बोली और कहावतों के सहारे 100 प्रतिशत टीकाकरण करने वाली शाइनिंग कोरोना वारियर्स की “दर्द-भरी” कहानी

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भोपाल। कोरोना की गंभीरता भले ही खत्म हो गई, लेकिन यह आम जनता का पीछा अब भी नहीं छोड़ रहा है। अमेरिका की फर्स्ट लेडी जिल बाइडेन से लेकर भारत के किसी न किसी हिस्से में आज भी एक न एक कोरोना मरीज मिल ही जाता है। हालांकि कोविड का असर और खौफ अब बीते जमान की बात हो गई है, लेकिन इससे निजात पाने की कहानी के अनंत किस्से और किरदार हैं।

“कोरोना की दूसरी लहर के अंतिम दौर में खुद बुरी तरह संक्रमित हो चुकी थीं, यह वही दौर था जब चौतरफा फील्ड-वर्कर्स के संक्रमित होने और मौत की सूचनाएं आ रही थीं। ये वही पेरा-मेडिकल हेल्थ स्टाफ था जो एक घर की चौखट से दूसरे चौखट, एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले, एक गली से दूसरी संकरी गली, एक गांव से दूसरे गांव तक जाकर लोगों को वैक्सीन लगाने के साथ इसकी उपयोगिता समझा भी रहे थे। ये एक जंग थी कोरोना के खिलाफ, जिसमें कई साथियों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया, ” ये कहती हैं 43 वर्षीय मंजू श्रीवास्तव जो नेशनल हेल्थ मिशन एमपी में एएनएम (ऑक्जिलरी नर्सिंग एंड मिडवाइफरी) के तौर पर भोपाल में पदस्थ हैं।

इससे पहले मंजू को कभी एहसास तक नहीं हुआ, न ही कभी बुरे सपने में और ना ही उस वक़्त जब पहली बार अस्पताल में एक कोविड पीड़ित महिला को सांस लेने में असीम तकलीफ झेलते और दम तोड़ते देखा। हालांकि खुद के संक्रमित होते ही बार-बार वही दृश्य उसके सामने आ खड़ा हो जाता।

मंजू को लगा जैसे उसका शरीर धीरे-धीरे-धीरे उससे छूटता जा रहा है। ये वही दौर था जब अपने जिन्दा रहने और कोरोना संक्रमण से बचे रहने को हर इंसान बड़े चमत्कार से कम नहीं मानता था। ये वही भयावह समय था, जब लगभग 50 एएनएम अपनी जान कोरोना से गंवा चुकी थीं और कई अन्य कोरोना से बुरी तरह संक्रमित हो जीवन और मौत के बीच झूल रही थीं।

अभी मंजू की रिकवरी हुई भी नहीं थी कि एक के बाद उनके परिवार वाले कोरोना की चपेट में आ गए। परिवार के 8 में से 5 सदस्य (पिताजी, माँ, भाई, भाभी) संक्रमित हो गए। यहां तक कि घर के बच्चे भी संक्रमण का शिकार हुए।

मंजू दुविधा में थी, वे अपने कोविड पॉजिटिव माता-पिता, भाई-भाभी या परिवार के बाकी मेंबर्स की सेवा करें या कर्तव्य को देखें? आखिरकार वे  परिजनों को कोविड प्रोटोकॉल, दवाओं और दुआओं के भरोसे छोड़कर वापस ड्यूटी पर जा पहुंचीं।

मंजू कहती हैं कि “दवाईयों और सिर्फ एक सोच के साथ मैं ड्यूटी पर वापिस आ गई, कि मुश्किल के इस दौर मेरा लोगों, मोहल्लों और गांवों तक पहुंचना बहुत जरूरी है।”

कोरोना वारियर्स और वैक्सीनेशन कोविड मध्य प्रदेश
कोविड की सेकंड वेव खत्म होने के बाद बाद निवाड़ी जिले के ग्रामीण अंचलों में घर-घर जाकर लोगों का वेक्सीनेशन करतीं एएनएम सुनीता अहिरवार

इसी दौर में, राजधानी से सैकड़ों किलोमीटर दूर ग्रामीण, पिछड़े और आदिवासी इलाकों में दूसरी तरह की जंग चल रही थी। यहां वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट दूर कर लोगों को जीवन के सूत्र में बांधने की दिशा में अलग ही प्रयोग हो रहा था। जनता के बीच पहुंचने के लिए लोकल लेवल पर प्रचलित बुंदेली भाषा और स्थानीय कहावतों के सहारे वैक्सीन को अपनाने की बात को लेकर कुछ एएनएम ने अलग ही अंदाज में जोर देना शुरू किया।

