मोदीनामा-अडानी पुराण: विवादों ने देश की साख को लगाया बट्टा – 3

Date:

Share post:

[dropcap]अ[/dropcap]डानी समूह का इंडोनेशिया में महत्वपूर्ण और दीर्घकालिक व्यापारिक संबंध रहा है, मुख्य रूप से कोयला खनन और बुनियादी ढांचे के विकास में। कंपनी ने अपनी सहायक कंपनी पीटी अडानी ग्लोबल के माध्यम से देश में अपनी उपस्थिति प्रदर्शित की, जो कोयला खनन और सैन्य सहायता प्रदान करने में लगी हुई है।

इस कंपनी ने 2007 में हासिल किए गए ‘एक्सप्लोरेशन लाइसेंस’ के साथ परिचालन शुरू किया था। इसकी कोयला खदान और बंदरगाह उत्तरी कालीमंतन (बोर्नियो) प्रांत के बुन्यु नामक छोटे से द्वीप पर स्थित हैं।

‘अडानी वॉच’ ने पहले भी बन्यू द्वीप पर अडानी के व्यापक कोयला खनन कार्यों के नकारात्मक प्रभावों को उजागर किया है, खासकर स्थानीय तिदुंग समुदाय पर पड़ रहे प्रभाव का। इंडोनेशियाई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) जतम की एक रिपोर्ट में इन गतिविधियों के नतीजों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना (ओसीसीआरपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 9 जनवरी 2014 को, इंडोनेशिया से दो सप्ताह की यात्रा के बाद, एमवी कल्लियोपी एल चेन्नई नामक एक बल्क कैरियर जहाज तमिलनाडु के एन्नोर बंदरगाह पर पहुंचा। जहाज पर 69,925 मीट्रिक टन कोयला लदा था, जो राज्य सरकार की बिजली कंपनी, तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन, के लिए था।

बहरहाल, कोयला शिपमेंट के लिए जो कागजी कार्रवाई प्रस्तुत की गई, उसके अनुसार यह कोयला एक बहुत ही जटिल रास्ते, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स और सिंगापुर से होते हुए यहां आया था। ये दोनों ही देश टैक्स हेवन हैं। इस काल्पनिक यात्रा के कारण कोयले की घोषित कीमत तीन गुना से अधिक बढ़कर 91.91 डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई। इससे भी अधिक दिलचस्प बात यह है कि कोयले का वर्गीकरण निम्न-श्रेणी के स्टीम कोयले से बदलकर उच्च-गुणवत्ता वाली किस्म में हो गया, जिसे आमतौर पर बिजली उत्पादन कंपनियां मांगती हैं।

यह कोई अकेली घटना नहीं थी। ओसीसीआरपी द्वारा प्राप्त और ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ के साथ साझा किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि जनवरी और अक्टूबर 2014 के बीच, कम से कम 24 ऐसे शिपमेंट तमिलनाडु के तट पर पहुंचे थे। शुरुआत में निम्न-श्रेणी के कोयले के रूप में बिल किए गए इन कार्गो को अडानी समूह की कंपनी ने राज्य सरकार के स्वामित्व वाली बिजली कंपनी को कथित तौर पर मूल कीमत से तीन गुना अधिक कीमत पर बेचा। अडानी समूह ने सामान्य शब्दों में इन आरोपों से इंकार किया है।

इन आरोपों के समर्थन में विभिन्न स्रोतों से साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जिनमें चालान, विभिन्न देशों के बैंकिंग रिकॉर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) और भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की सीमा शुल्क खुफिया शाखा द्वारा की गई जांच, अडानी के इंडोनेशियाई कोयला आपूर्तिकर्ताओं में से एक से लीक हुए दस्तावेज तथा तमिलनाडु की बिजली उपयोगिता कंपनी (टीएएनजीईडीसीओ) के आंतरिक रिकॉर्ड आदि शामिल हैं।

