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पारंपरिक वोटरों की नाराजगी से भाजपा चिंतित

राँची:  झारखंड में दो चरण के चुनाव सम्पन्न होने के बाद अब तक के आकलन से महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आ रहे हैं। स्वतंत्र पर्यवेक्षकों तथा दिल्ली से आए मीडियाकर्मियों से मिली जानकारी के साथ ही खुद भाजपा के विभिन्न राज्यों से आए नेताओं का आकलन बताता है कि सीटों के उम्मीदवार चयन में भाजपा ने भारी लापरवाही की है। हत्या, रेप या भ्रष्टाचार के कुछ आरोपियों को टिकट देने के कारण भाजपा के खिलाफ माहौल बना। इसके कारण पारंपरिक वोटरों की नाराजगी ने भाजपा नेताओं को चिंता में डाल दिया है।

सबसे ज्यादा नुकसान जमशेदपुर पश्चिमी और रांची सीट के उम्मीदवार को लेकर होने का आकलन किया जा रहा है। दोनों सीटें शहरी और राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक हॉट सीट होने के कारण इसका नुकसान पूरे राज्य में होता दिख रहा है। झारखंड में प्रचार के लिए आए एक वरिष्ठ नेता ने आपसी चर्चा में खुलकर आश्चर्य जताया कि जमशेदपुर पश्चिमी सीट से सरयू राय को टिकट नहीं देकर ऐसा आत्मघाती कदम उठाने के पीछे कौन जिम्मेवार है।

इसलिए यह माना जा रहा है कि इसका असर सिर्फ रांची पर नहीं बल्कि राज्य की अन्य सीटों पर भी पड़ रहा है। भाजपा का जो पारंपरिक वोटबैंक अब तक खुलकर वोट देता आया था, उसका इस तरह बगावत पर उतर आना यह साबित करता है कि भाजपा नेतृत्व किस तरह जड़ों से कट गया है। दिल्ली से आए एक पर्यवेक्षक ने हैरानी जताई कि जब सीपी सिंह के खिलाफ इतनी ज्यादा शिकायत थी, तो यह बात प्रदेश भाजपा नेताओं ने अपने आलाकमान को क्यों नहीं बताई।

इसी तरह, राजधानी रांची में स्थानीय नागरिकों खासकर भाजपा और संघ के पुराने समर्पित लोगों और व्यवसायी वर्ग द्वारा लंबे समय से स्पष्ट मांग किये जाने के बावजूद सीपी सिंह को उम्मीदवार बनाने को भी एक बड़ी चूक के तौर पर देखा जा रहा है। इससे नाराज होकर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पूरे समाज ने जिस तरह पवन कुमार शर्मा को समर्थन दिया है, उससे भाजपा के परंपरागत वोटबैंक को भारी झटका लगा है। पवन कुमार शर्मा झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स तथा इंडस्ट्रीज से जुड़े हैं। इस संगठन की पहुंच पूरे झारखंड के व्यवसायी समुदाय तक होने के कारण राज्य की कई सीटों में भाजपा का पारंपरिक व्यवसायी तबका पूरी तरह नाराज दिख रहा है।

इसलिए यह माना जा रहा है कि इसका असर सिर्फ रांची पर नहीं बल्कि राज्य की अन्य सीटों पर भी पड़ रहा है। भाजपा का जो पारंपरिक वोटबैंक अब तक खुलकर वोट देता आया था, उसका इस तरह बगावत पर उतर आना यह साबित करता है कि भाजपा नेतृत्व किस तरह जड़ों से कट गया है। दिल्ली से आए एक पर्यवेक्षक ने हैरानी जताई कि जब सीपी सिंह के खिलाफ इतनी ज्यादा शिकायत थी, तो यह बात प्रदेश भाजपा नेताओं ने अपने आलाकमान को क्यों नहीं बताई।

धनवार सीट, पे भी उसी तरह का मामला है, पार्टी ने जिसे उम्मीदवार बनाया, इससे के पार्टी के लोग खुश नहीं थे और फिर अब एक निर्दलय प्रत्याशी  को ज्यादा समर्थन मिल रहा।  धनवार एक ऐसी सीट बन गयी हैं जहां भाजपा को रेस में रहने के लिए मुशक्कत करना पढ़ रहा।

वही टिकट बटवारे के इलावा, रघुबर दास की कार्यशैली से भी पारंपरिक वोट बैंक की नाराजगी है।

समझा जाता है कि चुनाव के बाद ऐसे मुद्दों की समीक्षा की जाएगी तथा संगठन के प्रमुख दायित्व पर बैठे ऐसे पदाधिकारियों की भूमिका की जांच होगी, जिनकी लापरवाही के कारण भाजपा को अपने पारंपरिक वोटबैंक की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।

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One Comment

  1. Think think think Now the time has come. There should be one amendment in Representation of People’s Act 1951 that any person in India should not be allowed to contest Election for more than three times. And also if a person is elected then more than after completing two terms he should be not be allowed to contest Election. So that new generations should come forward to contest Election In India and also in USA President is not allowed to contest Election after completing two terms as President of their respective Nations

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