Freshly Brewed

‘खेतों में जानवर खा रहे सब्जियां, हम क्या खाएं!’

लॉकडाउन ने किसानों की हालत और खराब कर दी है, मंडियाँ और बाज़ार बंद होने से उनकी सब्जियों का खरीदार ही नहीं है या कम दाम में बिक रही। कोल्हापुर का हाल पढ़े, शिरीष खरे की रिपोर्ट में

कोल्हापुर: महाराष्ट्र के पश्चिम की ओर कर्नाटक से सटे कोल्हापुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर हसुर गांव में नामदेव पाटिल ने इस बार अपने खेत के आधा एकड़ खेत हिस्से में भिंडी और ग्वारी जैसी सब्जियां उगाई थीं। लेकिन, कोरोना की दूसरी लहर में वायरस के बढ़ते संक्रमण के खतरे को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा महामारी पर काबू पाने के लिए लगाई गई पाबंदी ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। दरअसल, जिला प्रशासन द्वारा सभी थोक और साप्ताहिक बाजारों पर कड़ाई से लगाई गई रोक के कारण गांवों से शहरों में होने वाली सब्जियों की आपूर्ति बाधित हो गई है और किसानों की सब्जियां खेतों में ही बर्बाद हो रही हैं।

लॉकडाउन और सब्जियां

नामदेव पाटिल अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं, “हमने अपने खेत में 25-30 हजार रुपए की सब्जियां इस उम्मीद से बोई थीं कि जब हमें गन्ना का भुगतान समय पर नहीं मिलेगा तब भिंडियों को बाजार में बेचकर गुजारा कर लेंगे। एक तो गन्ना फैक्ट्री ने तीन महीने से हमारा ढाई लाख रुपए का भुगतान रोका हुआ है और उस पर कोरोना लॉकडाउन के चलते यदि हम सब्जी तक न बेच सकें तो बताइए छह सदस्यों के परिवार का खर्च कैसे चलाएं, क्योंकि हमारे पास दूसरा भी तो कोई काम नहीं है!”

नामदेव पाटिल की तरह यहां किसान मुख्य तौर पर गन्ना उत्पादन करते हैं और साथ ही सहायक आमदनी को ध्यान में रखते हुए अपने खेतों में सब्जियां भी उगाते हैं। लेकिन, जहां गांवों में कोरोना पाबंदी के कारण सब्जियां माटी मोल हो चुकी हैं वहीं कोल्हापुर और सांगली जैसे शहरों में सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। सभी तरह के फल व सब्जी बाजार और परिवहन सुविधाएं बंद होने से लोगों को रोजर्मरा की ऐसी जरूरी चीजें एक तो मिलनी मुश्किल हो रही हैं, वहीं यदि मिले भी तो उनके दाम चार गुना अधिक तक बढ़ गए हैं।

इस बारे में कोल्हापुर शहर में किसान नेता नामदेव गावडे बताते हैं, “जरुरी चीजों के नाम पर सिर्फ दूध ही आसानी से उपलब्ध हो रहा है, जबकि ग्रामीण इलाकों से आने वाली फल-सब्जियां आसानी से नहीं मिल रही हैं। इसलिए 20 रुपए किलो में मिलने वाले बैगन का भाव इन दिनों 25 रुपए पाव चल रहा है, 5 रुपए जोड़ी में मिलने वाली मैथी 40 रुपए में मिल रही है। यही हाल आलू प्याज, टमाटर, मिर्च और धनिया का है। इधर, रेस्टोरेंट और ढाबे वगैरह भी बंद होने से मांग घटने के बावजूद सब्जियों के दाम बढ़े हैं। इस तरह आप कह सकते हैं कि महामारी और बीमारियों के दिनों में जब आम लोगों को फल और हरी सब्जियां सबसे ज्यादा जरूरी थीं तभी उनकी सबसे ज्यादा कमी होने का असर हर वर्ग पर पड़ रहा है।”

कोल्हापुर जिले के ही बीड गांव में रहने वाले किसान दिनकर सूर्यवंशी ने भी लगभग अपने आधा एकड़ के खेत में टमाटर उगाए थे। वह कहते हैं, “यह सुनकर ही बड़ा दुख होता है कि जिस टमाटर का दाम शहर में 40 या 50 रुपए किलो हो गया है वही टमाटर हमसे दस रुपए किलो में नहीं बिक पा रहा है। इस बार तो हमें टमाटर की लागत भी नहीं मिलेगी।”

वहीं, नामदेव पाटिल कहते हैं, “मेरे गांव से कुछ दूरी पर सडोली, हरदी और रसोडी जैसे कस्बाई इलाके में हर हफ्ते बाजार लगते थे। लेकिन, फिलहाल फुटकर बाजार भी बंद होने से सिर्फ ढाई हजार की भिंडी बिकी वह भी बहुत मुश्किल से। इस तरह, हमें कम से कम 25 हजार रुपए का घाटा हुआ है। दूसरी बात यह है कि खेती में हम इतना भी न निकाल सकें तो अगले साल हम खेती के लिए पैसा लाएंगे कहां से?”

अंत में दिनकर सूर्यवंशी कहते हैं, “सरकार को चाहिए कि वह फैक्ट्रियों से होने वाले गन्ने का भुगतान इस बार जल्दी करा दे। क्योंकि, आप खुद सोचिये कि सीजन में ही हम सब्जियां न बेचें तो अपना पेट कैसे पालें। आज खेतों में लगी सब्जियां जानवर खा रहे हैं, हम क्या खाएं, क्योंकि यही सब्जियां बेचकर हम रसोई का दूसरा सामान खरीदते हैं।”

शिरीष खरे

शिरीष पिछले दो दशकों से भारतीय गांवों और हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर बयां कर रहे हैं, इन दिनों इनकी पुस्तक 'एक देश बारह दुनिया' चर्चा में है

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button