धर्म, जाति और पैसे की सियासत में उत्कृष्ट विधायक की हार: क्या झारखंड को मिलेगा विनोद सिंह जैसा दूसरा जनप्रतिनिधि?
बगोदर में जाति, धर्म और पैसे की ताकत ने एक मजबूत नेता को हरा दिया, जिसने जनता के लिए सबसे कठिन समय में खड़े होकर काम किया। विनोद सिंह ने न केवल कोविड के दौरान असहाय लोगों की मदद की, बल्कि शिक्षा और विकास में अपनी छाप छोड़ी। उनकी हार से झारखंड में यह बहस छिड़ गई है कि क्या विकास की राजनीति का दौर खत्म हो चुका है?
गिरिडीह, मार्च 2024: बगोदर विधायक विनोद सिंह और झारखंड के खान भूतत्व विभाग मंत्री बादल पत्रलेख के बीच विधानसभा में संवाद:
विनोद सिंह: 2021 में अभ्रक और ढिबरा के उत्पादन के लिए झारखंड सरकार के नियम बनने के बाद (मानक संचालन प्रक्रिया) एसओपी नहीं बनने से सिर्फ नियम बनकर रह गया, और 15 महीने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिल रहा। मंत्री जी बताएं, कब तक एसओपी बन जाएगा?
बादल पत्रलेख: विभाग इस मामले को लेकर संवेदनशील है। कई सारे विभागों से रिपोर्ट आने का इंतजार है, उसके बाद एसओपी बनाई जाएगी।
विनोद सिंह: बिलकुल, सरकार संवेदनशील है, पर कितना समय लगेगा, ये बता दें।
विधानसभा अध्यक्ष रविन्द्र नाथ महतो: जी, मंत्री जी बताएं कब तक बनेगा एसओपी?
बादल पत्रलेख: रिपोर्ट आते ही, जल्द।
विनोद सिंह: एक समय बताएं।
विधानसभा अध्यक्ष: एक समय बता दीजिए, मंत्री जी।
बादल पत्रलेख: जी, तीन महीने में।
ऐसे कई संवाद हैं झारखंड विधानसभा के, जहां विनोद सिंह, बिना किसी नतीजे पर पहुंचे कभी नहीं माने।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन की सरकार ने 81 विधानसभा सीटों में से 56 पर जीत हासिल कर ली। भारतीय जनता पार्टी के तमाम नफरती कोशिशों के बावजूद, उसे राज्य की सत्ता में काबिज होने से रोक दिया, हालांकि गठबंधन के 4 मंत्री भी हार गए।
लेकिन जिस एक हार पर झारखंड के बाहर भी चर्चा हो रही है, वह है बगोदर के सीपीआई(एमएल) विधायक विनोद सिंह। अपने शालीन व्यक्तित्व, कानून और संविधान की अच्छी समझ, लोगों के बीच 24 घंटे उपलब्ध होने, और कभी जाति, धर्म या पैसे की ताकत की राजनीति न करने वाले विनोद सिंह ने सड़क से सदन तक हर तरह के मसलों को उठाकर अपनी एक विशिष्ट पहचान पिछले 15-20 सालों में बनाई थी।
जब कोविड का दौर था, उस समय जिस विधायक ने प्रवासी मजदूरों के लिए सबसे ज्यादा काम किया, कोविड से मारे गए लोगों का स्वयं खड़े रहकर अंतिम संस्कार करवाया, और पीड़ित परिवारों के साथ मजबूती से खड़े दिखे, वह विनोद सिंह ही थे।
कोविड के प्रभाव से बाहर आने के बाद, उन्होंने अपने क्षेत्र में सबसे ज्यादा स्कूल, इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेज को सरकार से पास करवाया। इतने सारे काम किसी और क्षेत्र में नहीं हुए।
पिछले विधानसभा कार्यकाल में उन्हें उत्कृष्ट विधायक का खिताब भी मिला था।
पर झारखंड, खासकर बिहार से सटे कोडरमा लोकसभा क्षेत्र, जिसमें बगोदर भी आता है, वहाँ ‘अब’ इतना काफी नहीं है। अगर उम्मीदवार की जाति के अनुसार अच्छा-खासा वोट नहीं है, पार्टी धर्म की राजनीति नहीं करती और चुनाव में पैसे नहीं बांटती, तो उस उम्मीदवार का जीतना संभव नहीं।
हाँ, एक दौर था, जब उम्मीदवार की जाति या धर्म नहीं, बल्कि उसका काम देखा जाता था। अगर उसका व्यक्तित्व शानदार होता, तो यह काफी माना जाता। पर अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त व्यक्ति ने सार्वजनिक तौर पर धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लिया या नहीं, यह ज्यादा महत्व रखने लगा है।
यह तो उम्मीद ही नहीं की जा सकती कि कोई विनोद सिंह के किए कामों के समानांतर कुछ कर पाएगा। पर इससे भी बड़ी बात यह है कि पूरे राज्य के लोगों के हक-अधिकार की बात उठाने वाले पूर्व सीपीआई (एमएल) विधायक की तरह राज्य को कोई दूसरा नेता मिल पाएगा।
विनोद सिंह को 2019 के मुकाबले मात्र 3,317 वोट कम मिले
पर उनके प्रतिद्वंद्वी के वोट 43,845 बढ़ गए। ऐसा किसी सिटिंग विधायक के लिए तभी हो सकता है, जब उसके खिलाफ बहुत ज्यादा एंटी-इनकम्बेंसी (सत्ता विरोधी लहर) हो या लोगों में गुस्सा हो।
लेकिन जहां एक उत्कृष्ट विधायक हो, और सामने वह उम्मीदवार हो, जो खुद एंटी-इनकम्बेंसी के कारण 2019 में हार चुका हो, और 2024 में 40,000 से ज्यादा वोट लाकर जीत जाए, तो इसे जाति, धर्म और पैसे की सफलता नहीं कहेंगे तो और क्या?