क्या भारत में प्रजातंत्र बचाया जा सकेगा?

ममता ने जो कुछ लिखा है उस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. जो संस्थान हमारे संविधान की रक्षा के लिए बने हैं वे अपनी रक्षा करने में भी नाकाम हैं. उनमें से कई स्वतंत्रतापूर्वक काम करने की स्थिति में भी नहीं हैं. सब तरफ भाजपा और उसके अन्य 'राष्ट्रवादी साथियों' का राज है. भारतीय प्रजातंत्र का भविष्य खतरे में है, आम लोगों की जिंदगी और कठिन होती जा रही है और धनपशुओं की संपत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी हो रही है

Date:

Share post:

श्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला है. भाजपा ने इन चुनावों में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है. उसके अनुषांगिक संगठन तो चुनाव प्रचार में जुटे ही हैं, ऐसे संगठन और व्यक्ति जो भाजपा की विचारधारा से इत्तिफाक रखते हैं भी अपना पूरा जोर लगा रहे हैं. चुनाव आयोग का आचरण पूरी तरह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता. राज्य में ईव्हीएम को भाजपा के उम्मीदवारों या उनके परिजनों की गाड़ियों में ढोए जाने की खबरें भी हैं.

इस सबके बीच राज्य की दो बार मुख्यमंत्री रहीं ममता बनर्जी ने दस विपक्षी पार्टियों को पत्र लिखा है. इनमें कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी, एनसीपी, डीएमके और शिवसेना शामिल हैं. पत्र में खरी-खरी कही गई है. जो दल भारत में प्रजातंत्र को जिंदा देखना चाहते हैं और भारतीय संविधान की रक्षा करने के इच्छुक हैं, उन्हें इस पत्र को अत्यंत गंभीरता से लेना चाहिए.

अपने पत्र में ममता बनर्जी ने “संविधान और प्रजातंत्र पर भाजपा के हमलों के खिलाफ संघर्ष” की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि भारत के लोगों के समक्ष एक विश्वसनीय राजनैतिक विकल्प प्रस्तुत किया जाना जरूरी है. पत्र में भाजपा सरकार द्वारा राज्यपाल के पद और सीबीआई व ईडी जैसी केन्द्रीय एजेसिंयों के दुरूपयोग के साथ-साथ राज्यों के हिस्से के धन का भुगतान न करने, राष्ट्रीय विकास परिषद और योजना आयोग जैसी संस्थाओं को समाप्त करने, धनबल की दम पर गैर-भाजपा सरकारों को गिराने, राष्ट्रीय संपत्ति का निजीकरण करने और राज्यों और केन्द्र के रिश्तों में कड़वाहट घोलने के आरोप लगाए गए हैं. पत्र में कहा गया है कि भाजपा ऐसी परिस्थितियां निर्मित कर रही है जिससे अन्य पार्टियों के लिए अपने संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं का प्रयोग असंभव हो जाए. वह राज्य सरकारों के अधिकारों को इतना कम कर देना चाहती है कि वे नगरपालिका से ज्यादा कुछ न रह जाएं. कुल मिलाकर वह देश पर एक पार्टी की तानशाही स्थापित करना चाहती है. दिल्ली की सरकार के साथ जो हुआ वह अपवाद नहीं है. केन्द्र सरकार हर निर्वाचित राज्य सरकार के लिए समस्याएं खड़ी कर रही है.

ममता का पत्र भारत में प्रजातांत्रिक मूल्यों के क्षय और आमजनों की हालत में गिरावट को प्रतिबिंबित करता है. भाजपा के पिछले सात सालों के शासनकाल में कई जनविरोधी कदम उठाए गए. नोटबंदी से बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हुई और आम लोगों की आर्थिक स्थिति में गिरावट आई. जीएसटी से छोटे व्यापारियों की मुसीबतों में इजाफा हुआ. बिना सोचे-समझे लॉकडाउन लगा देने से हजारों-हजार प्रवासी मजदूरों को जो तकलीफें हुईं उन्हें शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.

सीएए और एनआरसी के जरिए अल्पसंख्यकों को परेशान करने का रास्ता ढूंढ़ लिया गया. दिल्ली के शाहीन बाग का लंबा आंदोलन इस बात का प्रतीक था कि लोगों में इस कानून को लेकर कितना गुस्सा है. एनआरसी और सीएए के विरोध में पूरे देश में आंदोलन हुए. दिल्ली में हुई साम्प्रदायिक हिंसा बताती है कि हमारा समाज साम्प्रदायिक आधार पर किस हद तक बंट चुका है.

बड़े व्यापारिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाए गए कृषि कानूनों ने किसानों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है. भारत सरकार महीनों से आंदोलनरत किसानों की मांगों को नजरअंदाज कर रही है. पेट्रोल और डीजल सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में बढ़ोत्तरी ने मध्यम वर्ग को बुरी तरह प्रभावित किया है.