“हमारे इलाके के लोग वैक्सीन लगवाने को राजी ही नहीं थे। मैं अपने सेंटर पर दिन भर इंतजार करती औऱ इक्का-दुक्का लोग ही टीका लगवाने आते।”, लिहाजा आते-जाते लोगों को बुंदेलखंडी कहावत में ताना मारने लगी, जैसे-“रात भर पीसो, पारे से उठाओ” (याने लोगों को जितना भी समझाओ वो मानने को तैयार ही नहीं होते।)” , ये कहना है भोपाल से 350 किलोमीटर दूर बेहद पिछड़े कहे जाने वाले बुंदेलखंड अंचल के निवाड़ी जिले में आने वाली ओरछा तहसील में पदस्थ एएनएम उमा अहिरवार का।

उनके इस ताने पर लोग मजाक उड़ाते और वैक्सीनेशन की खामियां गिनाते, इस पर वे उसी ग्रामीण लहजे में पलटवार करतीं-” जे को काम ओई खों साजे, और करें तो ठेंगा पाजे,” मतलब जिसका जो काम है, वह उसी को करना चाहिए अर्थात वैक्सीनेशन पर नेगेटिव कमेंट मत करो, क्योंकि ये काम साइंटिस्ट, डॉक्टर्स और एक्सपर्ट्स का है।

ये बुंदेली कहावतें धीरे-धीरे असर करने लगीं। देखते ही देखते सेकंड वेव के दौरान ही जिले ने टीकाकरण में कीर्तिमान रच दिया। एक समय जो वैक्सीनेशन सेंटर खाली था, वहां लोगों की भीड़ को कंट्रोल करने के लिए हेल्थ डिपार्टमेंट को पुलिस बुलानी पड़ी।

ठीक उमा की तरह पदस्थ इसी ब्लॉक के कुलुआ सब सेक्टर में पदस्थ एएनएम सुनीता अहिरवार ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं के वैक्सीनेशन के प्रति अनदेखी को दूर करने का काम एक अलग ही अंदाज में कर रही थी।

कोरोना वारियर्स और वैक्सीनेशन कोविड मध्य प्रदेश
मंजू श्रीवास्तव – “कोविड वेक्सीनेशन पूरा होने के बाद भोपाल की एक आंगनबाड़ी में बच्चों और महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सलाह देतीं एएनएम मंजू श्रीवास्तव

सबसे पहले उन्होंने गांव के लोगों से वहां की प्रचलित भाषा के जरिए संवाद शुरू किया। “अपने संबोधन में दाऊ, चाचा, मम्मा (मामा), फुआ (बुआ), नन्नी (नानी), अम्मा और बऊ (माताजी), माईं (मामी), भज्जा (भाई), बब्बा (दादा या बाबा) जैसे संबोधनो के साथ बात शुरू की और कहावतों के साथ समझाने की प्रक्रिया को आरम्भ किया। बातों ही बातों में वे अक्सर मीठी धमकी भरे लहजे में कहतीं – “जितेक के भजन नई, उतेक के मजीरा फूट जे हैं” (यानी कोविड होने पर घर परिवार बर्बाद हो जाता है)

कुलुआ सब सेक्टर में वाले अधीन झिंगोरा, धर्मपुरा, बरवाहा, कुलुआ और बरूआखिरत गांव में कोई वैक्सीनेशन का पहला डोज लेने तक को तैयार न था। पर सुनीता के सम्बोधन और गांव वालों से इस आत्मीय संवाद का असर होने लगा। इन पांच गांवों में कुल 5270 लोगों को कोविड वैक्सीन लगने थे। सुनीता ने इन दोनों सेक्टर में कोविड के दोनों डोज का 100 प्रतिशत वैक्सीनेशन कर दिया।

इतना ही नहीं ये इलाका यूपी की सीमा से सटा है लिहाजा यूपी के लोगों का भी टीकाकरण उमा और सुनीता ने किया।

