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कहने के लिए आसान है, कानून को लागू करने दें, यदि लाभकारी नहीं रहे तो वापस ले लेंगे, पूछें नई पेंशन योजना के पीड़ितों से जिनसे यही बाते बोली गयी थी

कृषि बिल को रद्द करने के सवाल पे राजनाथ सिंह ने कहा था कि एक या दो साल के लिए कानून लागू होने दे, अगर किसानों के लिए लाभकारी नहीं हुए तो सरकार कोई भी संशोधन करेगी, ऐसा ही बयान नई पेंशन योजना के बारे में भी दिए गए थे

रांची: रांची के निवासी गिरधर महतो सितंबर 2018 में शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें 2011 में काम मिला था।

जब महतो ने 1982 में आवेदन किया था तो रिक्त पदों को योग्यता के आधार पर भरा जाना था। महतो ने मेरिट सूची में उच्च स्कोर किया था। लेकिन, भ्रष्टाचार की बदौलत उन्हें और उनके जैसे अन्य लोगों को उन नौकरियों से वंचित कर दिया गया, उन्हें रख लिया गया, जिन्होंने बहुत कम स्कोर किया था। 23 वर्षों के लंबे कोर्ट केस के बाद, जब उच्च न्यायालय ने महतो के पक्ष में निर्णय दिया, तो उसे अंतत: शिक्षा विभाग में नौकरी मिल गयी। लेकिन जब तक उन्हें अपनी नौकरी मिली तब वह नई पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत आ गए और पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) से वंचित रह गए।

“अब मुझे पेंशन के रूप में 1500 रुपये की मामूली राशि मिल रही है। अगर मुझे पिछली योजना के अनुसार पेंशन मिलती तो मुझे 40,000 रुपये मिलते, जो कि मेरे निचले रैंक के कुछ सहकर्मियों को मिल रहा है, ” सेवानिवृत्त विज्ञान शिक्षक ने कहा।

एनपीएस की तुलना में सरकारी वृद्धावस्था पेंशन योजनाओं के तहत अधिक पेंशन राशि

हजारीबाग जिले के 62 वर्षीय अशोक कुमार को भी अपनी नौकरी के लिए कानूनी लड़ाई लड़ना पड़ा। उन्हें 1991 में हल्का कर्मचारी (राजस्व विभाग के एरिया अधिकारी) की नौकरी मिल गई थी, जो सामान्य मानदंड के अनुसार अस्थायी आधार पर थी। कर्मचारियों को बाद में स्थायी किया जाता है। ऐसा नहीं हुआ और इसलिए कुमार को भी न्याय के दरवाजे पर दस्तक देनी पड़ी।

लंबी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में एक आदेश दिया और वह 2007 में एक स्थायी कर्मचारी बन गए। लेकिन 2019 के बाद जब वह सेवानिवृत्त हुए, तो न तो उन्हें पेंशन दी जा रही है और न ही उन्हें कोई ग्रेच्युटी राशि मिली है।

“अगर मुझे मेरी पेंशन मिलती है, तो यह केवल 1700 रुपये और 20,000 रुपये नहीं होगा, जो मुझे पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलना चाहिए। मेरा अंतिम वेतन लगभग 40,000 था, ” अशोक ने ईन्यूज़रूम को बताया।

“क्योंकि मैं एक सरकारी कर्मचारी के रूप में सेवानिवृत्त हुआ। अब न ही मुझे और न ही मेरी पत्नी को बुजुर्गों के लिए सरकारी पेंशन मिल सकती है, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक हजार रुपये है। इसका मतलब है कि 29 साल तक सरकार की सेवा करने के बाद हमें पेंशन के रूप में जितना मिलेगा, उससे अधिक सरकारी पेंशन से मिल जाता। न केवल वृद्धावस्था पेंशन, क्योंकि मैं एक सरकारी नौकरी में था, मैं राशन कार्ड का हकदार नहीं हूं और न ही आयुष्मान कार्ड बना सकता हूँ अपने इलाज के लिए, ” अशोक ने खेद व्यक्त करते हुए कहा।

63 वर्षीय उमाकांत सिन्हा ने बताया, “मेरे पास दवा खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है। हाल ही में, मैंने एलआईसी एजेंट बनने के लिए एक परीक्षा पास की । ये हालत हो गयी है पूर्व के सरकारी कर्मचारियों की। पेंशन के बिना हम समाज में अपना दर्जा खो चुके हैं। ”

