क्या यह सही नहीं है कि भयंकर बेरोज़गारी के बाद भी युवाओं ने हमेशा बीजेपी को मौक़ा दिया? रविश का युवाओं को खुला ख़त

आपसे अपील है कि हिंसा न करें। हालाँकि आप मुसलमान नहीं हैं, इसलिए मुझे किसी ने आपकी हिंसा को लेकर गाली नहीं दी, शांति की अपील के लिए नहीं ललकारा। जब पिछले शुक्रवार को कुछ जगहों पर पत्थर चले तो लोग मुझे गाली देने लगे कि 'ये लोग-वो लोग' पत्थर चला रहे हैं, आप चुप हैं। कई पत्रकार दबाव में पत्थर चलाने वालों को दंगाई लिखने लगे। वैसे पुलिस पर पत्थर चलाने वाला दंगाई ही है लेकिन यही तो बात है, पत्थर आप भी चला रहे हैं लेकिन कोई दंगाई नहीं बोलता। किसी ने आपको पत्थरबाज़ा नहीं कहा। वे लोग उपद्रवी कहे गए और आप अभी तक आंदोलनकारी कहे जा रहे हैं। वे लोग से मेरा मतलब किसी जावेद वग़ैरह टाइप के लोग जिनके घर गिरा देने से आपकी रगों में ख़ुशी का असीमित संचार हुआ था। फिर भी मैंने अपनी तरफ़ से हिंसा न करने की अपील की है और आपकी भी हिंसा को ग़लत बताया है। आपकी क़िस्मत अच्छी है कि पत्थर चलाने पर आप अपने समझे जा रहे हैं। योगी जी ने वैसी कार्रवाई की चेतावनी नहीं दी है जैसी 'उन लोगों' के लिए दी थी। बुलडोज़र नहीं चल रहा है जबकि आप लोगों ने यूपी रोडवेज़ की बसें तोड़ दी हैं। आरा स्टेशन ध्वस्त कर दिया है

Date:

Share post:

मेरे प्यारे आक्रोशित युवाओं,

मीडिया तो अभी से आपको अग्निवीर कहने लगा। जिस नीति के विरोध में आप सड़कों पर उतरे हैं, उसी नीति के नाम से आपकी पहचान होने लगी है। आप तो अभी से अग्निवीर हो गए जबकि आप चार साल के लिए अग्निवीर नहीं होना चाहते हैं। आप कह रहे हैं कि हम अग्निवीर नाम का टी-शर्ट नहीं पहनेंगे, मीडिया ने आपको अग्निवीर नाम का टी-शर्ट पहना दिया। मुबारक हो, आप अभी से अग्निवीर बना दिए गए हैं।

आपने जनता के बीच समर्थन भी खो दिया है। समाज के जिन तबकों के साथ मिलकर आपने आठ साल में सांप्रदायिकता फैलाई है, दूसरों और ख़ुद में भी, उसके कारण आपके आंदोलन को लेकर कोई गंभीर नहीं है। सबको लगता है कि अभी दो चार एंटी मुस्लिम डिबेट आएगा, आपकी मांस-पेशियों में आनंद की लहरें दौड़ने लगेंगी। यक़ीन न हो तो आप अपने उन रिश्तेदारों और रिटायर्ड अंकिलों के व्हाट्स-एप ग्रुप में जाकर देख लें कि किस तरह सभी सरकार के समर्थन में हैं। जिस तरह आप धर्म के आधार पर नीति और राजनीति के हर फ़ैसले का समर्थन करते रहे हैं, उसी तरह रिटायर्ड अंकिल और रिश्तेदार क्यों नहीं कर सकते, बल्कि कर रहे हैं।