निवाड़ी जिले के चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर डॉ आरसी मलारिया के मुताबिक उमा और सुनीता जैसी वारियर्स के बलबूते ही उन्हें लोकगीत आल्हा के जरिए लोगों को समझाने का आइडिया भी आया। जिसके तहत लोगों को वैक्सीनेशन के लिए जागरूक करने की खातिर आशा कार्यकर्ताओं और पुरुष कर्मचारियों की टोलियां बनाई गईं, जो बुंदेली माटी की वीरता से जुड़े आल्हा गीत गाकर वैक्सीनेशन का संदेश देते थे। उनके मुताबिक खतरों से जूझने वाली एएनएम अगर रिस्क उठाकर काम नहीं करतीं तो इस पिछड़े इलाके में 100 फीसदी वैक्सीनेशन का आंकड़ा छूना असंभव ही था।

वहीं नेशनल हेल्थ मिशन मध्य प्रदेश के स्टेट वैक्सीनेशन ऑफिसर डॉ संतोष शुक्ला भी स्वीकारते हैं कि कोविड टीकाकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए तमाम संसाधनों में सबसे ज्यादा अहम रोल एएनएम का ही था, जिनकी राज्य में कुल संख्या लगभग 14 हजार है और इनमें 98 फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं।

कोरोना वारियर्स और वैक्सीनेशन कोविड
उमा अहिरवार को उसके काम के लिए सम्मानित किया गया

एमपी में एएनएम की दो कैटेगरी हैं। पहली रेगुलर और दूसरी कॉन्ट्रैक्ट बेस्ड। दोनों श्रेणियों में इनकी संख्या लगभग 7-7 हजार है। रेगुलर एएनएम हेल्थ डिपार्टमेंट के अंडर मे आती हैं। इनकी पोस्टिंग सरकारी अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सिविल अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के हॉस्पिटल्स में होती हैं। ये अस्पताल परिसर के भीतर और यदा-कदा आस-पास के इलाके में जाकर स्वास्थ्य सेवाएं देती हैं। इधर, संविदा पर काम करने वाली एएनएम, नेशनल हेल्थ मिशन की कर्मचारी होती हैं और एक निश्चित इलाके में आंगनबाड़ी, स्कूल के अलावा घर-घर जाकर टीके लगाने का काम करती हैं। दोनों के बीच वेतन और सुविधाओं में काफी अंतर है। सरकारी एएनएम के मुकाबले एनएचएम की एएनएम को काफी कम वेतन मिलता है। कोविड से लड़ने के बाद अब एएनएम का तबका अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है।

रेगुलर एएनएम को भले ही वेतन ज्यादा मिल रहा है, लेकिन उन्हें सालों से प्रमोशन नहीं मिला है। इसके खिलाफ वे सड़कों पर उतरकर और अपने बाल कटाकर विरोध तक जता चुकी हैं। स्टेट गवर्नमेंट ने 27 अप्रैल 2023 को कोरोना के दौरान इनकी असाधारण सेवाओं को देखते हुए आश्वासन दिया था कि जनरल नर्सिंग की डिपार्टमेंटल ट्रेनिंग लेने वाली एएनएम को स्टाफ नर्स बना दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रेगुलर एएनएम के हक की लड़ाई लड़ने वाले प्रगतिशील संयुक्त कर्मचारी कल्याण संघ की पदाधिकारी सूरजकला सहारे चेतावनी देते हुए कहती हैं कि अगर सरकार ने उनकी मांगों की तरफ जल्द ध्यान नहीं दिया तो सभी रेगुलर एएनएम काम बंद भी कर सकती हैं।

दूसरी तरफ संविदा पर कार्यरत एएनएम भी अपने वेतन और सेवा-शर्तों के भेदभाव को लेकर सालों से आवाज उठाती आ रही हैं। इन्हें रेगुलर एएनएम के मुकाबले लगभग आधा वेतन मिलता है। एमपी के मुख्य़मंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग एक माह पहले घोषणा कर चुके हैं कि सभी संविदाकर्मियों को रेगुलर पद के समान वेतन-भत्ते दिए जाएंगे, लेकिन ये घोषणा अब तक पूरी नहीं हुई। जिन शर्तों पर संविदा एएनएम को रेगुलर के समान वेतन देने की बात कही गई है, उस पर भी संगठनों को आपत्ति है।

मप्र संविदा अधिकारी कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष रमेश राठौर कहते हैं कि – “सरकार के फैसले को लागू कर भी दिया जाए तो संविदा एएनएम को ग्रेड पे के हिसाब से न्यूनतम वेतन ही मिलेगा। सरकार ने एएनएम को पे-बैंड के हिसाब से निचले ग्रेड-पे में रखा है, ऐसे में इन्हें न तो आर्थिक फायदा होगा और न ही सालों की सीनियरटी का लाभ मिलेगा। इधर, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी खुद मानते हैं कि इन एएनएम जैसे रियल वारियर्स के बलबूते ही प्रदेश को कोविड फ्री किया जा सका और हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो सकी।

