अर्णब के व्हाट्स चैट पर बोलना था प्रधानमंत्री को, बोल रहे हैं राहुल गांधी, क्यों?
रविश कुमार लिखते हैं: जैसा कि मैंने कहा था कि अर्णब का मामला सिर्फ अर्णब का मामला नहीं है। गोदी मीडिया में सब अर्णब ही हैं। सबके संरक्षक एक ही हैं। कोई भी आपसी प्रतिस्पर्धा में अपने संरक्षक को मुसीबत में नहीं डालेगा। इसलिए राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद जब प्रकाश जावड़ेकर बीजेपी मुख्यालय पहुंचे तो उनकी इस प्रेस कांफ्रेंस में राहुल के जवाब को लेकर या व्हाट्स एप चैट को लेकर गंभीर सवाल जवाब ही नहीं हुए। क्या बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार इतना सहम चुके हैं?
16 जनवरी को व्हाट्सएप चैट की बातें वायरल होती हैं। किसी को पता नहीं कि चैट की तीन हज़ार पन्नों की फाइलें कहां से आई हैं। बताया जाता है कि मुंबई पुलिस TRP के फर्ज़ीवाड़े को लेकर जांच कर रही थी। उसी क्रम में इस मामले में गिरफ्तार पार्थो दासगुप्ता से बातचीत में रिपब्लिक टीवी के मालिक और एंकर अर्णब गोस्वामी कई तरह की जानकारी होने के दावे करते हैं जिनका संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा से भी है और कैसे उन जानकारी के इस्तमाल से रेटिंग में कथित तौर पर घपला किया जा सकता है जिससे चैनल या अर्णब गोस्वामी को करोड़ों की कमाई हो सकती है।
सरकार ने इस मामले को संवेदनशीलता से नहीं लिया। कम से कम उसे अपने स्तर पर महाराष्ट्र की मुंबई पुलिस से इसकी पुष्टि करनी चाहिए थी कि बातचीत की सत्यता क्या है क्योंकि इस चर्चा से राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं। आतंक के गंभीर मामलों में जांच करने वाली NIA भी पहल कर सकती थी और बुलाकर इस मामले में पूछताछ कर सकती थी। इन सबके बजाय सरकार की गहरी चुप्पी ने संदेह के बादलों को और भी गहरा कर दिया। इस दौरान हम सभी की आलोचना होने लगी कि अर्णब गोस्वामी के कथित व्हाट्स एप चैट पर आप चुप क्यों हैं? मैंने अपना कारण बताया था कि मैं ऐसी चीज़ों में जल्दबाज़ी पसंद नहीं करता। मैं रूका रहा कि आधिकारिक बयानों का इंतज़ार करना चाहिए। मुझे उम्मीद थी कि सरकार कुछ करेगी।बोलेगी। सरकार ने मुख्यधारा के कुछ अख़बार, वेबसाइट और एक दो न्यूज़ चैनलों पर इस मामले की चर्चा के बाद भी कुछ नहीं कहा। सज्ञान नहीं लिया। 19 जनवरी आ गया।
राहुल गांधी किसानों को लेकर एक पुस्तिका जारी करने प्रेस कांफ्रेंस में आते हैं। उनसे कई तरह से सवाल-जवाब होते हैं। एक सवाल इस व्हाट्स एप चैट को लेकर चुप्पी के बारे में होता है जिसके जवाब में राहुल गांधी पहले अंग्रेज़ी में और फिर हिन्दी में बोलते हैं। हिन्दी वाला हिस्सा शब्दश: यहां दे रहा हूं।
