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चम्पा कुमारी: ढिबरा चुनने से लेकर डायना अवार्ड पाने तक का सफर

राँची: कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…I

इसी तर्ज पे सिर्फ 13 साल की चम्पा कुमारी ने वो कर दिखाया जो हिंदुस्तान की हज़ारो-लाखों बच्चे जो गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले परिवारों से आते है वो अपने ख्वाबो में देखा करते है।

जामदार गाँव, गांवा (गिरिडीह) की रहने वाली, चम्पा 2016 तक अपने पूरे परिवार के साथ ढिबरा चुनने का काम करती थी। एक दिन उसे बचपन बचाओ आंदोलन (अब कैलाश सत्यर्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन) की एक रैलि दिखी जो बच्चो को बाल मजदूरी से रोकने का काम करती है और स्कूल और पदाई से जोड़ती है।

“मैने जब वो रैलि देखि तो में खुद उनलोगों के पास गयी और बोली के में भी पदाई करना चाहती है पर मेरे पिता इसके लिए तैयार नहीं है और में उनलोगों को अपने पिता के पास ले गयी,” चम्पा ने ईन्यूज़रूम को अपनी आप बीती सुनानी शुरू की।

पर चम्पा की पूरी कहानी जाने से पहले चम्पा कहाँ से आती है ये जानना जरूरी है। चम्पा जिस इलाके से आती है वो इलाका आज भी तीसरी दुनिया कहलाती है । गँवा प्रखण्ड गिरिडीह और कोडरमा के सीमा पर बसा एक इलाका जहां अभी भी ढिबरा (अबरख बचा हुआ गर्द) से हजारो घरो का चूल्हा जलता है। और पूरा का पूरा परिवार ढिबरा चुनने का काम करता है। आए दिनों कई लोगों की मौत भी अबरख खदानों में दबने से हो जाती है जिनमे बच्चे भी होते है।

महेंद्र ठाकुर और बसंती देवी की बेटी, चम्पा जिसे चार भाई और एक बहन है ने आगे बताया, “पिता जी फिर भी नहीं माने और बोले के अगर मुझे पड़ना होगा तो में बेटे को पड़ाऊंगा, बेटी को नहीं। जब मेंने अपने पिता से कहा, बेटी को क्यू नहीं पड़ौओगे और फिर एक गीत गाकर सुनाया तो मेरे पिता ने कहा के अगर में बिना कोई पढ़ाई किए इतना अच्छा गा सकती है तो फिर पढ़ कर किया कर सकती है।“

फिर चम्पा ने अपने बड़े भाई जो मुंबई में काम करते है उसे भी बोला के वोह पढ़ाई करना चाहती है तो फिर घर से उसे पूरी इजाजत मिल गयी।

पर 10 साल की चम्पा ने ना सिर्फ अपने पढ़ाई की बल्के कई और सामाजिक कामों में जुड़ गयी और आगे रह कर बाल विवाह भी रोका।

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एक कार्यकर्म में चम्पा कुमारी अपनी बात रखती हुयी और गिरिडीह पुलिस कप्तान सुरेन्द्र झ उत्साहवर्दन करते हुए

“2016 में ही मेंने संस्था (कैलाश सत्यर्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन) के साथ मिल कर एक बाल विवाह रोका और फिर 2017 में भी ऐसा करने में सफल रही,” चम्पा ने आगे बताया।

“आज वो दोनो लड़कियाँ दसवी की छात्रा है, और मेँ नौवि की,” मुसकुराते हुये चम्पा बताती है। चम्पा ने दो और बाल विवाह रोका है, एक तो 2019 साल में ही।

“इन दोनों बाल विवाह को रोकने में बहुत संघर्ष करना पड़ा। समाज वाले लोग मानने को तैयार नहीं थे। फिर हम लोगों को चाइल्ड हेल्पलाइन की मदद लेनी पड़ी और तब बाल विवाह रुका। चम्पा जो अब तक पूरी तरह सामाजिक कार्यकर्ता बन चुकी थी उसने बताया।

