लोकतंत्र यानी जम्हूरियत चंद शब्दों की मोहताज नहीं

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INDIA और NDA– इस D पर जरा गौर कीजिए। डेवलपमेंट और डेमोक्रेसी। बीते 9 सालों में बीजेपी सरकार ने किनका विकास किया, ये अब सब जानते हैं। यह भी कि नरेंद्र मोदी के राज में डेमोक्रेसी की राजनीतिक परिभाषा क्या है।

N को भी देखिए। नेशनल– अखिल राष्ट्र के पीछे की मूल भावना को मोदी सरकार ने इस देश के संघीय ढांचे को तोड़कर ख़त्म कर दिया है।

फिर भी अलायंस है। 38 गुलाम दलों का। देश के तमाम दागी नेताओं का, जिन्हें ईडी, सीबीआई और आईटी के छापों का डर है। जो बीजेपी की मशीन में धुल चुके हैं।

यानी 2024 की राजनीतिक बिसात में INDIA 11 राज्यों और NDA 14 राज्यों की सेना के साथ खड़ा है।
धुरी बनी है कांग्रेस, जिसके पास बीजेपी की ही तरह अपने जीते हुए 4 राज्य हैं।

रायसीना हिल्स पर इन चंद शब्दों को लेकर हड़कंप मचा है। जिस एक व्यक्ति को संसद में बोलने से रोका गया, अयोग्य घोषित किया गया, उसी के निकाले चंद शब्द देश में लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं।

इसलिए भी, क्योंकि उस एक शख़्स ने नेता और जनता के बीच घमंड की बाड़बंदी को तोड़ दिया है। वह उनके साथ खड़ा है। ज्यादा ताकतवर है। अकेला नहीं है।

एक और बात, INCLUSIVE को समझिए। अगर यह देश की राजनीति में फेविकोल जैसा जोड़ बन जाए तो फिर क्षेत्रीय दलों को दीमक की तरह चाट कर अपना गुलाम बना चुकी बीजेपी और आरएसएस का क्या होगा?
निस्संदेह यह शह और मात की स्थिति है।

कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि यह सत्ता की नहीं, विचारधारा की लड़ाई है। मुद्दों के हथियारों के साथ। बीजेपी के मुख्य अस्त्र नफरत के खिलाफ।

रायसीना हिल्स में कोहराम इसलिए है, क्योंकि बीजेपी के लिए इस हथियार की काट बहुत मुश्किल है। मोदी के 9 साल का रिपोर्ट कार्ड सिवाय झूठ, फांदेबाजी और लोगों को भरमाने के और कुछ भी नहीं है।

लेकिन ज़रा ठहरिए। INDIA की इस परिभाषा को लोगों के रोटी, रोजगार, आजादी, अभिव्यक्ति और सुरक्षा जैसे मुद्दों से जोड़कर परोसना आसान काम नहीं है।

INDIA यानी विपक्ष के 26 दलों में लगभग सारे ही मुद्दों पर नाकाम रहे हैं। मतलब साफ है कि उन्हें अपने भीतर के संघर्षों से पहले पार पाना होगा।

इस चौसर में दूसरा पांसा सीटों के बंटवारे का है। एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस–बीजेपी का मुकाबला है। AAP को कैसे एडजस्ट करेंगे?

लेकिन हाँ, लोगों के लिए फिलहाल तो यही मैसेज जाना चाहिए कि कई दशकों के बाद अब जनता चुनाव लड़ने जा रही है, सत्ता नहीं।

जनता को उनके मुद्दों के हथियार दीजिए। वे लड़ लेंगे। यही लोकतंत्र की जीत होगी।

 

ये लेख फेस्बूक पोस्ट से ली गई है।

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