हालांकि ये निष्कर्ष निर्णायक नहीं हैं, लेकिन वे इस आरोप को मजबूत करते हैं कि अडानी समूह ने ओवर-इनवॉइसिंग की है। इन आरोपों की जड़ मई 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने से दो साल पहले, 2012 में डीआरआई द्वारा की गई जांच से जुड़ी है। यह जांच 40 कंपनियों पर केंद्रित थी, जिन्होंने इंडोनेशिया से आयातित कोयले की कीमतों में कथित तौर पर कृत्रिम रूप से वृद्धि की थी। डीआरआई ने आरोप लगाया है कि इन बढ़ी हुई लागतों का बोझ उपभोक्ताओं पर डाला गया, जिससे बिजली के बिल बढ़ गए।

30 मार्च 2016 को, 30 मार्च 2016 को, डीआरआई ने देश भर के 50 कस्टम कार्यालयों को एक ‘लुक-आउट’ सर्कुलर जारी किया, जिसमें इन कंपनियों द्वारा ओवर-इनवॉइसिंग की संभावना के बारे में चेतावनी दी गई थी। इस लेख के लेखकों में से एक ने उस वर्ष अप्रैल में पहली बार डीआरआई के निष्कर्षों की रिपोर्ट की थी।

प्रधानमंत्री मोदी 7 सितंबर 2023 को आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंडोनेशिया गए थे। (आसियान का मतलब है दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन।) एक महीने बाद ही अक्टूबर में, अडानी इंडोनेशियाई सरकार के साथ मलक्का जलडमरूमध्य के पास स्थित सबांग बंदरगाह को विकसित करने के लिए बातचीत कर रहे थे , जो एक महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्ग है। इस परियोजना में एक नया कंटेनर टर्मिनल और अन्य पारगमन बंदरगाह सुविधाएं स्थापित करना शामिल था, जिसका प्रारंभिक निवेश लगभग 1 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।

नेपाल के हवाई मार्गों पर प्रतिबंध और अडानी

वर्तमान में भारत सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए नेपाल को विमानों के लिए उच्च ऊंचाई वाले मार्गों का उपयोग करने से रोक रहा है। यह हिमालयी देश चीन के साथ सीमा साझा करता है। सीमा के पास भारतीय हवाई क्षेत्र में नए उड़ान मार्गों को काफी सावधानी के साथ मंजूरी दी जा रही है। यह नेपाल और भारत के बीच तनाव का एक बिंदु रहा है, विशेष रूप से नेपाल में नए हवाई अड्डों के संचालन के संबंध में, जैसे कि पोखरा और भैरहवा में, जिन्हें चीन से ऋण लेकर बनाया गया था, लेकिन हवाई क्षेत्र के उपयोग पर भारत के प्रतिबंधों के कारण आर्थिक रूप से अव्यवहारिक बने हुए हैं।

नेपाल के ‘हिमाल खबर’ नामक एक अखबार ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार काठमांडू पर ‘विभिन्न बहानों’ के तहत पोखरा और भैरहवा तक हवाई पहुंच न बढ़ाने के लिए दबाव डाल रही है, जब तक कि अडानी को इन हवाई अड्डों के संचालन के लिए सौदा नहीं मिल जाता और इसके साथ ही निजगढ़ में प्रस्तावित हवाई अड्डे के साथ-साथ लुम्बिनी (एक बौद्ध सांस्कृतिक केंद्र) में भी एक हवाई अड्डा नहीं मिल जाता।

भारत और नेपाल की सरकारों के अधिकारियों ने जून 2023 में इन मुद्दों पर चर्चा की। इसके बाद, अडानी समूह के अधिकारियों ने जनवरी 2024 में काठमांडू का दौरा किया, नेपाली नागरिक उड्डयन अधिकारियों के साथ बातचीत की और भारत-नेपाल सीमा के पास एक नए हवाई अड्डे के निर्माण में निवेश करने की योजना की घोषणा की। इसके अलावा, भैरवाहा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के संचालन को भी अपने हाथ में लेने की घोषणा की। बहरहाल, हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के कारण ये योजनाएं अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं। 15 जुलाई को केपी शर्मा ओली नेपाल के नए प्रधान मंत्री बने हैं।