आप जनता नहीं रहे। आपके भीतर एक धर्म से नफ़रत और एक धर्म पर गौरव कारण बिना सोचे समझी राजनीति का कीड़ा इतना घुस गया है। रोज़गार तो पहले भी नहीं मिला लेकिन धर्म की राजनीति ने आपको कितना मानसिक सुख दिया। वह सुख कोई नौकरी नहीं दे सकती। वह राजनीति अभी ख़त्म नहीं हुई है। वह तो अभी और बढ़ेगी। तो चिन्ता न करें, आपके मानसिक सुख की सप्लाई में कमी नहीं होगी।

आपमें से किसी को कहते सुना कि विपक्ष आपका मुद्दा नहीं उठा रहा। पहले से दिन से सारे विपक्षी दल बोल रहे हैं। दरअसल, विपक्ष को आपने कमज़ोर किया। मीडिया ने विपक्ष को कवरेज से बाहर कर दिया, आपने उस मीडिया का स्वागत किया। लोकतंत्र की इस बुनियादी संस्था को ख़त्म करने में आपका सबसे बड़ा योगदान है। इसलिए आपका ग़ुस्सा तो समझ आता है मगर एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में आपकी ईमानदारी पर भरोसा नहीं है। अब आप पार्ट टाइम के लिए विपक्ष बने हैं तो विपक्ष को कोस रहे हैं।

आप ग़ुस्से में बीजेपी के दफ़्तरों को पर हमले कर रहे हैं। इससे क्या मिल जाएगा। ग़ुस्सा हमेशा बेमतलब होता है। कैसे? जब दूसरी सरकारी नौकरियों को ख़त्म किया जा रहा था, तब आपने विरोध किया? तब उसे नीति और राजनीति का गंभीर सवाल बनाया? ऐसे कई मौक़े मिले लेकिन आप एंटी मुस्लिम आनंद रस में डूबे हुए थे।

अगर तभी दो-चार पोस्ट ही लिखते, दो-चार लोगों के बीच ही बोलते तो बात फैलती कि युवा नौकरियों को लेकर चिन्तित है। आपने वो भी नहीं किया। आप कहेंगे कि आप तो तैयारी में थे, राजनीति के लिए टाइम नहीं था। एंटी मुस्लिम डिबेट के लिए टाइम था, मगर नीतियों पर राय देने के लिए नहीं था? क्या यह सही नहीं है कि भयंकर बेरोज़गारी के बाद भी युवाओं ने हमेशा बीजेपी को मौक़ा दिया? इस पार्टी को आप दिलो जान से चाहते हैं, उसमें कुछ ग़लत नहीं। लेकिन नीतियों को लेकर उससे गंभीर संवाद नहीं कर सकते ये आपकी ग़लती है। बीजेपी की नहीं। इसलिए आपको बीजेपी के दफ़्तरों पर हमला नहीं करना चाहिए।

अगर आपको लगता है कि आप बीजेपी के विरोधी हो गए हैं, तो मुझे हंसी आती है। एक युवा को कहते सुना कि हम सरकार बना सकते हैं तो गिरा भी सकते हैं। अब यह दौर चला गया और अब वो जनता भी नहीं रही। आप ही जनता नहीं रहे। अगर यक़ीन न हो तो आप इस प्राइम टाइम का वो हिस्सा देखिएगा, जब प्रधानमंत्री हिमाचल में रोड शो कर रहे हैं।उनके चेहरे पर आनंद की आभा तैर रही है। फूल बरसाए जा रहे हैं। उनके चेहरे की कांति बता रही है कि वे वोट को लेकर फ़िक्रमंद नहीं हैं। किसान आंदोलन के समय भी बड़ा भारी प्रदर्शन हुआ मगर प्रधानमंत्री ने कभी वोट की परवाह नहीं की। वे सही साबित हुए। आंदोलन के बाद के हुए यूपी चुनाव में बीजेपी ज़बरदस्त तरीक़े से जीती। क्या तब भी सेना में भर्ती बंद का मुद्दा नहीं था? था ही और तब भी आपने वोट दिया। जब आप भर्ती बंद होने पर बीजेपी को वोट दे सकते हैं तब आप चार साल की नौकरी पर क्यों नहीं देंगे? बिल्कुल देंगे। अब सभी आपको जान गए हैं।

