Best of BlogsOpinion

साइंस ने इंसान को चाँद पे पहुंचाया, नफरत ने स्कूली बच्चों को भी नहीं बख्शा

आज एक वाइरल विडियो में मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश के नेहा पब्लिक स्कूल में एक टीचर, जिसकी पहचान त्रिप्ता त्यागी के तौर पे हुई है, वो एक 8-साल के मुस्लिम विद्यार्थी को स्कूल का काम नहीं करने के लिए हिन्दू बच्चों से पिटवा रही हैं। विद्यार्थी रो रहा है और त्रिप्ता त्यागी बोले जा रही है ज़ोर से मारने। उसी पे पढ़े ये त्वरित टिप्पणी।

किस गर्व से कहें हम चांद पर हैं?

क्यों हैं? क्यों हमारे ज्ञान–प्रज्ञान का रोवर इन जैसे नफरतियों को खोज नहीं पा रहा?

क्यों हमारी धरती का चक्कर लगा रहे दर्जनों उपग्रहों के कैमरे ऐसे जहरीले इंसानों को पहचान नहीं पा रहे हैं?

किस काम की है यह वैज्ञानिक तरक्की, जो एमपी, यूपी से लेकर मणिपुर तक की तबाही तक को देख, दिखा नहीं पा रही है?

बेशक, हम चांद पर बस्तियां बसा लें। बिना हवा के माइनस 250 डिग्री पर भी जी लें। 14 दिन की रात के बाद पतंगों की तरह सुबह का इंतजार करें। फिर मिट जाएं।

लेकिन उस सभ्यता के बीज कहां से लायेंगे? इसी जमीन से न?

जहां बलात्कार एक संस्कृति है। जहां नफ़रत एक परंपरा है।

या कोई प्रोग्राम्ड रोबोट बनाएंगे? बीजेपी ने भी बनाया है। ऐसे रोबोट, जिनका काम सिर्फ नफरत को पालना है।

बेकार है ये चंद्रयान। फेंक दो इसको। यह मानवता का कोई भला नहीं कर सकता।

सिर्फ एक इंसान की बनाई मशीन। वही इंसान, जिसने ईश्वर को गढ़ा।

एक जहाज बनाओ। बड़ा सा।

इन सब नफरतियो को बिना ऑक्सीजन मास्क के चांद पर छोड़ दो। मछली की तरह तड़पकर मरने के लिए।

उनकी कंकाल यह स्टांप लगा रही हो कि इसरो ने पहली बार एक महान काम किया है।

बस, उस एक शख्स को नहीं भूलना। जो गॉडजिला फिल्म की तरह बदस्तूर नफरत के अंडे दे रहा है।

उस एक नरभक्षी को पहले छोड़ना।

तभी मैं चांद को चंदा मामा कहूंगा।

 

ये सौमित्र रॉय की फेस्बूक पोस्ट है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close
Back to top button