“एक पत्रकार को डिफेंस का सेंसेटिव इंफो बालाकोट से पहले इंफो दी जा रही है उसी पत्रकार ने पहले कहा कि पुलवामा के बाद कहा कि ये हमारे लिए अच्छा हुआ है। रिप्लेक्शन आफ प्रधानमंत्री. जो इनका माइंड सेट है वो इनका है। कि हमारे चालीस लोग मर गए अब हम चुनाव जीत जाएंगे।एक पत्रकार को डिफेंस का सेंसेटिव इंफो बालाकोट से पहले इंफो दी जा रही है उसी पत्रकार ने पहले कहा कि पुलवामा के बाद कहा कि ये हमारे लिए अच्छा हुआ है। रिप्लेक्शन आफ प्रधानमंत्री. जो इनका माइंड सेट है वो इनका है। कि हमारे चालीस लोग मर गए अब हम चुनाव जीत जाएंगे। आपने इंफ़ो दी, 4-5 लोगों के पास थी। ऐसे मिशन में सूचना पायलट को लास्ट में मिलती है। एयर चीफ, एन एस ए, प्र म, गृह को दी। इन पांच में से किसी ने इस व्यक्ति को सूचना दी। क्रिमिनल ऐक्शन है। पता लगाना पड़ेगा किसने दी और उन दोनों को जेल में जाना पड़ेगा। मगर ये प्रोसेस शरू नहीं हुोई क्यों प्रदानमंत्री ने सूचना दी होगी। तो वो तो होगी नहीं। शायद बाद में हो। प्र म को पता था। PM, डिफ़ेन्स मिनिस्टर एन एस ए को पता था गृह मंत्री को पता था, रक्षा मंत्री को पता था इन पांच में से किसने दिया। सीधी सी बात है”
राहुल गांधी स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि किसी देश पर हमले की सूचना आफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत आती है। इस फैसले की गोपनीयता सिर्फ पांच लोगों के पास थी। इन्हीं पांच लोगों में से एक के पास होगी। इन्हीं पांच में से किसी एक ने मिस्टर अर्णब गोस्वामी को सूचना दी थी जो राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता है। आप जब इसे व्हाट्स एप चैट से साझा कर रहे हैं तो मुमकिन है कि दुश्मन देश हैक पर जान सकता था और भारत के लिए उल्टा हो सकता था। राहुल गांधी से पहले उनकी पार्टी के रणदीप सुरजेवाला, मनीष तिवारी, तृणमूल कांग्रेस की माहुओ मोइत्रा, राजद के मनोज झा और शिव सेना के संजय राउत ने सवाल उठाया था। सबके सवाल में संदेह के चिन्ह थे। वैसे इस चैट के सामने आते ही गहरी चुप्पी पसर गई थी। नेताओं से पहले प्रशांत भूषण ने ट्विट किया और उसी को आधार बना कर कई जगहों पर ख़बर की गई।किसी ने ठोस तरीके से हमला नहीं किया बल्कि ज़िक्र कर छोड़ दिया कि सरकार की नज़र में ये बात जाए और इसका कुछ खंडन या स्पष्टीकरण आए। नहीं आया।
कहने का मतलब है कि सरकार को पता था कि व्हाट्स एप चैट को लेकर चर्चा हो रही है। राहुल के बयान के बाद और ख़बरों के छपने के बाद भी पता है। तो अब क्यों नहीं कुछ बोल रही है? इतना कहा जा सकता था कि सरकार की नज़र में यह बात है और जांच हो रही है। संदेश गया कि सरकार इस इंतज़ार में है कि लोगों का ध्यान इससे भटक जाए। सरकार ने सामने से इसका सामना नहीं किया। सोशल मीडिया में वायरल होता रहा।
अब सवाल है कि क्या अर्णब गोस्वामी को हमसे से तीन दिन पहले बालाकोट हमले की सटीक जानकारी थी? चैट की बातचीत की तारीख़ 23 फ़रवरी 2019 की है और हमला 26 फ़रवरी 2019 को होता है। तीन दिन पहले की बातचीत है लेकिन हम कैसे जान सकते हैं कि अर्णव को जानकारी तीन दिन पहले ही हुई थी? क्या अर्णव को और पहले से जानकारी थी? अर्णव ने पार्थो दासगुप्ता के अलावा किस किस को बताया था? क्या इसका इस्तमाल एक सरकार के लौटने की गारंटी के आधार पर मार्केट में पैसा लगाने वालों के बीच भी हुआ था? कई तरह के सवाल हैं।
व्हाट्स चैट का जो हिस्सा वायरल है उसका एक छोटा सा अंश दे रहा हूं। आप देख सकते हैं। मूल बातचीत अंग्रेज़ी में है। ये हिन्दी अनुवाद है।
अर्णब गोस्वामी: हां एक और बात, कुछ ब़ड़ा होने वाला है
पार्थो दासगुप्ता: दाऊद?
