मिथुन चक्रवर्ती का सफर: बॉलीवुड में रंगभेद के भी शिकार हुए

जन्मदिन विशेष : बॉलीवुड के मशहूर कलाकार मिथुन चक्रवर्ती का जीवन बहुत संघर्षो का रहा है। फिल्मों में आने से पहले वो नक्सली थे। भाई की मौत के बाद मुंबई आए, इंडस्ट्री में रंगभेद के भी शिकार हुए। राज्यसभा सांसद भी रहे

Date:

Share post:

16 जून 1950 को वसंत चक्रवर्ती (टेलिफोन एक्सचेंज में कार्यरत) की पत्नी शांतिमयी चक्रवर्ती को एक बेटा हुआ। नाम रखा गया गौरांग चक्रवर्ती (Gourang Chakraborty better known by his stage name Mithun Chakraborty)। प्यार से सभी गौर पुकारते थे। कोलकाता की गलियों के दुर्गापूजा में अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। पढ़ाई बीएससी तक। कॉलेज में सभी इनके मधुर व्यवहार के कारण इन्हें मिष्ठी दा बुलाते थे, मिष्ठी से मिथुन यही से बने।

छात्र जीवन में कांग्रेंस दल में शामिल बाद में नई पृथ्वी की परिकल्पना का स्वप्न लिए नक्सल आंदोलन में सक्रिय रूप से कार्य करते रहे।

नक्सलियों के दमन हेतु सरकार ने एनकाउंटर का आदेश दिया जिसमें इनके बड़े भाई की पुलिस की गोली से मृत्यु हो गई। भाई की मौत से गौरांग को गहरा सदमा पहुंचा।

दोस्त और परिवार के कहने पर कुछ दिन भूमिगत रहे।

1972 में महाराष्ट्र के पूना में पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट (Film and Television Institute of India) में ऐक्टिंग के लिए दाखिला लिया। वहां भी इनके सीनियर रज़ा मुराद आदि उनके नक्सल होने के कारण इनसे दूरी बनाये रखते थे।

1974 में ऐक्टिंग कोर्स से पास किया वह भी स्वर्णपदक के साथ। आजीविका के लिए कुछ वर्ष तक इसी फिल्म इंस्टीयूट में अध्यापन का कार्य किया।

उन्हीं दिनों मृणाल सेन की नज़र पड़ी थी। मिथुन मुंबई आए और काम की तलाश में थे। खाली समय में प्रसिद्ध अभिनेत्री हेलन के डांस ग्रुप में राना रे के नाम से डांस करते रहे।

मृणाल सेन उन दिनों एक फिल्म बनाने की योजना बना रहे थे, जिसमें उन्हें दुबले पतले काले नौजवान की ज़रूरत थी जो आदिवासी जैसा दिखे। किसी तरह मिथुन की मुलाकात हुई।

दिसंबर 1975 में मृगया नामक फिल्म की शूटिंग शुरु हुई।

फिल्म बेहतरीन बनी और 1976 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार फिल्म मृगया के लिए घिनुवा नाम के चरित्र के लिए मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) को मिला।

पहली फिल्म में ही सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिलना आश्चर्यचकित करने वाला था।

मुंबई आए सोचकर कि अब तो फिल्म मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उलट जहां भी जाएं गाली खाएं और अपने काले रंग होने के कारण बहुत ज़िल्लत झेली। बॉलीवुड में भी मिथुन रंगभेद के शिकार हुए।

महीनों तक मुंबई के फुटपाथ पे सोते रहे। पैसे कम पड़ते तो टैक्सी धोने का काम भी किया।

निर्माता-निर्देशक मनमोहन देसाई ने तो दस रुपये दिये और कहा भाई जहां से आये है वहीं चले जाओ।

एक बार एक निर्माता से काम मांगने उनके आफिस गये तो अभिनेता जितेंद्र भी वही थे, जब उन्हें पता चला कि यह काला लड़का हीरो बनने आया तो उन्होंने कहा “इस काले को यदि हीरो के लिए फिल्म मिल जाए तो मैं मुंबई छोड़ दूंगा”

हताश और निराश मिथुन कुछ न बोले और चुपचाप उस अपमान को सहते हुए आए।

अपनी असफलता और काम न मिलने के कारण मिथुन हताश और अवसाद में भी रहे कई बार वह आत्महत्या करने की भी सोचते रहे लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारा और फिर संघर्ष करते रहे।

कई दिनों तक भूखे पेट भी रहे। मुंबई के किसी पत्रकार को जब पता चला कि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता मुंबई में है, तो उनका इंटरव्यू लेने के मिथुन को ढूंढते-ढूंढते एक जगह मिले तो पत्रकार ने इंटरव्यू लेना चाहा तो मिथुन ने पहले भर पेट भोजन खिलाने की शर्त पर ही इंटरव्यू दिया।

निर्देशक दुलाल गुहा की फिल्म में उन्हें छोटा सा किरदार दिया था हीरो थे अमिताभ बच्चन। काम देने की शर्त यह थी कि अभिनेत्री रेखा का स्पॉट बॉय भी बनना होगा अर्थात उनका मेक-अप बैग, सामान आदि के देखरेख के लिए उनके साथ-साथ रहना था। यह फिल्म भी 1976 में आई थी।

काफी संघर्ष करने के बाद मिथुन को नायक ऋषि कपूर, परीक्षित साहनी, शशि कपूर, संजीव कुमार के फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिका मिलने लगी।