हेल्थ मिनिस्टर आश्वासन देते हैं कि सरकार संजीदगी से सभी रेगुलर और संविदा एएनएम की समस्याओं का समाधान निकालेगी। एमपी में ये साल चुनावी है और नियमितिकरण का मुद्दा गरमाया हुआ है, लिहाजा मंजू और उनके जैसी सैंकड़ों एएनएम उम्मीद के साथ कहती हैं कि ” कर्तव्य की खातिर अपनी जान दांव पर लगा देने की कीमत तो सरकार को चुकानी ही चाहिए।”

वैक्सीनेशन मध्य प्रदेश
स्टेट वैक्सीनेशन ऑफिसर डॉ संतोष शुक्ला

बहरहाल, हेल्थ डिपार्टमेंट और एनएचएम के आंकड़ों के मुताबिक 14 में से 2 हजार एएनएम ऐसी थीं, जो कोविड के दौरान इन्फेक्टेड हुईं। हालांकि सरकार के पास इस तरह के कोई आंकड़े नहीं हैं कि इनमें से कितनों ने अपने परिजनों को इस दौरान खो दिया, लेकिन एएनएम कर्मचारी संगठनों का दावा है कि 14 में से 1 हजार से ज्यादा एएनएम के परिजन सेकंड वेव के दौरान मारे गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में केवल 4100 मौतों का दावा किया जाता है, लेकिन इस पर भी हमेशा ही सवाल खड़े हुए। राजधानी भोपाल में तो कोविड की दूसरी लहर के दौरान केवल भदभदा श्मशान घाट पर ही 3811 शव जले थे, फिर भी सरकारी रिकॉर्ड आज भी यही कहते हैं कि प्रदेश में पहली और दूसरी वेव के दौरान केवल 10 हजार 786 मौतें हुईं।

आंकड़ों का सच जो भी हो, मंजू, उमा और सुनीता (इस अवधि में अपने बच्चों और परिवार से परे रहीं) प्रदेश की लगभग 14 हजार एएनएम में से हैं, जो इस चुनौतीपूर्ण दौर में परिवार और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाकर वैश्विक महामारी के खिलाफ जंग जीतने में लोगों के बीच वैक्सीन लेकर पहुंचीं, नतीजतन, 2022 में मध्य प्रदेश में आबादी के अनुपात में सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन हुआ। यूनाईटेड नेशंस की संस्था यूनिसेफ वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने में अपनी भागीदारी बेहद सक्रियता से निभाती है। पिछले साल इस संस्था ने उमा और सुनीता समेत कई हेल्थवर्कर्स को एमपी के ओरछा में आयोजित मीडिया वर्कशॉप के दौरान सम्मानित किया।

केंद्र सरकार से हासिल आंकड़ों के मुताबिक मप्र में अब तक 13 करोड़ 39 लाख 40 हजार 192 कोरोना के डोज लगाए गए हैं। प्रदेश में 5 करोड़ 41 लाख 43 हजार 862 लोगों को पहला और 5 करोड़ 40 लाख 61 हजार 655 को दूसरा डोज लगा।

वहीं, सेकंड वेव (लहर) गुजरने के बाद 15 से 18 साल तक के 41 लाख युवाओं को पहला और 34 लाख युवाओं को सेकंड डोज लग चुका है। प्रदेश में 12 से 14 साल के किशोरों में से 24 लाख 10 हजार 961 को पहला और 16 लाख 98 हजार 670 को दूसरा टीका लगाया जा चुका है।

वहीं अगर हम बात प्रीकॉशनरी यानी तीसरी डोज की करें तो प्रदेश में 1 करोड़ 1 लाख 27 हजार 767 टीके 18 से 59 साल के आयु वर्ग को लगाए गए हैं।

इन आंकड़ों को देखकर सरकार और जनता दोनों खुश हैं। लेकिन इससे इतर “टीकाकरण के लिए जाने का समय तो तय होता था, लेकिन लौटने का नहीं”, सुनीता और उमा की ये बातें भी लंबे समय तक याद रहने वाली है।

 

यह स्टोरी इंटरन्यूज ( Internews’) के सहयोग से की गई है

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