अर्णब गोस्वामी: ‘ नहीं सर, पाकिस्तान, इस बार कुछ बड़ा होने वाला है’
पार्थो दासगुप्ता: ‘ ऐेसे वक्त में उस बड़े आदमी के लिए अच्छा है, तब वो चुनाव जीत जाएंगेय.स्ट्राइक ? या उससे भी कुछ बड़ा
अर्णब गोस्वामी: ‘ सामान्य स्ट्राइक से काफी बड़ा। और साथ ही इस बार कश्मीर में भी कुछ बड़ा होगा। पाकिस्तान पर स्ट्राइक को लेकर सरकार को विश्वास है कि ऐसा स्ट्राइक होगा जिस से लोगों में जोश आ जाएगा। बिलकुल यही शब्द इस्तेमाल किए गए थे।
यह बेहद संगीन मामला है। सरकार को उसी वक्त एक्शन लेना चाहिए था और इस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी। मैं खुद सरकार की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा। ये क्या हो रहा है कि सुरक्षा के ऐसे संवेदनशील मामलों को बिना किसी चेक के पसरने दिया जा रहा है जबकि अनाप शनाप फेसबुक पोस्ट करने वालों को पीट दिया जाता है और जेल में डाल दिया जाता है।
क्या चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाया जा सकता है? मान लीजिए पाकिस्तान को यह सूचना किसी तरह से हाथ लग जाती क्योंकि यह पांच लोगों के अलावा बाहर जा चुकी थी। एक एंकर एक ऐसे व्यक्ति के साथ साझा कर रहा है जिससे वह लाभ पा कर करोड़ों कमाना चाहता है। अगर इस रुट से सूचना लीक होती औऱ पाकिस्तान दूसरी तरह से तैयारी कर लेता तो भारत को किस तरह का नुकसान होता इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है। कितने जवानों की ज़िंदगी दांव पर लग जाती इसका भी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। तभी तो ऐसी सूचना गोपनीय रखी जाती है। काम को पूरा करने के बाद देश को बताया जाता है। सुरक्षा मामलों का कोई भी जानकार इसे सही नहीं कह सकता है।
क्या अर्णब गोस्वामी पार्थो दासगुप्ता से गप्प हांक रहे थे? क्या यह संयोग रहा होगा कि वो हमले की बात कह रहे हैं और तीन दिन बाद हमला होता है और चुनावी राजनीति की फिज़ा बदल जाती है? लेकिन इसी चैट से यह भी सामने आया है कि कश्मीर में धारा 370 समाप्त किए जाने के फैसले की जानकारी उनके पास तीन दिन पहले से थी। अगर आप दोनों चैट को आमने-सामने रखकर देखें तो संयोग और गप्प हांकने की थ्योरी कमज़ोर साबित होती है। हम नहीं जानते कि बालाकोट स्ट्राक की जानकारी अर्णब के अलावा और किस किस एंकर को दी गई थी? क्या उसी के हिसाब से न्यू़ज़ चैनलों को तोप बनाकर जनता की तरफ मोड़ दिया गया और जनता देशभक्ति और पाकिस्तान के नाम पर वाह वाह करती हुई अपने मुद्दों को पीछे रख लौट गई थी?