तो जो भी इन प्रदर्शनों को लेकर टाइम ख़राब कर रहा है कि ये युवा बीजेपी से नाराज़ हैं और अब बीजेपी हार जाएगी, वह बहुत भोला है। युवाओं का विरोध नीति से है। धर्म की राजनीति से नहीं। आप सेना से चार साल बाद निकाल दिए जाएँगे लेकिन धर्म से तो मरने के बाद भी नहीं निकाले जाएँगे। ये युवा सैनिक तो बाद में बनेंगे मगर धर्म की रक्षा के सैनिक पहले बन चुके हैं और वो निष्ठा नहीं बदल सकती। विपक्ष यह बात ठीक से समझ ले और इतनी गर्मी में टाइम ख़राब न करे।

अगर मोदी यहाँ तक कह दें कि एक को भी रोज़गार नहीं दूँगा, और चुनाव में चले जाएँ तो जीत जाएँगे। 2019 में रोज़गार का मुद्दा कितना बड़ा था, मोदी ने पकौड़ा तलने की बात कह दी, विपक्ष को भरोसा हो गया कि युवा इसे अपमान के तौर पर लेगा लेकिन मोदी सही साबित हुए। युवाओं ने जमकर उन्हें वोट दिया। युवा हमेशा मोदी से हारेंगे।
क्योंकि वे अपना दिल हार चुके हैं और यह अच्छी बात है। दिल का सौदा नौकरी जैसी तुच्छ चीज़ों के आधार पर नहीं होता है। अब ये रिश्ता है तो है। तभी तो जिस वक़्त हिंसा हो रही थी राजनाथ सिंह एक ख़ास क़िस्म की गाड़ी चला रहे थे। यह संकेत है कि सरकार को पता था कि विरोध होगा, लेकिन कोई बात नहीं। युवाओं का वोट था और वोट रहेगा।

अग्निपथ योजना वापस नहीं होगी। क्योंकि इसके लाँच में सेना के तीनों अंगों के प्रमुख आए थे। रक्षा मंत्री तो थे ही।इसे वापस लेने का मतलब है कि तीनों सेना के प्रमुखों की बात को दांव पर लगा देना। उनकी बात ख़ाली जाएगी यह सेना और प्रमुखों के गौरव के लिए अच्छा नहीं होगा। आप कह सकते हैं कि मोदी ने सेना प्रमुखों को भी दांव पर लगा दिया तो कहते रहिए। इस बात को दो बार पढ़ लेंगे तो प्रदर्शन न करने में आसानी होगी।

आपसे अपील है कि हिंसा न करें। हालाँकि आप मुसलमान नहीं हैं, इसलिए मुझे किसी ने आपकी हिंसा को लेकर गाली नहीं दी, शांति की अपील के लिए नहीं ललकारा। जब पिछले शुक्रवार को कुछ जगहों पर पत्थर चले तो लोग मुझे गाली देने लगे कि ‘ये लोग-वो लोग’ पत्थर चला रहे हैं, आप चुप हैं। कई पत्रकार दबाव में पत्थर चलाने वालों को दंगाई लिखने लगे। वैसे पुलिस पर पत्थर चलाने वाला दंगाई ही है लेकिन यही तो बात है, पत्थर आप भी चला रहे हैं लेकिन कोई दंगाई नहीं बोलता। किसी ने आपको पत्थरबाज़ा नहीं कहा। वे लोग उपद्रवी कहे गए और आप अभी तक आंदोलनकारी कहे जा रहे हैं। वे लोग से मेरा मतलब किसी जावेद वग़ैरह टाइप के लोग जिनके घर गिरा देने से आपकी रगों में ख़ुशी का असीमित संचार हुआ था। फिर भी मैंने अपनी तरफ़ से हिंसा न करने की अपील की है और आपकी भी हिंसा को ग़लत बताया है। आपकी क़िस्मत अच्छी है कि पत्थर चलाने पर आप अपने समझे जा रहे हैं। योगी जी ने वैसी कार्रवाई की चेतावनी नहीं दी है जैसी ‘उन लोगों’ के लिए दी थी। बुलडोज़र नहीं चल रहा है जबकि आप लोगों ने यूपी रोडवेज़ की बसें तोड़ दी हैं। आरा स्टेशन ध्वस्त कर दिया है।

