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कृषी प्रधान देश में किसानों के साथ बजट में छल 

बजट में सबसे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र को वर्तमान सरकार ने जिस तरह से उपेक्षित किया वह किसानों को स्तब्ध कर रहा है। अभी एक वर्ष पहले ही देश के प्रधानमंत्री ने किसानों से माफ़ी मांगी थी और उनके हितों को सुरक्षित करने के अपने प्रयसों को दोहराया था। लेकिन बजट में वह संकल्प बिलकुल नदारद है

हर साल देश में बजट देश की आर्थिक आवश्यकताओं की समीक्षा  करने व उनके लिए उचित धन आवंटन करने के उद्देश्य से बनाया एवं प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रक्रिया समान्यतया हर देश प्रदेश इकाई यहाँ तक की किसी गरीब व्यक्ति के घर तक में की जाती है। बजट के द्वारा आवश्यकता व् उपयोगिता के आधार को निश्चित किया जाता है ताकि सामान्य संतुलन बना कर भविष्य की चुनौतियों को साधा जा सके। उपलब्ध संसाधनों में धन को अर्जित करना व् उसके खर्च को नियंत्रित करना ही बजट की सफलता निर्धारित करता है। एक विशाल देश में सभी वर्गों की मूलभूत आवश्यकताओं के अनुरूप ही सुचारू व्यवस्था स्थापित करके देश को प्रगति की राह पे बढ़ाया जा सकता है। भारत में हर साल देश के बजट का निर्धारण किया जाता है। देश के वित मंत्री को ये जिम्मेदारी दी जाती है जो समय की सरकार की नीतियों को स्पष्ट करता है।

इस वर्ष 2023-24 का बजट अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा था क्योंकि अगले वर्ष वर्तमान सत्ताधारी नरेन्द्र मोदी सरकार की फिर से आम लोकसभा चुनाव में परीक्षा होनी है। नरेन्द्र मोदी सरकार का ये लगातार दूसरा कार्यकाल है। बजट के द्वारा सरकार अपनी योजनाओं दृष्टिकोण और उपलब्धियों को भी देश की जनता के सामने पेश करती है। 1 फरवरी को लोकसभा में प्रस्तुत बजट से कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने उभरने लगी है। कई वर्गों से निराशा के स्पष्ट संकेत सामने आये हैं।

कृषि प्रधान देश में आबादी का एक बड़ा भाग खुद को उपेक्षित व् ठगा हुआ पा रहा है। बढ़ती महंगाई घटते रोजगार से परेशान हालत में समानय नागरिक सरकार से अपेक्षाएं रखे हुए था की पिछाले कुछ वर्षों की विषम परिस्थितियों जिनमे महामारी काल भी शामिल है का कोई समाधान निकलेगा परन्तु बजट की समीक्ष करने पर उसकी समान्य बुद्धि को भी एक झटका महसूस होने लगा। दूसरी और इस बजट ने विशषज्ञों को भी हैरान कर दिया है की आखिर सरकर किस दिशा में बढ़ना चाहती है।

बजट में सबसे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र को वर्तमान सरकार ने जिस तरह से उपेक्षित किया वह किसानों को स्तब्ध कर रहा है। अभी एक वर्ष पहले ही देश के प्रधानमंत्री ने किसानों से माफ़ी मांगी थी और उनके हितों को सुरक्षित करने के अपने प्रयसों को दोहराया था। लेकिन बजट में वह संकल्प बिलकुल नदारद है।

नियत और नीतियों में अंतर धरातल पर साफ दिखाई देने लगा है। फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए जाने, किसानों के कर्ज माफ़ी, बीज व् उरवर्क की गुणवत्ता पूर्ण उपलब्धि, बिजली सिंचाई की सुचारु व्यवस्थाओं का निर्माण, फसलों की सरकारी खरीद के लिए मंडियों का विस्तार व् आधारभूत ढांचा, फल सब्जियों के लिए मुल्य निर्धारण व् भंडारण व्यवस्था, फसल बिमा योजना द्वारा किसानों को समयसार उचित मुआवजा, प्रकिर्तिक आपदा से फसलों के नुकसान की भरपाई, कृषक  समाज को स्वास्थ्य व् शिक्षा के लिए अनुदान, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की उपलब्धता अदि अनेक बिन्दुुओं को वित् मंत्री ने छूआ तक नहीं।