राहुल गांधी कहते हैं कि इस मामले में कुछ नहीं होगा। उनकी बात सही है। ऐसी सूचना प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलहाकार, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और वायुसेना प्रमुख के पास होती है। इनकी जांच कौन करेगा? भारत जैसे देश में मुमकिन ही नहीं है। अमरीका या ब्रिटेन में आप फिर भी उम्मीद कर सकते हैं।
ब्रिटेन में प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के खिलाफ जांच कमेटी बैठी थी कि उन्होंने झूठ बोलकर ब्रिटेन की सेना को इराक युद्ध में झोंक दिया था। ब्लेयर दोषी पाए गए थे और उन्हे देश और सेना से माफी मांगनी पड़ी थी। आप इंटरनेट में चिल्कॉट कमेटी की रिपोर्ट के बारे में पढ़ सकते हैं। इसलिए इन पांचों से तो कोई पूछताछ होगी नहीं और अर्णब को इसलिए बचाया जाएगा क्योंकि इन पांचों में से किसी एक को बचाया जाएगा। प्रधानमंत्री को भी पद की गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है। क्या प्रधानंमत्री ने शपथ का उल्लंघन किया है? यह साधारण मामला नहीं है।
जैसा कि मैंने कहा था कि अर्णब का मामला सिर्फ अर्णब का मामला नहीं है। गोदी मीडिया में सब अर्णब ही हैं। सबके संरक्षक एक ही हैं। कोई भी आपसी प्रतिस्पर्धा में अपने संरक्षक को मुसीबत में नहीं डालेगा। इसलिए राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद जब प्रकाश जावड़ेकर बीजेपी मुख्यालय पहुंचे तो उनकी इस प्रेस कांफ्रेंस में राहुल के जवाब को लेकर या व्हाट्स एप चैट को लेकर गंभीर सवाल जवाब ही नहीं हुए। क्या बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार इतना सहम चुके हैं? समझा जा सकता है। आखिर कितने पत्रकार बात बात में नौकरी गंवा देंगे और सड़क पर आ जाएंगे? यह सवाल तो अब पत्रकार से ज़्यादा जनता का है। और जनता को नोट करना चाहिए कि बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार बीजेपी से या केंद्र सरकार के मंत्री से सवाल नहीं पूछ सकते हैं। आईटी सेल को भी काठ मार गया है। वो मेरी एक गलती का पत्र वायरल कराने में लगा है। कमाल है। क्या देश ने तय कर लिया है कि आई टी सेल दो और दो पाँच कह देगा तो पाँच ही मानेंगे। चार नहीं।
तो क्या दूसरों को देशद्रोही बोलकर ललकारने वाला गोदी मीडिया या अर्णब गोस्वामी खुद देश के साथ समझौता कर सकते हैं? और जब करेंगे तो उन्हें बचाया जाएगा? इस देश में किसानों और पत्रकारों को NIA की तरफ से नोटिस भेजा जा रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा की सूचना बाज़ार के एक धंधेबाज़ सी ई ओ से साझा की जा रही है उस पर चुप्पी है। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर मुखर होकर बोलने वाले ऐसे फौजी अफसर भी चुप हैं जो रिटायरमेंट के बाद अर्णब के शो में हर दूसरे दिन आ जाते हैं। उन्होंने भी नहीं मांग की कि इस मामले की जांच होनी चाहिए।
गोदी मीडिया इस मामले में चुप है। क्योंकि वह उसी संरक्षक का हिस्सा है जहां से सबको अर्णब बने रहने का प्रसाद मिलता है। जीवनदान मिलता है। क्या आप अपनी आंखों से देख पा रहे हैं कि आपके प्यारे वतन का कितना कुछ ध्वस्त किया जा चुका है? क्या आपको लग रहा है कि गोदी मीडिया के दस एंकरों और सरकार के बीच गिरोह जैसा रिश्ता बन गया है? आपने इस रिश्ते को मंज़ूर किया है। आपने सवाल नहीं उठाए हैं। फर्ज़ कीजिए। ऐसी जानकारी कोई बड़ा अधिकारी मेरे या किसी और के साथ चैट में साझा कर देता तब इस देश में क्या हो रहा होता? मैं आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता हूं। मैं जानता हूं कि जितनी बातें पिछले छह साल में कही हैं वही बातें घट चुकी हैं। वही बातें घट रही हैं। वही बातें घटने वाली हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा जैसा गंभीर मुद्दा और यह बेहिस चुप्पी… क्या वाकई चुनाव जीतने, शासन करने के लिए कुछ भी किया जा सकता है. जवानों की जान व देश की सुरक्षा दांव पर लगाई जा सकती है?