बलि के बकरे और पवित्र गाय

Date:

Share post:

रकार द्वारा किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है. पूरे देश में इस रोग के प्रसार और उसके कारण लगाए गए प्रतिबंधों से एक बड़ी आबादी बहुत दुःख और परेशानियां झेल रही है. इस साल की फरवरी की शुरूआत में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर की सरकारों को इस रोग से बचने के लिए उपयुक्त कदम उठाने को कहा था. परंतु उस समय भारत सरकार ‘नमस्ते ट्रंप’ और मध्यप्रदेश की सरकार को गिराने के लिए शुरू किए गए ‘आपरेशन कमल’ को सफल बनाने में व्यस्त थी. फिर 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया गया और उसके दो दिन बाद देश को ताले-चाबी में बंद कर दिया गया. इसके बाद से सरकार ने कोविड को गंभीरता से लेना शुरू किया. समय रहते स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम न उठाने की अपनी घोर असफलता को छुपाने के लिए सरकार बलि के बकरों की तलाश में थी. और तबलीगी जमात एक अच्छा बकरा साबित हुआ. पहले सरकार ने और फिर मीडिया ने देश में कोविड के प्रसार के लिए तबलीगी जमात द्वारा मरकज निजामुद्दीन में 13 से 15 मार्च तक आयोजित एक सेमिनार को दोषी बताना शुरू कर दिया.

इसमें कोई संदेह नहीं कि उस दौर में इस तरह का बड़ा आयोजन करना उचित नहीं था. परंतु हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि नमस्ते ट्रंप में भाग लेने के लिए सैकड़ों लोग विदेश से भारत आए थे. इस कार्यक्रम में लगभग दो लाख लोगों ने शिरकत की थी. उस समय तक देश में मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल खुले हुए थे और उनमें धार्मिक व अन्य आयोजन हो रहे थे. तबलीगी जमात के कार्यक्रम में भाग लेने जो लोग विदेश से भारत आए थे उन्होंने सभी आवश्यक अनुमतियां लीं थीं और हवाईअड्डों पर उनकी बाकायदा स्क्रीनिंग हुई थी. इसके बाद भी कोरोना संक्रमण के प्रसार के लिए जमात को दोषी ठहराना सरकार में बैठे लोगों की विशिष्ट मानसिकता का प्रतीक था. जमात को कठघरे में खड़ा कर देश के संपूर्ण मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधा जा रहा था.

गोदी मीडिया ने एक कदम और आगे बढ़कर यह चिल्लाना शुरू कर दिया कि तबलीगी जमात ने एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत देश में कोरोना संक्रमण फैलाया. इस तथाकथित षड़यंत्र को ‘कोरोना जिहाद’ की संज्ञा दी गई. कहा गया कि मरकज में ‘कोरोना बम’ तैयार किए जा रहे थे. मजे की बात यह है कि मरकज उस इलाके के पुलिस थाने से कुछ सौ मीटर की दूरी पर है. गोदी मीडिया की समाज में कितनी गहरी पैठ है यह इससे जाहिर है कि इस दुष्प्रचार ने तेजी से जड़ पकड़ ली कि मुसलमान जानबूझकर देश में कोरोना फैला रहे हैं. कई स्थानों पर ठेले पर सब्जी बेचने वाले गरीब मुसलमानों की पिटाई हुई और कई हाउसिंग सोसायटियों ने अपने कैम्पस में उनका प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया.

कुछ तबलीगियों को क्वारंटीन किया गया और कुछ को अस्पतालों में भर्ती किया गया. फिर तो साम्प्रदायिक गोदी मीडिया की बन आई. चारों ओर फेक न्यूज का बोलबाला हो गया. यह आरोप लगाया गया कि अस्पतालों में भर्ती तबलीगी वार्डों में नंगे घूम रहे हैं, यहां-वहां थूक रहे हैं और नर्सों के साथ अश्लीलता कर रहे हैं. इससे देश में पहले से ही मुसलमानों के प्रति जो नफरत व्याप्त थी वह और बढ़ गई. पुलिस भी हरकत में आई और विदेश से आए तबलीगियों के खिलाफ कई राज्यों में प्रकरण दर्ज कर लिए गए. उन पर वीजा नियमों का उल्लंघन करने, महामारी फैलाने और इस्लाम का प्रचार करने के आरोप लगाए गए.