बजट में कृषि मद में पिछले वर्षों की अपेक्षा अबकी बार अधिक प्रावधान किये जाने की उम्मीद थी जिस से सरकार द्वारा 2016 किये गए किसानों की आय को 2022 तक दुगना करने के वायदे को सार्थक किया जा सकता लेकिन इसके विपरीत कई कटौतियां कर दी गयी।

कृषि क्षेत्र के लिए पिछले वर्ष एक लाख चौबीस हजार करोड़ का खर्च का प्रावधान था (1,24,000) जो इस बार 6.8% घटा कर एक लाख पंद्रह हजार पांच सो इकतीस (1,15,531) कर दिया गया। लगभग आठ हजार चार सो उनहतर (8469) कम किये गए। जबकि पिछले  कुछ वर्षों से मौसम कृषि के लिए अनुकूल ही रहा है, मानसून निरंतर खेती के लिए बेहतर रहा।

प्रधानमंत्री फसल बिमा योजना में पंद्रह हजार पांच सो करोड़ (15,500) को 12% घटा कर तेहरा हजार छै सो पचीस (13,625 ) करोड़ कर दिए गए।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में पिछले वर्ष अड़सठ हजार करोड़ (68,000) रखे गए थे वो भी 12% घटा कर  साठ हजार करोड़ (60,000) कर दिए गए हैं।

बजट में कृषि का हिस्सा पिछले वर्ष कुल बजट का 3.36 % था वो भी लगभग तीस हजार करोड़ (30,000) कम करके इस वर्ष 2.7% कर दिया।

उर्वरक पर जो अनुदान पिछले वर्ष  तक जो दो लाख पच्चीस हजार करोड़ की (2,25,000) की थी उसको  22% कम करके एक लाख पिचहत्तर हजार (1,75,000) कर दिया गया है।

कृषि यंत्रों पर जो जी एस टी लगाया गया था उसको कम नहीं किया गया। उसके कम होने से किसानों का फसल उत्पादन के ख़र्च में कमी आ सकती थी जिस से उनको लाभ मिलने की संभावना बढ़ सकती थी। उसपे कोई बदलाव नहीं किया गया।

इसी प्रकार मनरेगा के मद में जो राशि पिछले वर्ष नवासी हजार चार सो करोड़ (79,400) थी को घटा कर साथ हजार करोड़ (60,000) कर दिया गया जबकि  इस योजना के तहत अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे व् भूमिहीन किसानों व् मजदूरों को स्थानीय स्तर पर कुछ दिन निश्चित काम मिल जाता था जिस से उनके लिए कुछ आय हो जाती थी।  हालाँकि इस योजना के अंतर्गत कम से कम 100 दिन निश्चित रोजगार देने के प्रावधान हैं।

कृषि भूमि सिंचाई के लिए बारह हजार नो सो चव्वन करोड़ (12,954) को घटा कर अब दस हजार सात सो सतासी (10,787) करोड़ कर दिया गया।

राष्ट्रिय कृषि विकास योजना के तहत पूर्व वर्ष में दस हजार चार सो तेत्तिस करोड़ (10,433) का प्रवधान रखा गया था जिसे कम करके सात हज़ार एक सौ पचास (7,150) किया गया !

कृषि उन्नति योजना के लिए विगत में सात हजार एक सौ  तिरासी करोड़ (7,183) मंजूर किये गए थे अबकी बार वहां भी कमी कर के सात हजार छियासठ (7,066) किया गया है।

मूल्य सहायता व् बाजार हस्तक्षेप व् अन्नदाता आय संरक्षण योजना में भी आबंटन करीब समाप्त कर दिया गया। पिछले बजट में जिसमे पंद्रह सौ करोड़ (1500) रखे गए थे उसमे अबकी बार केवल एक लाख रुपये ही रखे गए हैं।