हाल की रिपोर्टों से पता चलता है कि अडानी समूह नेपाल में बिजली परियोजनाओं के निर्माण के अधिकार रखने वाले डेवलपर्स के साथ सक्रिय रूप से बातचीत कर रहा है, ताकि भूटान और भारत को बिजली निर्यात की जा सके। यह समूह की भारत के बाहर 10 गीगावाट  जलविद्युत क्षमता के निर्माण की योजना का हिस्सा है, जो वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने की उसकी अपनी रणनीति का हिस्सा है। नेपाल के अलावा, अडानी समूह भूटान, केन्या, तंजानिया, फिलीपींस और वियतनाम में भी जलविद्युत परियोजनाओं में निवेश करने की योजना बना रहा है। समूह वर्ष 2030 तक 50 गीगावाट उत्पादन क्षमता विकसित करने की भी योजना बना रहा है।

अडानी की ‘ऑस्ट्रेलिया’ में विवादित उपस्थिति

वर्ष 2014 में, ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में ग्रुप ऑफ़ 20 (जी-20) शिखर सम्मेलन के दौरान, कैनबरा सहित अन्य शहरों में विभिन्न समारोह आयोजित किए गए थे, जहां मोदी ने गौतम अडानी और भारत के सबसे बड़े बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की तत्कालीन प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य से मुलाकात की थी। बैठक में, यह घोषणा की गई कि एसबीआई और अडानी समूह के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत एसबीआई अडानी की कारमाइकल कोयला खनन परियोजना के लिए अडानी समूह को 1 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण देगा। भट्टाचार्य ने इस कोयला खदान परियोजना को व्यवहारिक बताया था, लेकिन अडानी समूह को ऋण कभी नहीं मिला।

इसके बावजूद, अडानी की कारमाइकल कोयला खदान परियोजना अत्यधिक विवादास्पद रही थी। इसके बाद, खदान के विकास की गाथा पर्यावरण विरोध, स्वदेशी अधिकार संघर्ष और कानूनी चुनौतियों से जुड़ गई। यह परियोजना 2010 में तब शुरू हुई थी, जब अडानी ने क्वींसलैंड के गैलिली बेसिन में एक विशाल ओपन-पिट कोयला खदान विकसित करने और मुख्य रूप से भारत को निर्यात के लिए एबॉट पॉइंट टर्मिनल तक कोयले के परिवहन के लिए एक रेलवे बनाने के अधिकार हासिल कर लिए थे।

पर्यावरणविदों ने इस परियोजना से ग्रेट बैरियर रीफ को नुकसान पहुंचने और जलवायु परिवर्तन में इसके नकारात्मक प्रभाव की संभावना के बारे में चिंता जताई। ‘स्टॉप अडानी’ जैसे समूहों ने खदान के खिलाफ सक्रिय रूप से अभियान चलाया। उनका तर्क था कि अडानी द्वारा कोयले का बड़े पैमाने पर दोहन ऑस्ट्रेलिया के कार्बन फुटप्रिंट को काफी हद तक बढ़ा देगा, जो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में कठिनाई पैदा करेगा। पानी के उपयोग को लेकर चिंताएं असहमति का एक और कारण थीं। स्थानीय किसानों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह खदान सूखाग्रस्त क्षेत्रों में आवश्यक भूजल संसाधनों को खत्म कर सकती है।

खदान को वांगान और जगलिंगौ समुदाय के लोगों से भी काफी विरोध का सामना करना पड़ा , जिनकी पारंपरिक भूमि में खनन क्षेत्र शामिल है। जबकि स्वदेशी समुदाय के कुछ सदस्यों ने इस परियोजना का समर्थन किया, कई लोगों ने इसका विरोध किया और अडानी पर उनके अधिकारों और सांस्कृतिक विरासत की अनदेखी करने का आरोप लगाया। परियोजना को रोकने के लिए वांगान और जगलिंगौ लोगों की कानूनी लड़ाइयों का दस्तावेजीकरण किया गया है। कई वर्षों तक मुकदमेबाजी के बावजूद, ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अडानी को परियोजना को आगे बढ़ाने की अनुमति दी, लेकिन काफी छोटे पैमाने पर। अक्षय ऊर्जा की ओर वैश्विक बदलावों को देखते हुए खदान की आर्थिक व्यवहार्यता पर सवाल उठना जारी है।