फिल्म मेरा रक्षक में बतौर लीड भूमिका की फिर धीरे-धीरे बी-ग्रेड की फिल्में मिलने लगीं।

1979 में सुरक्षा से पहचान मिली। फिर कुछ वर्षों तक बतौर हीरो फिल्में मिलते रहीं लेकिन पहचान कुछ राज्यों तक। इसी दौरान मॉडल हेलेना ल्यूक से शादी की किंतु कुछ महीनों में शादी विच्छेद हो गया।

1982 में आई डिस्को डांसर जिसे रातों रात मिथुन को स्टार बना दिया। अब मिथुन चक्रवर्ती को पूरी दुनिया जानने लगी। रूस में राजकपूर से ज्यादा चाहने वाले हीरो मिथुन बन गये। इसी वर्ष योगिता बाली से शादी की।

1993 में बांग्ला फिल्म तहादेर कथा के लिए फिर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

1996-में फिल्म स्वामी विवेकानंद के सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

जूरी के सदस्य रहे ऋषिकेश मुखर्जी ने यहां तक कहा कि “रामकृष्ण परंहंस का अभिनय मिथुन के अलावा और कोई इतना बेहतर नहीं कर सकता था यदि कोई करता तो स्वयं भगवान ही कर सकते थे।”

इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिलता किंतु सिर्फ फिल्म का टाईटल की वजह से उनको सिर्फ सह- अभिनेता का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से ही नवाजा़ गया।

हालांकि एक और बांग्ला फिल्म एक नोदीर गॉल्पो में अद्भुत अभिनय किया था किंतु उन्हें पुरस्कार नहीं मिला जिस पर जूरी के सदस्यों को बाद में अफसोस रहा।

फिल्मफेयर अवार्ड में भी इनके साथ भेदभाव हुआ।

फिल्म मुजरिम, प्रेम प्रतिज्ञा, प्यारी बहना, प्यार झुकता नहीं आदि में अपने अभिनय से सबका दिल जीता किंतु फिल्मफेयर का एक भी अवार्ड नहीं मिला।

कुछ वर्ष बाद उन्हें निम्न फिल्मों में अवार्ड मिला।

अग्निपथ के सह- अभिनेता का फिल्मफेयर मिला। जिस पर मिथुन खूब हंसे और प्रतिक्रिया दी कि इतनी अच्छी अच्छी फिल्म करने के बाद अब जाकर अवार्ड मिलना खलता है। अवार्ड लेने के लिए वह स्वयं नहीं गये उनके बड़े बेटे मिमोह ने अवार्ड लिया। इस भेदभाव से त्रस्त होकर कई वर्षों तक फिल्म फेयर से दूरी बना ली थी।

वर्षों बाद जल्लाद के लिए – सर्व श्रेष्ठ खलनायक का फिल्मफेयर मिला। मिथुन ने स्वयं जाकर अवार्ड लिया।

गुरु के लिए -सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का फिल्मफेयर मिला।

सामाजिक कार्य इनसे बेहतर करने वाला शायद कोई हो। कई स्कूल, मेडिकल कॉलेज, डायग्नोसिस्ट लेबोरेट्री एंड रिसर्चर सेंटर, इंजीनियरिंग कालेज भी ग़रीब छात्रों के लिए चला रहे हैं।

मिथुन चक्रवर्ती ने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी।

वह हमेशा हिम्मत के साथ संघर्ष करते रहे हैं और आज इसी संघर्ष, सरल स्वभाव के कारण उन्हें दुनिया सलाम करती है।

मिथुन के साथ जिन्होंने बुरा बर्ताव किया था, स्टार बनने के बाद मिथुन ने कभी बदले की भावना नहीं रखी। उलट उनके साथ गहरी दोस्ती हो गई।

आज के युवा/अभिनेता, अभिनेत्री ज़रा से अवसाद के कारण आत्महत्या कर लेते हैं।

हमें मिथुन चक्रवर्ती के जीवन संघर्ष से सबक और प्रेरणा लेनी चाहिए।

 

ये मनोज राय, थिएटर आर्टिस्ट टीचर का लेख हैं और पहले हस्तक्षेप में छपा है

spot_img

Related articles

Odisha Mob Attack Kills Bengal Migrant Worker, Family Alleges Identity-Based Lynching

Migrant workers from Murshidabad were allegedly attacked in Odisha after being accused of being “Bangladeshis” despite showing valid documents. One worker, Jewel Rana, succumbed to his injuries, while two others remain hospitalised. The lynching has renewed concerns over the safety of Bengali-speaking Muslim migrant workers in BJP-ruled states.

The Incident at Brigade and Bengal’s Uneasy Turn

On December 7, the Sanatan Sanskriti Sansad organised a mass Gita recitation programme at Kolkata’s historic Brigade Parade...

‘Whoever Sets the Narrative Wins’: Khan Sir on Perception and Technology

Khan Sir highlights the power of combining religious and modern education as Umeed Global School, led by Wali Rahmani, celebrates its annual day. Underprivileged students impress with languages and performances. Abdul Qadeer urges spending on education, not weddings, inspiring hope and shaping a generation ready to contribute to society

Taking Science to Society: Inside ISNA and Radio Kolkata’s Unique Collaboration

The Indian Science News Association and Radio Kolkata have launched a joint science communication initiative to counter fake news, promote scientific temper, and revive interest in basic sciences. Using community radio and Indian languages, the collaboration aims to connect scientists, students, and society amid climate crisis and growing misinformation.