पीएम के नाम पे चुनाव लड़ने वाले, भाजपा के सिटिंग विधायकों की धड़कनें है तेज
राँची: वैसे तो ये माना जाता रहा है के जो जीते हुये विधायक होते हैं उनको टिकट मिलना तय होता है। पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायकों के साथ झारखंड में होने वाले विधान सभा के चुनाव को लेकर ऐसा नहीं है।
भाजपा ने 2014 में 36 सीटें जीती थी और फिर 6 विधायक झारखंड विकाश मोर्चा से भाजपा मे आ गए, और पार्टी को जरूरी बहुमत मिल गया था।
पर अब पाँच साल के बाद हो रहे विधान सभा चुनाव में 41 में से कई विधायकों का टिकिट काटना तय है। कारण है भाजपा का 2019 के लोकसभा चुनाव में किया गया प्रयोग।
भाजपा ने अपने 12 जीते हुए सांसदों में से 3 दिग्गज सांसद का टिकट काट दिया थे ।
इसमे राज्य के राजधानी रांची से पाँच बार सांसद रहे राम टहल चौधरी, गिरिडीह से पाँच बार सांसद रहे रवीद्र कुमार पांडे और कोडरमा से सांसद और पार्टी के झारखंड प्रमुख रहे प्रो० रविन्द्र कुमार राय का टिकट काट दिया था। गिरिडीह के सांसद को टिकट नहीं दे कर, भाजपा ने ये सीट गठबंधन के तहत आजसु को दे दी थी।
और फीर एकबार भाजपा और आजसु ने मिलकर फिर से 14 में से 12 सीटें जीत ली । जिसमे रांची, गिरिडीह और कोडरमा भी शामिल है।
और अब विधानसभा चुनाव भी प्रधानमंत्री मोदी और कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने पे लड़ा जाना ऐसा प्रतीत होता है। रघुबर दास सरकार के काम पे नहीं। रघुबर दास सरकार के जहां कुछ गिने चुने ही काम है जैसे 50 लाख तक की संपत्ति अगर महिला के नाम रजिस्ट्री होना है तो वो सिर्फ एक रुपया में हो सकता है। कुछ शौचालय बना और कुछ प्रधानमंत्री आवास, पर इसके इतर देश में सबसे ज्यादा भुखमरी से मौत और लिंचिंग की घटना झारखंड में हुई।
ये बात अब छुपी नहीं है के 2019 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के सरकार के काम पे कम और मोदी के नाम और राष्ट्रवाद पर की मुदे पर लड़ा गया था।
और अब विधानसभा चुनाव भी प्रधानमंत्री मोदी और कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने पे लड़ा जाना ऐसा प्रतीत होता है। रघुबर दास सरकार के काम पे नहीं। रघुबर दास सरकार के जहां कुछ गिने चुने ही काम है जैसे 50 लाख तक की संपत्ति अगर महिला के नाम रजिस्ट्री होना है तो वो सिर्फ एक रुपया में हो सकता है। कुछ शौचालय बना और कुछ प्रधानमंत्री आवास, पर इसके इतर देश में सबसे ज्यादा भुखमरी से मौत और लिंचिंग की घटना झारखंड में हुई।
बिजली की समस्या को लेकर तो प्रदेश के ज़्यादातर उद्धयोगपति और चेम्बर ऑफ कॉमर्स सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुये हैं और पारा-टीचरो मे रघुबर सरकार की नीतियो को लेकर आक्रोश है।
इसलिए विधान सभा चुनाव भी पीएम मोदी के नाम और राष्ट्रिय मुद्दे पे ही भाजपा को लड़ना है।
एक प्रकार से भाजपा में टिकट को लेकर आसंजस सभी विधायकों में है पर कोई भी इस मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं है।
17 अक्टूबर को जब रघुबर दास की जन आशीर्वाद यात्रा गाण्डेय नहीं पाहुची तो ये अफवाह उड़ी के यहाँ से भाजपा के विधायक जय प्रकाश वर्मा, जिससे रघुबर दास नाराज़ हैं और इसलिए टिकट मिलना भी मुश्किल है। इसी तरह की चर्चा कई क्षेत्रों में वर्तमान विधायकों के लिए हो रही है।
वहीं राजनीतिज्ञ विश्लेषक कमल नयन विस्तार से बताते हैं कहा कि भाजपा में चल रहे टिकट को लेकर उथल पुथल है। और खास कर हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम से झारखंड में रणनीति में पार्टी काफी बदलाव करने जा रही है, “हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम का असर ये हुआ है के अब कम विधायको का टिकट कटेगा। पर वो लोग जिनको पार्टी मानती है के उनका परफॉर्मेंस अच्छा नहीं रहा उनका टिकट कटना तय है। भाजपा 65 प्लस के आकड़ो को हासिल करने के वास्ते एक एक सीट का अध्ययन कर रही है।”
माना तो ये जा रहा है के लगभग आधे विधायकों को टिकट नहीं मिलने जा रहा है।
“भाजपा में कई स्तर पर सर्वे होते हैं। और सर्वे की एहमियत बहुत होती है पार्टी में। ये तो तय है के कई लोगों को टिकट नहीं मिलने जा रहा है, हाँ संख्या कम और ज्यादा हो सकती है,” पत्रकार अमित राजा ने ईन्यूज़रूम को बताया।
वहीं राजनीतिज्ञ विश्लेषक कमल नयन विस्तार से बताते हैं कहा कि भाजपा में चल रहे टिकट को लेकर उथल पुथल है। और खास कर हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम से झारखंड में रणनीति में पार्टी काफी बदलाव करने जा रही है, “हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम का असर ये हुआ है के अब कम विधायको का टिकट कटेगा। पर वो लोग जिनको पार्टी मानती है के उनका परफॉर्मेंस अच्छा नहीं रहा उनका टिकट कटना तय है। भाजपा 65 प्लस के आकड़ो को हासिल करने के वास्ते एक एक सीट का अध्ययन कर रही है।”
“पर जो सबसे खास बात है इस बार के पार्टी के सर्वे में, के विधायकों के काम के बारे में न सिर्फ पार्टी के वरीय लोगों और मीडिया कर्मियों से पूछा जा रहा बल्के, अधिकारियों से भी फ़ीडबैक लिया जा रहा है,” कमल नयन ने बताया।