नई पेंशन योजना के तहत, जो लोग 1 जनवरी 2004 (दोनों केंद्रीय और राज्य सरकार के कर्मचारियों, सशस्त्र बलों को छोड़कर) के बाद सेवा में शामिल हुए हैं, उन्हें अंतिम वेतन का आधा हिस्सा पेंशन नहीं मिलता है, जैसा कि पहले हुआ करता था। वे ग्रेच्युटी के भी हकदार नहीं हैं। हालांकि, कड़े विरोध के बाद, फरवरी 2019 से ग्रेच्युटी फिर से शुरू कर दी गई है।

जबकि भारत में दो करोड़ से अधिक सरकारी कर्मचारी हैं।

नई पेंशन योजना को रद्द करने और पुरानी को फिर से लागू करने के लिए एक आंदोलन (नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम -NMOPS) जारी है।

हाल में कृषि बिल पर राजनाथ सिंह का बयान एनपीएस लागू करने से पहले भाजपा नेताओं के द्वारा दिये गए ब्यान से मिलते- जुलते

“2003 में, पेंशन अधिनियम- 1972 में संशोधन किया गया और नई पेंशन योजना शुरू की गई। इसे अब नई पेंशन सिस्टम के रूप में जाना जाता है। 2013 में, एक नियमित निकाय, PFRDA को इसकी निगरानी के लिए बनाया गया था, ” विक्रांत सिंह, अध्यक्ष, झारखंड नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम ने ईन्यूज़रूम को बताया।

पिछले महीने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किसानों से नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पर बोलते हुए सुझाव दिया था कि कानूनों को एक या दो साल के लिए लागू किया जाना चाहिए और फिर अगर यह लाभकारी नहीं पाया गया तो इसे खत्म कर दिया जा सकता है।

“ऐसी ही बातें हमारे यूनियन के नेताओं के सामने कही गई थी जब वाजपेयी सरकार नई पेंशन योजना (एनपीएस) को लागू कर रही थी। हमारे नेताओं को बताया गया कि नई पेंशन योजना हमारे लिए बहुत फायदेमंद होगी। लेकिन यह विनाशकारी निकला। 2003 में, एनपीएस के माध्यम से, श्रमिक वर्ग की पेंशन को कॉर्पोरेटईज़ड कर दिया गया था और अब कृषि को कॉर्पोरेट जगत को सौंप दिया जा रहा है,” विक्रांत ने कहा।

हालांके पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के लिए आंदोलन कर रहे संगठनो को अभी कृषि बिल के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के समर्थन में बोलना या एकजुटता व्यक्त करना बाकी है।

एनपीएस के खिलाफ चल रहे आंदोलन से झारखंड के लोगों के लिए एक अजीब स्थिति बन गई है। चूंकि राज्य मुश्किल से 20 साल पुराना है, राज्य के कई सरकारी कर्मचारी जो राज्य बनने के बाद शामिल हुए थे, अब से कई वर्षों बाद सेवानिवृत्त होंगे और इसलिए इस बात को समझने में विफल हैं कि आंदोलन इतना महत्वपूर्ण क्यों है।

इम्तियाज अहमद, अध्यक्ष, नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (गिरिडीह) ने कहा, “कई सरकारी कर्मचारी समस्या की गंभीरता को नहीं समझ रहें हैं और के उनके भविष्य के लिए इसका क्या मतलब है।”

हेमंत सोरेन ने 2019 में झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले दावा किया था कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो राज्य में पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी। हालाँकि, सोरेन सरकार को उनके इस वादे को पूरा करना बाकी है।

ये स्टोरी इंग्लिश में पब्लिश रिपोर्ट का अनुवाद है।

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He brings over two decades of journalism experience, having worked with The Telegraph, IANS, DNA, and China Daily. His bylines have also appeared in Al Jazeera, Scroll, BOOM Live, and Rediff, among others. The Managing Editor of eNewsroom has distinct profiles of working from four Indian states- Jharkhand, Madhya Pradesh, Rajasthan and Bengal, as well as from China. He loves doing human interest, political and environment related stories.

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