इन दोनों मामले में लड़कियो की उम्र 18 साल से कुछ महिने ही कम थी, इस लिए जब इनकी उम्र पूरी हो गई तो फिर शादी भी हो गया।

जब वो कैलाश सत्यर्थी फ़ाउंडेशन से जुड़ी थी तो उनके चलाये जा रहे प्रोग्राम की बाल पंचायत की मुखिया बनी। फिर राज्य स्तर की और अब वो राष्ट्रिय स्तर की उपाधिक्च्क है।

चम्पा वो कोई भी मौका नहीं छोड़ती जिससे समाज को और इलाके को बहतर बनाया जा सके।

“चम्पा में लीडरशिप क्वालिटी देखि थी हमलोगों ने और उसने ये साबित भी किया आने वालों सालो में अपने कामों से,” मुकेश कुमार, संयोजक, गिरिडीह ज़िला कैलाश सत्यर्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन ने बताया।

“कैलाश सत्यर्थी सर और मुख्यमंत्री रघुबर दास जी के साथ स्टेज पे थी तो मेंने मुख्यमंत्री से अपने स्कूल में टीचर की कमी के बारे में बताया । हमारे यहाँ चार टीचर्स की कमी है और आज ही हमारे स्कूल में दो टीचर आ गए है। “ उत्साहित चम्पा ने बताया ।

इसी तरह जब चम्पा को मौका मिला इलाके के विधायक राजकुमार यादव के साथ स्टेज शेयर करने का तो उसने अपने घर तक रोड सही नहीं होने का ज़िकर किया और आज उस रोड का काम जारी है।

अब चम्पा के कामों की गूंज देश नहीं बल्के विदेशों में हो चुकी है और 13 साल की इस होनहार बच्ची को 2019 के डायना अवार्ड  (Diana Award) का सम्मान मिलने जा रहे है। डायना अवार्ड हर साल दुनिया के कई बच्चो को दिया जाता है उसके सामाजिक कामों को देख कर ताके वो बच्चे दुसरे बच्चो के लिए प्रेरणाश्रोत बन सके।

कैलाश सत्यर्थी फ़ाउंडेशन के गोविंद खननाल ने ईन्यूज़रूम को बताया के डायना फ़ाउंडेशन चम्पा की स्नातक तक की पदाई का खर्च भी उठाएगी।

पर चम्पा की कहानी यही खत्म नहीं होती, क्यूकी आर्थिक तंगी के वजह से अभी तक चम्पा की बाल मजदूरी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।

चम्पा को अपनी ट्यूशन के 600 रुपिए के जुगाड़ के लिए महीने के 15 दिन अबरख काटना पड़ता है। “में रोज शाम को ढाई घंटे अबरख काटने का काम करती हो जिससे मुझे 40 रुपए मिलते हैं। ये काम में महीने के 15 दिनों तक करती हु और अपना ट्यूशन का खर्च निकलती हूँ।” चम्पा ने अपने बात को विराम दिया।

पर अब डायना फ़ाउंडेशन के सम्मान के बाद शायद फिर चम्पा को ऐसे हाल में जीना नहीं पड़े। या फिर कोई दानकर्ता आगे आए चम्पा की मदद को ।

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He brings over two decades of journalism experience, having worked with The Telegraph, IANS, DNA, and China Daily. His bylines have also appeared in Al Jazeera, Scroll, BOOM Live, and Rediff, among others. The Managing Editor of eNewsroom has distinct profiles of working from four Indian states- Jharkhand, Madhya Pradesh, Rajasthan and Bengal, as well as from China. He loves doing human interest, political and environment related stories.

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One Comment

  1. Thanks for finally writing about >बाल
    मजदूर रही चम्पा कुमारी ने चार बाल विवाह को रोका, अब बच्चों के काउंसिल
    की रस्ट्रिया उपाधीक्षक <Loved it!

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