मजे की बात यह है कि इस दौरान केन्द्र सरकार लगातार विकास का ढोल पीटती रही. दुनिया को ऐसा लगने लगा मानो देश में इस तरह का विकास न कभी हुआ है और न होगा. इसी दौरान विभिन्न देशों में प्रजातांत्रिक स्वतंत्रताओं की स्थिति पर नजर रखने वाली संस्था ‘फ्रीडम हाउस’ ने अपनी वार्षिक रपट में भारत का दर्जा ‘पूर्ण स्वतंत्र’ से घटाकर ‘अंशतः स्वतंत्र’ कर दिया. स्वीडन स्थित वेरायटीज ऑफ़ डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र निर्वाचित तानाशाही में बदल गया है”.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2020 की रपट में भारत को 107 देशों में 96वें स्थान पर रखा गया है. जो देश भारत से ऊपर हैं उनमें बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान शामिल हैं. यूएन वर्ल्ड हेप्पीनेस रिपोर्ट, 2021 में भारत को 149 देशों में 139वें स्थान पर रखा गया है. देश में बेरोजगारी जिस तरह से बढ़ी है वैसा पहले शायद ही कभी हुआ हो.

अपनी पुस्तक “वायलेंट हार्ट ऑफ़ इंडियन पालिटिक्स” में थामस ब्लाम्ब हेनसेन लिखते हैं कि भारत में निश्चित रूप से प्रजातंत्र का अनुदारवादी चेहरा नजर आने लगा है और यही कारण है कि पुलिस द्वारा मुसलमानों, नीची जातियों के लोगों और महिलाओं पर किए जाने वाले अत्याचार के मामलों में कोई कार्यवाही नहीं होती.

ममता ने जो कुछ लिखा है उस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. जो संस्थान हमारे संविधान की रक्षा के लिए बने हैं वे अपनी रक्षा करने में भी नाकाम हैं. उनमें से कई स्वतंत्रतापूर्वक काम करने की स्थिति में भी नहीं हैं. सब तरफ भाजपा और उसके अन्य ‘राष्ट्रवादी साथियों’ का राज है. भारतीय प्रजातंत्र का भविष्य खतरे में है, आम लोगों की जिंदगी और कठिन होती जा रही है और धनपशुओं की संपत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी हो रही है.

यह मानना गलत होगा कि कोई चुनी हुई सरकार एकाधिकारवादी नहीं हो सकती. आज देश में निर्वाचित तानाशाह है. एक विशिष्ट प्रकार की सोच रखने वाले लोगों की पलटन सड़कों पर छोड़ दी गई है. इस पलटन को राज्य का पूर्ण संरक्षण है. यह जरूरी है कि विभिन्न गैर-भाजापाई दल आत्मचिंतन करें. उन्हें अपने दलीय हितों से ऊपर उठना होगा. उन्हें प्रजातंत्र और उसके मूल्यों की हिफाजत के बारे में सोचना होगा. भाजपा ने एक अत्यंत शक्तिशाली और कार्यकुशल चुनाव मशीनरी खड़ी कर ली है. इस मशीनरी में लाखों की संख्या में पार्टी और उसकी नीतियों के प्रति पूर्णतः समर्पित स्वयंसेवक शामिल हैं. क्या इन परिस्थितियों में विपक्षी दलों को भी एक संयुक्त मोर्चा गठित नहीं करना चाहिए? कुछ वामपंथी दलों की यह मान्यता है कि वे किसी भी स्थिति में बुर्जुआ पार्टियों से हाथ नहीं मिलाएंगे. यह सोच अत्यंत सैद्धांतिक और अदूरदर्शी है और इस पर इन दलों को पुनर्विचार करना चाहिए. कई क्षेत्रीय दलों के अपने स्थानीय हित हैं. परंतु उन्हें भी यह समझना चाहिए कि यह समय व्यापक राष्ट्रीय हितों पर ध्यान देने का है. देश में अल्पसंख्यकों, दलितो, आदिवासियों और महिलाओं के खिलाफ जिस तरह की हिंसा हो रही है, वह हमारे संविधान में निहित समानता और बंधुत्व के मूल्यों के लिए खतरा है. आज बहुवाद और कमजोर वर्गों के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है. पूर्व में भी कई मौकों पर भारत में विपक्षी दल एक मंच पर आए हैं. भारत को एक बार फिर इसकी जरूरत है.

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

spot_img

Related articles

Vande Mataram and the Crisis of Inclusive Nationalism: A Minority Perspective India Can’t Ignore

As India marks 150 years of Vande Mataram, political celebration has reignited long-standing objections from Muslims and other minorities. The debate highlights tensions between religious conscience, historical memory, and the risk of imposing majoritarian symbols as tests of national loyalty.

Bengal SIR Exercise Reveals Surprising Patterns in Voter Deletions

ECI draft electoral rolls show 58 lakh voter deletions in West Bengal. Data and independent analysis suggest non-Muslims, particularly Matuas and non-Bengali voters, are more affected. The findings challenge claims that voter exclusions under the SIR exercise primarily target Muslim infiltrators.

A Veil Pulled, a Constitution Crossed: The Nitish Kumar Hijab Controversy

A video showing Bihar Chief Minister Nitish Kumar pulling Dr Nusrat Parveen’s veil during an official event has sparked constitutional concern. Critics say the act violated bodily autonomy, dignity, and Article 21, raising questions about state restraint, consent, and the limits of executive power in a democracy.

গীতা পাঠের অনুষ্ঠানের আক্রমণকারীদের সম্বর্ধনা দেওয়ার নিন্দা করা জরুরী

গত ৭ই ডিসেম্বর, কলকাতার ঐতিহাসিক ব্রিগেড প্যারেড গ্রাউন্ডে সনাতন সংস্কৃতি সংসদ আয়োজন করেছিল, ৫ লক্ষ কন্ঠে গীতাপাঠের অনুষ্ঠান।...