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यूपी में कोरोना: आंकड़ों का खेल

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प्रबंधन और प्रचार, दोनों कला है। दोनों में आंकड़ों का खेल है। इसका दिलचस्प उदाहरण तब देखने को मिला। जब प्रधानमंत्री ने ब्राजील की तुलना में यूपी में कोरोना मामले कम होने पर संतोष व्यक्त किया। यह प्रचार कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

श्री मोदी ने आज अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एनजीओ प्रतिनिधियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संवाद किया। उन्होंने कहा कि ब्राजील में कोरोना वायरस से 65 हजार मौतें हुई हैं। उत्तर प्रदेश भी ब्राजील जितना बड़ा है, लेकिन यहां केवल 800 मौत हुईं।

प्रधानमंत्री के अनुसार ब्राजील और उत्तर प्रदेश, दोनों की जनसंख्या लगभग एक समान है। लिहाजा, यूपी में कोरोना मामले कम होना संतोष की बात है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी आई, तो सभी भारत को लेकर डरे हुए थे। 23-24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश को लेकर तो आशंकाएं और भी ज्यादा थीं। लेकिन यूपी ने संक्रमण को काबू में रखा।

ऐसे सेलेक्टिव आंकड़े किसी भी आम नागरिक को काफी प्रभावित करते हैं। लेकिन जिन्हें गहराई में जाने की आदत हो, उनके लिए यही आंकड़े बड़ी तस्वीर पेश करना आसान करते हैं।

आइए, मोदी जी के इस कथन के विस्तार में समझे।

यह सच है कि यूपी और ब्राजील की आबादी लगभग समान है। ब्राजील में अब तक कोरोना के 17 लाख से ज्यादा मामले आए और 68 हजार मौत हुई है। जबकि यूपी में मात्र 31 हजार मामले आए और 845 मौत हुई।

लेकिन इसे यूपी में कोरोना का संक्रमण न होने अथवा बेहतर नियंत्रण में सफलता बतौर देखना जल्दबाजी होगी। हमें सबसे पहले यह देखना होगा कि कोरोना के कितने टेस्ट हुए हैं।

12 जुलाई तक ब्राजील में कोरोना के 45.72 लाख टेस्ट हुए। यानी प्रति दस लाख आबादी पर 21508 टेस्ट हुए। दूसरी तरफ, 12 जुलाई तक उत्तर प्रदेश में मात्र 11.08  लाख टेस्ट हुए। प्रति दस लाख आबादी पर मात्र 4929 टेस्ट।

जाहिर है कि जब टेस्टिंग ही नहीं होगी, तो किसी व्यक्ति के कोरोना से ग्रसित होने अथवा नहीं होने का पता कैसे चलेगा? दिलचस्प है कि पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि भारत में ज्यादा टेस्ट कराए जाएं, तो कोरोना के अधिक मामले सामने आएंगे।

उत्तर प्रदेश में कोरोना की कम टेस्टिंग होना विवाद का विषय रहा है। राज्य के वरीय पूर्व आईएएस सूर्यप्रताप सिंह ने ट्वीटर में यूपी सरकार पर ‘नो टेस्ट, नो कोरोना’ पॉलिसी पर चलने का आरोप लगाया था। इसके कारण उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गई।

ऐसे में प्रधानमंत्री के सेलेक्टिव आंकड़े हमें समग्र पहलुओं पर सोचने को बाध्य करते हैं। यूपी और ब्राजील की जनसंख्या के आधार पर जैसी तुलना की गई है, वैसा ही भारत और चीन के संदर्भ में करें, तो तस्वीर बिल्कुल उलट जाएगी।

चीन की आबादी भारत से काफी अधिक है। वर्ष 2020 में चीन की अनुमानित आबादी 143 करोड़ है जबकि भारत की 138 करोड़। इस नाते भारत में कोरोना मामले चीन से काफी कम होने चाहिए। लेकिन 12 जुलाई तक के आंकड़ों के अनुसार चीन में कोरोना के कुल 83,602 मामले हैं और 4634 लोगों की मौत हुई है। दूसरी ओर, भारत में 8,79,888  मामले हो चुके हैं था 23200 लोगों की मौत हो चुकी है। यानी भारत में कोरोना मामले चीन से 10.52 गुना अधिक हैं। साथ ही, चीन से 5.00 गुना ज्यादा मौत भारत में हो चुकी है।