बॉब ब्राउन फाउंडेशन सहित व्यापक विरोध के बावजूद, अडानी ने कोयला खनन शुरू किया और पहली खेप दिसंबर 2021 में निर्यात की गई। बहरहाल, खदान मूल रूप से प्रस्तावित क्षमता के केवल छठे हिस्से पर काम कर रही है (6 के बजाय 1 करोड़ टन प्रति वर्ष)। यह अडानी की खदान के तीव्र विरोध का प्रत्यक्ष परिणाम था। नकारात्मक प्रचार को संभालने के प्रयास में, अडानी ने अपनी ऑस्ट्रेलियाई सहायक कंपनी का नाम बदलकर ब्रावस माइनिंग एंड रिसोर्सेज कर दिया । इस रीब्रांडिंग को कई लोगों ने अडानी नाम से जुड़े बढ़ते विवाद से ऑस्ट्रेलियाई परिचालन को दूर करने के प्रयास के रूप में देखा।

ऑस्ट्रेलिया से प्राप्त कोयले का उपयोग संभवतः समूह के गुजरात के मुंद्रा में प्रस्तावित विवादास्पद कोयला-से-पीवीसी संयंत्र में पॉली-विनाइल क्लोराइड (पीवीसी) के निर्माण के लिए किया जा सकता है।

जबकि भारतीय स्टेट बैंक से ऋण प्राप्त करने में अडानी समूह को असफलता मिली, कई और अंतर्राष्ट्रीय ऋणदाताओं ने क्वींसलैंड में अडानी कोयला-खनन परियोजना को वित्तीय सहायता नहीं दी। जून 2024 में, समूह ने अमेरिका स्थित फैरलॉन कैपिटल मैनेजमेंट और किंग स्ट्रीट कैपिटल मैनेजमेंट से अपने ऑस्ट्रेलियाई कोयला बंदरगाह के लिए मौजूदा ऋण को पुनर्वित्त करने के लिए 33.3 करोड़ डॉलर का निजी ऋण प्राप्त किया।

इस लेख की पहली और दूसरी किस्त भी पढ़े।

‘अडानी वॉच’ से साभार। अनुवादक अ. भा. किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।

spot_img

Related articles

‘She Is Too Hurt’: AYUSH Doctor Won’t Join Service After Nitish Kumar Hijab Incident

Patna/Kolkata: AYUSH doctor Nusrat Parveen has decided not to join government service, for which she had recently received...

From a Kolkata Ghetto to Serving India: How SR Foundation Became a Humanitarian Movement

Born during the 2020 COVID lockdown in Kolkata’s Topsia, SR Foundation grew from a Rs 7,500 hunger-relief effort into a multi-state humanitarian NGO. From cyclone relief in Bengal to Punjab floods, members ensured transparency by even paying travel costs themselves so every donated rupee reached victims.

बिहार में मोहम्मद अतहर हुसैन की मॉब लिंचिंग और नीतीश कुमार

बिहार के नालंदा में 50 वर्षीय कपड़ा विक्रेता मोहम्मद अतहर हुसैन की बर्बर तरीके से आठ हिंदू आतंकवादियों...

৬ ডিসেম্বর, আবেগ আর হিকমাহ: মুর্শিদাবাদের নতুন মসজিদকে ঘিরে বড় প্রশ্ন

৬ ডিসেম্বর এমন একটি দিন যা প্রতিটি মুসলিমের হৃদয়ে গভীরভাবে খোদাই হয়ে আছে, বিশেষ করে ভারতের মুসলমানদের হৃদয়ে। ১৯৯২...