ड्रग लॉ बिल: भारत में सीमित मात्रा तक भांग-अफीम को वैध बनाने की मांग क्यों?

Date:

Share post:

पिछले 13 दिसंबर को ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (संशोधन) विधेयक, 2021’ लोकसभा में पास किया गया. यह बिल व्यक्तिगत उपयोग के लिए सीमित मात्रा में ड्रग्स रखने की छूट देता है, ताकि साइकोट्रोपिक पदार्थ के निर्माण, परिवहन और खपत जैसे कुछ कार्यों में सहायता मिल सके.

वहीं, हाल के दिनों में नशीले पदार्थों के सेवन और उन्हें रखने के आरोप में हुई हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारियों ने पूरे देश का ध्यान इस ओर खींचा है. यदि इस मामले में हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारियां और जांच पड़ताल न हुई होतीं, तो नशीले पदार्थों के सेवन से जुड़ी खबरें कभी सुर्खियां न बटोर पातीं और इस तरह के विषय पर कभी गंभीर चर्चा नहीं होती.

देखा जाए तो भारत में सदियों से नशीले पदार्थों का सेवन होता रहा है, जैसे कि पारंपरिक रूप से नशीले पदार्थों  का उपयोग दवाइयां बनाने के लिए तो किया ही जाता है, कभी-कभी और काफी हद तक यह कम मात्रा में स्वीकार्य होने से घरेलू कामकाज में भी इस्तेमाल होती है.

हालांकि, देखा जाए तो भारत संयुक्त राष्ट्र के उन 27 देशों शामिल है, जिन्होंने प्रतिबंधित पदार्थों की सूची से भांग को हटाने के लिए मतदान किया था. यह निर्णय वर्ष 2020 में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) द्वारा नशीले पदार्थों के बारे में की गई कुछ महत्त्वपूर्ण सिफारिशों की एक श्रृंखला के तहत लिया गया था.

हालांकि, भारत में वर्ष 1985 को कठोर ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट’ (एनडीपीएस) में संशोधन के लिए कोई अनुवर्ती उपाय अब तक नहीं हुआ था. यहां तक कि भांग जैसे सबसे कम नशीले पदार्थ के रखने या उसकी खपत करने पर भी गंभीर सजा का प्रावधान था.

वाशिंगटन में भांग को वैध बनाने हुआ था मतदान

दूसरी तरफ, वैश्विक स्तर पर देखें तो वर्ष 2012 में, उरुग्वे मनोरंजक उद्देश्यों के लिए भांग के उपयोग को वैध बनाने वाला पहला देश बन गया.

इस कदम का उद्देश्य संगठित अपराध और भांग के व्यापार के बीच स्थापित संबंधों को सीधे राज्य की निगरानी में लाना बताया गया था. उसके बाद वर्ष 2012 को ही अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में भांग को वैध बनाने के लिए मतदान किया था. फिर अमेरिका का कोलोराडो भांग को वैध करने के मामले में वहां का पहला राज्य बन गया था.

महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में इस ओर एक बड़ा कदम उठाया गया, जिसके अंतर्गत 50 अमेरिकी राज्यों में से 33 ने भांग के चिकित्सा उपयोग को वैध कर दिया था. इसी कड़ी में कनाडा ने भी मारिजुआना जैसे नशीले पदार्थ के उपयोग को वैध कर दिया था, जबकि कनाडा में मारिजुआना का चिकित्सा कामों में उपयोग वर्ष 2001 से कानूनी था.

भारत में भांग वैध करने की मांग क्यों

जब दुनिया के कई देश भांग को वैध बनाने से जुड़े निर्णय ले रहे थे, तब सवाल यह था कि भारत भांग के उपयोग को वैध क्यों नहीं बना रहा है? ऐसा इसलिए भी कि भांग और अफीम भारत में सदियों से न सिर्फ पाये जाते हैं, बल्कि उनका उपयोग किया जाता रहा है.

कई जानकारों के मुताबिक यदि भारत की परंपरागत संस्कृति और यहां की जीवनशैली देखें तो भांग को अवैध घोषित करने से पहले तक कभी इसे व्यसन के तौर पर नहीं देखा गया था. भारत में इसे प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पौधों पर आधारित उत्पाद के तौर पर ही जाना गया, जिसका उपयोग संत मुनि करते रहे हैं. इसी के साथ यह आंकड़ा भी महत्त्वपूर्ण है कि लगभग 147 मिलियन लोग, जो दुनिया की आबादी का 2.5 प्रतिशत है, भांग का उपयोग मनोरंजन के लिए करते हैं.

उदाहरण के लिए, भांग के पकोड़े और भांग के साथ ठंडाई का सेवन करना लगभग एक अनुष्ठान है, यहां तक कि भंग को अवैध घोषित किए जाने के बावजूद होली जैसे कुछ त्योहारों के दौरान इसका उपयोग करना आम बात मानी जाती रही है. भांग और होली से जुड़े कई बॉलीवुड गाने आमतौर पर भारतीय परिवारों के बीच गुनगुनाए जाते रहे हैं. फिर शिवरात्रि जैसे धामिर्क उत्सव में भी भांग की अहम भूमिका रही है.

भांग और दूसरी नशीली चीजों में अंतर

हालांकि, इस पूरी बहस में यह बात भी उजागर हुई है कि भांग जैसी ‘सॉफ्ट’ नशीली चीज या दवा की तुलना कोकीन, हेरोइन और चरस जैसे भयंकर नशीले उत्पादों से नहीं होना चाहिए. वहीं, भांग और दूसरी नशीली चीजों में अंतर को निश्चित रूप से खींचा जाना चाहिए.

