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कॉर्पोरेट के नजरिए से बंगाल चुनाव का विश्लेषण

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पने कभी ध्यान से सोचा कि आखिरकार पश्चिम बंगाल में ऐसा क्या खास है जो पिछले कई सालों से भाजपा अपनी पूरी ताकत लगा कर यहाँ के राजनीतिक समीकरण को अपने पक्ष में करने मे इतनी आतुर नजर आती है?

राजनीतिक विश्लेषण तो बहुत से समीक्षक करते हैं लेकिन वे नही बताते कि पश्चिम बंगाल का इलेक्शन जीतना पूर्वोत्तर भारत और उसके जरिए पूरे उत्तर पूर्वी एशिया के देशो तक अडानी अम्बानी के कॉर्पोरेट गैंग की पकड़ बना देगा।

दरअसल बंगाल चुनाव में भाजपा के पीछे अडानी अम्बानी की कॉर्पोरेट लॉबी पूरी ताकत से धन बल के साथ जुटी हुई है, साम दाम दंड भेद का हर सम्भव तरीके से इस्तेमाल हो रहा है।

दस साल पहले सोची समझी रणनीति के तहत वाम का किला ढहाया गया और अब उस किले को ढहाने वाले को ढहाया जा रहा है। वाम के किले में सेंध ममता ने लगाई और अब ममता के किले में सेंध बीजेपी लगा रही है ममता को 21 सदी के पहले दशक में कॉर्पोरेट घरानों और नए उदार अमीरों का अंध समर्थन मिला था लेकिन 2021 में तो असली डाकू आए हैं।

दरअसल अभी तक वाम के लाल रंग के कारण बंगाल एक ऐसा मजबूत गढ़ था जहाँ अडानी अम्बानी अब तक अपना खेल खुल कर नही खेल पा रहे थे। इसलिए अडानी अम्बानी गैंग के लिए 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जीतना करो या मरो जैसा प्रश्न है वह बंगाल को भी देश की ‘मुख्य धारा’ में शामिल करने के लिए हर कीमत देने को तैयार है। बीजेपी का विकास ‘मॉडल’ अब बंगाल में भी दोहराए जाने को तैयार है।

हम सब जानते हैं कि अडानी का कब्जा पूरे देश की कोस्टल लाइन पर हो गया है, अडानी ग्रुप के पास देश का सबसे बड़ा पोर्ट नेटवर्क है। पश्चिमी तट के जितने भी प्रमुख बन्दरगाह है वह मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उसके नियंत्रण में आना शुरू हो गए थे 2014 से 2019 के दौर में पूरी तरह से उसके कब्जे में आ चुके हैं देश के पूर्वी तट पर भी एक एक करके बन्दरगाह वह अपने कब्जे में कर रहा है, अब सिर्फ बंगाल का हल्दिया पोर्ट ही ऐसा है जहाँ उसे राज्य सरकार के प्रतिकार का सामना करना पड़ता है, हल्दिया पोर्ट से नेपाल तक को माल सप्लाई होता है।

अडानी अम्बानी इस वक्त बंगाल को साउथ-ईस्ट एशिया और नॉर्थ-ईस्ट इंडिया को जोड़ने के लिए एक गेटवे की तरह देख रहे हैं।

बिहार में कॉर्पोरेट की पहली जीत हो चुकी है, भाजपा नीतीश कुमार को इस चुनाव में वह सबक सिखा चुकी हैं, अब भाजपा बड़ा भाई है और जेडीयू छोटा भाई, नीतीश के पर कतरे जा चुके हैं, वहाँ वे बीजेपी के रबर स्टैंप के बतौर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं।

अडानी समूह ने 2018 में  कह चुका है कि वह पश्चिम बंगाल के हल्दिया में कंपनी की खाद्य तेल रिफाइनरी की क्षमता को दोगुना करने के लिए 750 करोड़ रुपए का निवेश करेगा मुकेश अंबानी भी पश्चिम बंगाल में 5,000 करोड़ रुपए का निवेश करने का ऐलान कर चुके हैं। यह निवेश पेट्रोलियम और खुदरा कारोबार में किया जाएगा।

वाराणसी से हल्दिया के बीच गंगा में विकसित हो रहे जलमार्ग पर अडानी ग्रुप 10 जलपोतों का संचालन करने जा रहा है पटना टर्मिनल तक भी वह दो हजार टन क्षमता के जहाज चलाना चाहता है।

इसके अलावा उन्हें एक पूरी तरह से अनछुआ व्यापार क्षेत्र मिलने जा रहा है, भारत को जमीन के रास्ते दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने की योजना है। भारत-म्यांमार-थाईलैंड को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए भारत के सहयोग से ट्राई लेटरल हाईवे का निर्माण चल रहा है। अब थाईलैंड और भारत के मध्य व्यापार बढ़ाने के लिए थाईलैंड के रानोंग बंदरगाह से भारत के चेन्नई व अंडमान को भी समुद्र मार्ग से जोड़ने की योजना है।

बांग्‍लादेश भी तीनों तरफ से पूर्वोत्तर भारत से घिरा हुआ है यानी वहाँ भी व्यापार की अपार संभावनाएं हैं और मोदी अपने हर दौरे में अडानी अम्बानी के लिए वहाँ जाकर बड़े बड़े प्रोजेक्ट हासिल करते आए हैं।

साफ है कि अडानी अम्बानी जैसे गुजराती पूंजीपतियों के लिए बंगाल चुनाव जीतना बहुत महत्वपूर्ण है इससे उन्हें पूर्वोत्तर भारत और उस रास्ते के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया तक पैर जमाने का मौका मिल जाएगा।

इसी के लिए हिंदुत्व की जमीन तैयार की जा रही है जब बिहार में कॉरपोरेट पूंजीपतियों ने अपने कदम बढाने शुरू किए तो उन्होंने बेगुसराय जिले के सिमरिया में कुंभ के नाम एक बहुत बड़ा धार्मिक इवेंट करवाया था इस इवेंट में गुजरात के कई उद्योगपतियों ने अपना पैसा लगाया था। इस पैसे से बीजेपी ने वहाँ वोटों की तगड़ी फसल काटी है।

इसी पैटर्न पर पिछले कुछ सालों से बंगाल में धार्मिक ध्रुवीकरण का माहौल बनाया जा रहा है, ओर जमकर पैसा झोंका गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस पैसे से मिली सफलता हम देख चुके हैं और 2021 में भी भाजपा लोकसभा चुनाव जैसी सफलता की उम्मीद कर रही है।

बंगाल चुनाव में भाजपा के पीछे से जो अडानी अम्बानी जैसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों का एजेण्डा है उसे एक बार ध्यान से समझना जरूरी है।

ऐसा आपने कितनी बार देखा है कि निवर्तमान 4 सांसदो को केंद्र का सत्ताधारी दल विधायक बनाना चाहता हो?

खेल बहुत गहरा है!

ये लेखक के निजी विचार है।

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