खाद्य सुरक्षा जिसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा  कानून के अधीन लागू किया गया था जिसमे धन का आबंटन  केंद्रीय सरकार की प्रतिब्धता है जो पिछली बार दो लाख सतासी हजार एक सौ चुरानवे (2,87,194) था को कम करके एक लाख सतानवे हजार तीन सौ पचास (1,97350) करोड़ किया गया है।

बजट व् वित्तमन्त्री निर्मला सीतारामन् के भाषण में ऐसा प्रतीत हुआ के सरकार अनुमानित खर्च कम करके निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहती है। 2011-12 में कृषि क्षेत्र में कुछ खर्च जो की 5.4% था से तुलना करने पर अब खर्च कम करके 4.3% कर दिया गया है। वित् मंत्री द्वारा कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए जो सुझाव सामने रखे गए जैसे की एग्रीकल्चर एसकलेटर फण्ड जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में एग्री स्टार्ट अप के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया जा सकेगा धरतल पर कल्पनिक अधिक लगता है। ज़्यदातर घोषणाएं कृषि व्यपार केंद्रित ही सुनायी पड़ी जबकि कृषि व्यपार कृषि उधम से बिलकुल भिन्न है।

प्रकिर्तिक खेती व् जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए एक नए मिशन की घोषणा की गई जिसके अंतर्गत चार सौ उनसठ करोड़ का खर्च प्रवधान किया गया। जिसके  क्रियांवन की कोई रूपरेखा स्पष्ट नहीं।

फरवरी 2019 में पीएम किसान सम्मान निधि की पहली किश्त 11.84 करोड़ किसानों को दी गयी थी, मई-जून 2022 में 11वीं किश्त मात्र 3.87 करोड़ किसानों को दी गयी है, किसानों की संख्या में 67% की कमी आ गई है। कृषि मंत्री ने ये नहीं बताया के ये संख्या कम क्यों की गई।

इन सब पहलुओं के कारण किसानों की निराशा मुखर रूप से सामने आई है। किसान अपनी समस्याओं के लिए स्थायी व् ठोस समाधान चाहते हैं। बढ़ते कर्ज के कारन किसानों की आत्महत्य करने की घटनाओं में पिछले कुछ वर्षों में बहुत वृद्धि हुयी जिसके समाधान के लिए वर्तमान सरकर ने किसानो को आस्वस्त किया था लेकिन उस दिशा में कुछ खास बदलाव नहीं आ पाया।

एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका किसानों की हमेशा से रही। किसान सदियों से जलवायु का संरक्षक रहा है, उद्योगों, मशीनीकरण, वाहन, शहरीकरण, पूंजीपति उपयोगितावाद ने जलवायु को, पर्यावरण के अति दोहन से अनियंत्रित किया है। जितना कार्बन प्रदूषण उद्योगों द्वारा किया गया उसके लिए विकसित देश ज़िम्मेदार हैँ लेकिन उन्होने अपने किये को चालाकि से ढ़कने के लिए ऐसा प्रचार तंत्र खडा किया जिसने विकासशील देशों को इसका जिम्मेदार ठहरा दिया। कार्बन क्रेढ़िट के नाम से मिलने वाले अर्थिक समायोजन को सरकारें उद्योगपतियों को जलवायु संरक्षण के नाम पे बांट देती हैं। किसान को कुछ नहीं मिलता  सिवाये दोष के।

किसान कौमों, ज़मींदार कौमों, खेतिहर कौमों क्षेत्रपति समाज के लिये हमेशा ही बड़ी चुनौतियां खडी रही लेकिन सरकारों ने उनके प्रति गंभीरता से समाधान नहीं किये, इस लिये ये समाज पिछड़ता रहा। एक असंतोष निरंतर इस समाज में बना हुआ है। वर्तमान मे पूंजीवादी ताकतें क्षेत्रपति समाज की जमीनों पे आँख लगाये है। एक बड़ी साजिश की बड़ी चुनौती फिर से सामने है। अगर क्षेत्रपति समाज अब भी धर्म जातियों मे बंटा रहा तो आने वाले भविष्य मे अस्तित्व नहीं रहेगा।

जगदीप सिंह सिंधु

राजनीतिक विश्लेशक, समिक्षक

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