इतना लंबा पत्र पढ़ने की क्षमता समाप्त हो चुकी होगी। फिर भी लंबा लिखा ताकि आप पढ़ें और समझें। आप अपने भीतर की सांप्रदायिकता से ही लड़ कर दिखा दीजिए, मान जाऊँगा। आप लड़ने लायक़ नहीं बचे हैं। सांप्रदायिक सोच ने आपके भीतर की नागरिक भाषा समाप्त कर दी है। तभी तो आप हिंसा पर आ गए। इससे कुछ नहीं होगा। केवल बुलडोज़र की छूट मिल जाएगी बस। वो भी इसलिए कि आप तो अपने हैं। जब तक आपके भीतर सांप्रदायिकता है, सरकार या बीजेपी को चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है।

यह विरोध सेना में भर्ती करने वाले युवाओं का है। सारे युवाओं का नहीं। बाकियों को दस लाख की भर्ती का लॉलीपॉप दे दिया गया है। वे अब अपना देखने की तैयारी में लगे हैं। इसी तरह युवा अलग-अलग नौकरियों में बंटा हुआ है। मैंने नौकरी सीरीज़ के संदर्भ में कई बार इसे बोला है। नौकरी को लेकर युवाओं का कोई भी प्रदर्शन केवल उनकी अपनी नौकरी को लेकर है। इसलिए नौकरी और युवाओं का कथित आक्रोश राजनीतिक मुद्दा होते हुए भी वोट का मुद्दा नहीं है। अभी भी युवा अपनी-अपनी नौकरियों को लेकर ही मुझसे संपर्क कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि माहौल बन गया है तो इसी में उनकी परीक्षा की बात उठा दूँ। यही कारण है कि अपनी परीक्षा का बड़े से बड़ा आंदोलन होने के बाद भी रोज़गार पर समग्र बहस नहीं हुई।

इस पत्र का मतलब है कि जिस लड़ाई को आप लड़ने चले हैं, उस लड़ाई को आप बहुत पहले रौंद चुके हैं। आपने दूसरों की ऐसी अनेक लड़ाइयाँ ख़त्म की, मैदान तक ख़त्म दिए, अब जब मैदान दलदल में बदल गया है, तब उसमें आप लड़ाई के लिए उतरे हैं। आप फँसते चले जाएँगे। मेरी बात बुरी लगी हो तो बुरी लगनी ही चाहिए। मैं हमेशा कहता हूँ कि इस देश के सांप्रदायिक युवाओं से गाली मिल जाए, मगर ताली नहीं चाहिए। ऐसा कहने वाला पूरे देश में अकेला बंदा हूँ।

जय हिंद
रवीश कुमार
दुनिया का पहला ज़ीरो टीआरपी ऐंकर

spot_img

Related articles

How the Babri Masjid Demolition Became a Turning Point in India’s Constitutional Decline

Thirty-three years after the demolition of the Babri Masjid, the event occupies a troubled and unresolved position in...

Babri Demolition’s Echo in 2025: Why 6 December Still Defines the Muslim Experience in India

There are dates in a nation’s history that refuse to stay confined to calendars. They do not fade...

“Bring Her Home”: SC Orders Return of Pregnant Sunali Khatun ‘Dumped’ Across Bangladesh Border

Delhi/Kolkata: After months of uncertainty and anguish, a ray of hope broke through on December 3, when the...

Unregulated Access, Unchecked Power: The Hidden Dangers of India’s Mandatory Sanchar Saathi App

Delhi: The Government of India’s directive requiring the preinstallation of the Sanchar Saathi application on all smartphones marks...