भारत से चीन की तुलना में एक और महत्वपूर्ण तथ्य है। चीन ने अब तक नौ करोड़ से ज्यादा टेस्ट किये हैं जबकि भारत अब तक 1.18 करोड़ टेस्ट तक सीमित है। यानी चीन ने भारत से नौ गुना ज्यादा टेस्ट किए। अगर भारत ने भी नौ करोड़ टेस्ट किये होते, तो कोरोना पॉजिटिव की संख्या कितनी अधिक होती, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।

कोरोना पॉजिटिव लोगों में बड़ी संख्या असिम्प्टोमिक लोगों की। इनमें कोई लक्षण नहीं दिखते। इसके कारण जो कोरोना संक्रमित हैं, उनमें काफी लोगों जो इसका पता ही नहीं चलता। ऐसे लोग अगर किसी अन्य रोग से ग्रसित न हों, तो सामान्यतः 15 दिन में ठीक हो जाते हैं। लेकिन दूसरों को संक्रमित करते रहते हैं। इनमें जिनकी मौत हो जाती है, उसे किसी अन्य वजह से मौत के रूप में देखा जाता है, चूंकि कोरोना की जांच तो हुई ही नहीं।

इसका एक उदाहरण झारखंड के धनबाद में देखने को मिला है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में यहाँ एक-दो पत्रकार कोरोना संक्रमित पाए गए। तब जिला प्रशासन ने पत्रकारों के लिए स्वैच्छिक टेस्टिंग की व्यवस्था कर दी। जिन पत्रकारों को कोई लक्षण नहीं था, उनकी भी टेस्टिंग हुई। कुल 55 लोगों में 23 कोरोना संक्रमित पाए गए। इन पत्रकारों की स्वैच्छिक जांच न हुई होती, तो अधिकांश के कोरोना संक्रमित होने का पता ही नहीं चलता

जाहिर है कि आंकड़ों के इस खेल में किसी भी चर्चा का प्रारंभ इस तथ्य के साथ होना चाहिए कि कोरोना के टेस्ट कितने हुए। भारत में प्रति दस लाख आबादी पर राष्ट्रीय औसत 8553 टेस्ट का है। इसकी तुलना में यूपी में महज 4929 टेस्ट होना बेहद कम माना जाएगा। जबकि इसी अवधि में दिल्ली ने प्रति मिलियन 39863 टेस्ट किये हैं। इसके कारण दिल्ली में कोरोना के केस भी ज्यादा दिखना स्वाभाविक है। इसके बावजूद दिल्ली में रिकवरी रेट बढ़ना और एक्टिव मामलों की संख्या कम होना संतोषजनक है। प्रधानमंत्री ने शनिवार को समीक्षा के दौरान पूरे एनसीआर में कोरोना पर दिल्ली जैसे प्रयासों पर जोर देकर अच्छा संकेत दिया है।

सर्वाधिक केस वाले राज्य महाराष्ट्र ने प्रति मिलियन 11012 टेस्ट किये। तमिलनाडु ने 21262 टेस्ट किये और दूसरे नंबर पर है। तीसरे नम्बर पर दिल्ली राष्ट्रीय औसत से 4.66 गुना ज्यादा टेस्टिंग कर रही है।

लिहाजा, बिहार में 2594, उत्तर प्रदेश में 4929, झारखंड 4824, मध्यप्रदेश 5912, गुजरात 6839, छत्तीसगढ़ 7306, उत्तराखंड 8448 टेस्ट प्रति मिलियन काफी कम हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना की अधिकतम टेस्टिंग को सबसे जरूरी बताया है। भारत में कोरोना का प्रसार रोकने के लिए अधिकतम टेस्टिंग का कोई विकल्प नहीं। इस आलोक में देखें तो ब्राजील से तुलना करके उत्तर प्रदेश की कथित सफलता पर खुश होना आत्मघाती है।

अगर हम कोरोना के अधिकतम मामलों की पहचान करके सबके इलाज के दायित्व से मुंह चुराएंगे तो लोग बीमार और खोखले होते जाएंगे।

 

ये लेखक के निजी विचार हैं।

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