजाब टीम से खेलने का न्योता भी दिया था, पर मेरी माँ तैयार नहीं हुई,” अंतरराष्ट्रीय कॉमेंटेटर ने ईन्यूज़रूम को बताया।

गौस, फूटबाल भी खेलते थे और फ्रीलांसर के तौर पे स्पोर्ट्स आर्टिक्ल्स भी लिखा करते थे। एक दिन उनके जानने वाले आरबीएन माथुर ने उन्हे आकाशवाणी में एक कॉमेंटेटर के वेकेंसी के बारे में बताया। पहली बार औडिसन में कुछ बोल नहीं पाये, फिर लेखक रवि दत्त महतो ने दुबारा औडिसन करवाया और फिर उसके बाद गौस ने पीछे मूढ़ कर नहीं देखा।

फुटबॉल अंतरराष्ट्रीय कॉमेंटेटर गौस मोहम्मद
बॉक्सर विजेंद्र के साथ

कनफेडरेसन कप 2005 में ब्राज़ील और अर्जेन्टीना के बीच मुक़ाबले की लाइव कमेंट्री करी। इंग्लिश में सुभाष भौमिक, जो इंडिया से फूटबाल खेल चुके थे, वो किया करते थे उनके साथ टिप्पणी।

2006 के फीफा वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में उन्होने लाइव कमेंट्री की। दिल्ली से गोलकीपर रह चुके, गौस की सबसे खास बात है गेम की समझ और सही उच्चारण। जब फीफा वर्ल्ड कप का लीग मैच हो रहा था तब हर्षा भोगले, जो अब क्रिकेट की दुनिया के बड़े कॉमेंटेटर हैं ने उनसे पूछा था के कौन इस बार का वर्ल्ड कप जीतेगा? गौस ने इटली का नाम लिया था, ये सुन कर हर्षा और दूसरे तमाम कॉमेंटेटरस चौंक गए थे। पर गौस ने कारण भी गिना दिया था, के इटली के खिलाड़ी दूसरे टीम के खिलाड़ियों को ‘तंग’ करते हैं, ‘डिफेंस’ उनका बहुत अच्छा है और गोल मारने के बाद अपनी टीम के खिलाफ गोल होने नहीं देते मतलब ‘आखिर दम’ तक लड़ते हैं। उनकी बात तब सही साबित हुई जब इटली ने फार्म में चल रहे, फ़्रांस के प्लेयर ज़िनेदिन जिदेन को इतना तंग किया के उसने इटली के खिलाड़ी को ‘हैडबट’ कर दिया और खुद खेल से बाहर हो गया। इटली, फ्रांस को हरा चैम्पियन बन गया था।

फीफा के लिए उसके बाद 2010, 2014 और फिर 2018 में भी स्टूडियो से कमेंट्री की।

गौस, हिन्दी, उर्दू और इंग्लिश की मिश्रित ज़ुबान जिसे हिंदुस्तानी कहते हैं, उस भाषा में अपनी कमेंट्री करते हैं।

फुटबॉल के अलावा, हॉकी, वॉलीबॉल और बॉक्सिंग की भी कमेंट्री की। बॉक्सर अखिल और विजेंद्र जब 2008 में बीजिंग में मेडल्स जीते तो कॉमेंटेटर गौस ही थे।

“मैंने कभी क्रिकेट और टेनिस, जो ज्यादा देखा-सुना जाता है भारत में, उसमे कॉमेंटेटर नहीं की। मुझे लगता था इसमे करने के लिया ज्यादा कुछ नहीं होता है। “बाद में मेरे बच्चों ने मुझे बोला भी के मुझे ये करना चाहिए था,” गौस ने बताया।

ऑल इंडिया फुटबॉल एसोसिएशन के सबसे कम उम्र के दो बार ऑब्जर्वर भी रह चुके हैं।

स्टार न्यूज़, एबीपी न्यूज़, एनडीटीवी टीवी ईएसपीएन और भी चैनलों पे भी आ चूके हैं। देश-विदेश में कई शहरों और मुल्कों में अपनी कमेंट्री कर चूके, 61 साल के गौस अभी तेलंगाना भवन में ओएसडी हैं।

पर गौस जिन खेलों में टिप्पणीकार की भूमिका निभाई, उन खेलों में उन्हे सिर्फ प्यार मिला बहुत बड़े-बड़े हस्ती से मिलना हुआ पर इतना पैसा कभी नहीं कमा पाए के उनके पास अपना घर हो।

क्रिकेट के कॉमेंटेटरस को तो देश में विज्ञापन भी मिल जाता है, पर फूटबाल वालों को एक घर भी मिल जाये, देश की राजधानी में तो बड़ी बात होगी।

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He loves doing human interest, political and environment related stories.

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