Home झारखंड नेताओं ने झारखंड की ज़मीन, जनता के हक़ के बदले सौंप दी...

नेताओं ने झारखंड की ज़मीन, जनता के हक़ के बदले सौंप दी कंपनियों को- झारखंड जनाधिकार महासभा

झारखंड की स्थापना के 25 साल पूरे होने पर, झारखंड जनाधिकार मोर्चा—जो राज्य के नागरिक समाज संगठनों का साझा मंच है—ने राज्य के सभी विधायकों और राजनीतिक नेताओं को एक खुला पत्र जारी किया है। इस पत्र में संगठन ने नेताओं के कामकाज पर गहरी निराशा व्यक्त करते हुए कहा है कि झारखंड आंदोलन जिन आदिवासी-मूलवासी मूल्यों—आज़ादी, समानता, दोस्ती और प्रकृति के साथ तालमेल—के लिए लड़ा गया था, वे अब खतरे में हैं। पत्र में नेताओं पर राज्य के संसाधनों को निजी कंपनियों के हवाले करने, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने, शिक्षा और रोजगार के अवसरों को खत्म करने, और जनता को आपस में बाँटने के आरोप लगाए गए हैं। मोर्चा ने अपील की है कि राजनीतिक वर्ग अपने तौर-तरीके बदले, वरना जनता उन्हें पूरी तरह नकार सकती है।

0
2
jharkhand 25 years tribals indigenous rights pesa cnt spt-act झारखंड की 25वीं सालगिरह
साभार रॉयटर्स

झारखंड अपनी 25वीं वर्षगांठ मना रहा है, लेकिन झारखंड आंदोलन के सपने पहले से कहीं ज़्यादा दूर हैं। इस अवसर पर, झारखंड जनाधिकार महासभा सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को संबोधित करते हुए वक्तव्य जारी कर रही है। यह वक्तव्य वर्तमान स्थिति के लिए राजनीतिक वर्ग को ज़िम्मेदार ठहराता है और राजनीतिक नेताओं से अपने तौर-तरीके सुधारने की अपील करता है।

सभी पार्टियों के विधायक और राजनीतिक नेतागण,

झारखंड की 25वीं सालगिरह के मौके परहम आपको यह बताने के लिए लिख रहे हैं कि हम आपके काम से कितने निराश हैंऔर आपसे अपील करते हैं कि आप अपने तरीके सुधारें।

झारखंड का बनना एक लंबे संघर्ष का नतीजा था। सभी समुदायों के जनहितैषी लोगों ने इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। कई लोगों ने इसके लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। उनका सपना था कि झारखंड बनने से इस इलाके के आदिवासी-मूलवासी अपने मूल्यों के अनुसार विकास कर पाएंगे – आज़ादीसमानतादोस्ती और प्रकृति के साथ तालमेल के मूल्य। झारखंड की आज़ादी से बाहरी लोगों के शोषण का भी अंत होना था।

पच्चीस साल बादयह सपना मात्र बन के रह गया है। इसमें कोई शक नहीं कि झारखंड में ज़्यादातर लोग आज पच्चीस साल पहले के मुकाबले थोड़ी बेहतर स्थिति में हैं। लेकिन लाखों लोग आज भी घोर गरीबी में जी रहे हैं। और झारखंड वैसा नहीं है जैसा उसे होना चाहिए था। छोटानागपुर और संथाल परगना की खूबसूरत सभ्यता खत्म होने के खतरे में है क्योंकि ताकतवर कंपनियाँ इसकी ज़मीनखनिज और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों पर नज़र गड़ाए हुए हैं। झारखंड के आज़ाद और स्वाभिमानी किसान मज़दूर बन रहे हैं और बदहाल शहरों की ओर जा रहे हैं। जल्द हीझारखंड का अनोखापन खतम हो जाएगा और बाकी भारत से अलग शायद ही कुछ बचेगासिवाय इसके कि यह ज़्यादा गरीब होगा

आपझारखंड के राजनीतिक नेताइसके लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं। झारखंड आंदोलन के दिग्गजों से प्रेरणा और सीख लेने और आम लोगों के लिए काम करने के बजायआपने खुद को अमीर बनाने के लिए शोषकों के साथ हाथ मिला लिया है। आप स्थानीय लोगों की कीमत पर झारखंड के कीमती संसाधनों को लालची कंपनियों और व्यापारियों को बेच रहे हैं। आपने सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद होने दिया हैजिससे लाखों युवाओं को प्रवासी मज़दूर बनने पर मजबूर होना पड़ा है। आपने भ्रष्ट ठेकेदारों के साथ मिलकर नरेगा को लूटा हैजिससे लाखों लोगों से उनके काम का अधिकार छीन लिया गया है। पच्चीस सालों मेंआप PESA के लिए नियम बनाने में नाकाम रहे हैं। आपने CNT-SPT एक्ट और वन अधिकार अधिनियम का घोर उल्लंघन होने दिया है। आपने बड़े-बड़े ठेकाओं से खूब पैसा कमाया हैजबकि पीने का पानीनाली और फुटपाथ जैसी बुनियादी सुविधाएँ हर जगहयहाँ तक कि रांची में भी गायब हैं।

आप में से कुछ लोगों ने झारखंड के लोगों को बाँटा भी है और अपनी ताकत बढ़ाने के लिए उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ भड़काया है। “धन नहींएकता सही ” झारखंड संघर्ष के लोकप्रिय नारों में से एक था। आज इस एकता का बहुत कम हिस्सा बचा है। जब लोग आपस में लड़ते हैं तो शोषण करने वालों की मौज हो जाती है।

जब तक राजनैतिक नेता अपना तरीका नहीं बदलतेतब तक हालात सुधरने की उम्मीद नहीं है। हम आप में से कुछ लोगों को पहले से ही अपना साथी मानते हैंऔर दूसरों से भी हमें कुछ उम्मीद है। लेकिन अगर आप सब ने अपना रवैया नहीं सुधारातो कहीं ऐसा न हो कि आप पूर्ण रूप से नकार दिए जायें। हम उम्मीद कर रहे हैं कि नेतृत्व की एक नई पीढ़ी सामने आएगीजिसमें ऐसे पुरुष और औरतें होंगी जो लोगों के हितों को दिल से समझते हैं। हम पहले से ही आप में से कुछ लोगों को उनमें गिनते हैंलेकिन ज्यादा नहीं। अपनी तरफ सेहम अपने तरीके से बदलाव के लिए काम करते रहेंगे।

महासभा और अन्य संगठन मिलकर 15 नवंबर 2025 को बिरसा समाधि स्थल, कोकर, रांची से सैनिक बाज़ार तक एक “झारखंडी एकता यात्रा” का आयोजन करेंगे ताकि लोगों को झारखंड आंदोलन के सपनों की याद दिलाई जा सके।