इन मामलों में अदालतों के निर्णयों ने उल्टे मीडिया और पुलिस को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. इन फैसलों से जाहिर है कि पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामले कितने झूठे थे और मीडिया ने किस कदर दुष्प्रचार किया और अफवाहें फैलाईं. ऐसे ही एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने पुलिस और मीडिया पर तीखी टिप्पणियां की हैं. न्यायालय ने कहा, “जब भी कोई महामारी फैलती है या कोई आपदा आती है, तब राजनैतिक सरकारें बलि के बकरों की तलाश करने लगतीं हैं. इस मामले में परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि विदेशी तबलीगियों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया. तत्समय की परिस्थितियों और वर्तमान में संक्रमण की दर को देखते हुए ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ की गई कार्यवाही गैर-वाजिब थी”. मीडिया की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा, “प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में जमकर यह प्रचार किया गया कि भारत में कोविड-19 संक्रमण को फैलाने के लिए ये विदेशी जिम्मेदार हैं. उन्हें गंभीर मानसिक प्रताड़ना दी गई”.

यह निर्णय मुसलमानों के प्रति पुलिस और मीडिया के दृष्टिकोण की केस स्टडी है. जो मुसलमान विदेश से सेमिनार में भाग लेने आए थे या भारत में घूम रहे थे उन्हें अकारण परेशान और प्रताड़ित किया गया. अदालत ने कहा, “पुलिस द्वारा की गई यह कार्यवाही, देश के मुसलमानों के लिए एक अप्रत्यक्ष चेतावनी थी कि उनके खिलाफ कभी भी कोई भी कार्यवाही की जा सकती है. इस तरह के इशारे भी किए गए कि देश के मुसलमानों पर केवल इसलिए कार्यवाही की जाएगी क्योंकि वे विदेशी मुसलमानों से संपर्क रखते हैं. इन विदेशियों के खिलाफ कार्यवाही से दुर्भाव की बू आती है. एफआईआर को रद्द करने या प्रकरण को समाप्त करने के लिए दायर की गई याचिकाओं का निपटारा करते समय दुर्भाव का पहलू ध्यान में रखा जाना होता है”.

यह साफ है कि हमारे देश में जहां एक ओर कुछ लोगों को बलि का बकरा माना जाता है वहीं कुछ को पवित्र गाय का दर्जा मिला हुआ है और उन्हें कभी भी कुछ भी कहने या करने की आजादी है. हाल में दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में जिन लोगों के विरूद्ध पुलिस द्वारा कार्यवाही की जा रही है उनमें से अधिकांश वे हैं जिन्होंने सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन में भाग लिया था. इसके विपरीत, जिन लोगों ने भड़काऊ भाषण दिए, जिन लोगों ने देश के गद्दारों को… जैसे नारे लगाए (अनुराग ठाकुर), जिन लोगों ने कहा कि आंदोलनकारी घरों में घुसकर हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार करेंगे (प्रवेश वर्मा), जिन लोगों ने कहा कि हम उन्हें धक्का देकर भगा देंगे (कपिल मिश्रा), वे सब खुले घूम रहे हैं. उन्हें किसी का डर नहीं है.

ठीक इसी तरह का घटनाक्रम 2006-08 में देश के विभिन्न भागों में हुए बम धमाकों के बाद भी हुआ था. हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया था. बाद में विभिन्न अदालतों ने उन्हें सुबूतों के अभाव में निर्दोष घोषित कर दिया. इसके विपरीत मालेगांव बम धमाकों की प्रमुख आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को न केवल जमानत पर जेल से रिहाई मिल गई है वरन् वे सांसद भी बन गई हैं.

कहने की जरूरत नहीं कि देश में कुछ लोगों को पवित्र गाय और कुछ को बलि का बकरा घोषित कर दिया गया है. आप बकरे हैं या गाय, यह आपके धर्म पर निर्भर करता है.

(हिंदी रूपांतरण: अमरीश हरदेनिया)

spot_img

Related articles

Neeraj Ghaywan’s Homebound: A Stark, Unfiltered Look at Muslim Marginalisation and Caste Reality

Although I have always been a film buff, I hadn’t gone to a theatre in a long time....

How Do You Kill a Case? The UP Government’s Playbook in the Akhlaq Lynching

Ten years. Ten whole years since a mob dragged Mohammad Akhlaq out of his home in Dadri, beat him...

Why Indira Gandhi Remains India’s Most Influential and Most Debated Prime Minister

Let us recall the achievements of Indira Gandhi, whose birth anniversary we celebrate today. She has undoubtedly been...

नेताओं ने झारखंड की ज़मीन, जनता के हक़ के बदले सौंप दी कंपनियों को- झारखंड जनाधिकार महासभा

झारखंड अपनी 25वीं वर्षगांठ मना रहा है, लेकिन झारखंड आंदोलन के सपने पहले से कहीं ज़्यादा दूर हैं।...