दूसरी तरफ, भारत के संदर्भ में यह बात दिलचस्प है कि वर्ष 1985 का ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट’ भांग के पौधे के कुछ हिस्सों के उत्पादन, बिक्री और खपत को प्रतिबंधित करता है, लेकिन पत्तियां कहीं-कहीं परंपरागत तौर पर इस्तेमाल होती रही हैं. यहां तक कि जैसलमेर और पुष्कर जैसे शहरों में भी सरकार द्वारा स्वीकृत भांग की दुकान है. इसी तरह, वाराणसी में साल भर ऐसी 200 से अधिक दुकानें बताई जाती हैं.

धार्मिक तौर पर देखें तो कई बाबा और साधुओं (पवित्र पुरुषों) को सीधे भांग का सेवन करते हुए देखा जा सकता है. वे कई सार्वजनिक स्थानों पर भी चिलम के जरिए धूम्रपान करते हुए नजर आ जाते हैं.

अधिनियम में संशोधन की मांग पुरानी

इसी कड़ी में आगे देखें तो पटियाला के पूर्व सांसद डॉ धरमवीर गांधी लंबे समय से ‘गैर-सिंथेटिक’ एंटीऑक्सीडेंट के वैधीकरण की मांग कर रहे थे. वह लंबे समय से एनडीपीएस अधिनियम में संशोधन की पैरवी कर रहे थे. इसके पीछे उनकी दलील थी कि पारंपरिक और प्राकृतिक नशीले पदार्थों की सस्ती, विनियमित और चिकित्सकीय निगरानी की आपूर्ति के माध्यम से आम दवा उपयोगकर्ता को राहत मिलनी चाहिए.

पंजाब और अन्य जगहों पर नशीले पदार्थों के खिलाफ लड़ाई में कामयाबी नहीं मिलने के पीछे एक वजह यह भी मानी जा रही थी कि सभी को एक ही श्रेणी में रख दिया गया है. सभी को समान रूप से खतरनाक और नशे की लत के रूप में देखा जाता है, जबकि उनमें स्पष्ट रूप अंतर होता है.

इन्हीं सब कारणों के आधार पर पता चलता हैं कि क्यों एनडीपीएस अधिनियम अपने घोषित लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है. इसके तहत हल्की नशीले पदार्थ का उपयोग करने या उसे रखने वाले को भी कड़ी से कड़ी सजा दी जाती है. वहीं, इस कानून को लागू कराने के लिए सरकार को बड़ी मात्रा में धन का निवेश भी करना पड़ता है.

बिल के समर्थन में तर्क

वहीं, इस बिल के पक्ष में कुछ जानकारों का मत है कि जैसे-जैसे आम आदमी के लिए मनोरंजक पदार्थ अनुपलब्ध होते गए, वैसे-वैसे बाजारों में नई, अधिक शक्तिशाली, नशे की लत और खतरनाक वैकल्पिक दवाओं की बाढ़ आ गई. उदाहरण के लिए, हेरोइन ने अफीम की जगह ले ली, वहीं कोकीन ने भांग की जगह ले ली.

‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ द्वारा वर्ष 2018 में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में ड्रग्स के मामलों में ज्यादातर गिरफ्तारियां निजी उपभोग के लिए होती हैं. अध्ययन से पता चला है कि वर्ष 2018 में भारत में 81,778 लोगों को ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस’ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था. इनमें से 59 प्रतिशत को निजी इस्तेमाल के लिए रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इसी तरह, इनमें से 87 प्रतिशत ने भांग का इस्तेमाल किया था, जो के आमतौर पर कोकीन, हेरोइन और चरस जैसे अत्यधिक नशीले और हानिकारक पदार्थों में शामिल नहीं किया जा सकता है.

‘सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय’ द्वारा भारत में मादक द्रव्यों के सेवन के विस्तार और पैटर्न पर वर्ष 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग तीन करोड़ लोग भांग का उपयोग करते हैं. यह भी कहा जा रहा है कि इन तीन करोड़ लोगों को जेल में डालने से कानूनी व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाएगी. ऐसे में तर्क दिया जा रहा है कि भारत में एक बड़ी संख्या भांग का उपयोग करती है, दूसरा यह आसानी से भी उपलब्ध है, इसलिए यहां एक निश्चित मात्रा में भांग का उपभोग करने वाले व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जाना चाहिए. यदि कानून का बेहतर उपयोग करना है तो इसे खतरनाक नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों पर शिकंजा कसने तक केंद्रित रखना होगा.

spot_img

Related articles

Sundarbans Faces Climate Emergency as Study Finds Mangrove Loss and Long-Ignored Community Radio Need

A multidisciplinary study tour by Aliah University highlighted microplastic damage to mangroves, the urgent need for community radio, cultural insights including Arabic linguistic influence, and climate-driven challenges like species shift and soil loss. Researchers stressed mangrove restoration, resilient embankments and rainwater harvesting as essential adaptation measures.

Worst Loss in 93 Years: 408-Run Hammering Amplifies Demands for Gambhir and Agarkar’s Resignations

India’s 408-run loss to South Africa marks the heaviest Test defeat in its history, exposing deep flaws in selection and coaching. Constant chopping, favoritism, and neglect of proven performers have pushed the team into crisis. The humiliating whitewash has intensified calls for major leadership and structural changes.

The Taj Story: Why Myth-Led Cinema Is Harming Public Understanding of History

When a film chooses to revisit a contested piece of history, it steps into a fragile intellectual space...

Dharmendra Remembered: How Bollywood’s Most Human Superstar Became India’s Favourite Hero

Film star Dharmendra lived a full and complete life. He was unapologetically himself—a man with a golden heart...