कॉरपोरेट के हवाले वतन साथियों- सम्पत सरल

सम्पत सरल की कविता । राज्यसभा में कृषि विधेयक माराडोना शैली से पास करा लिए गए। माराडोना शैली यानी रेफरी अपना हो, तो हाथ से गोल करके भी फुटबॉल मैच जीता जा सकता है। अब समर्थन मूल्य से तात्पर्य अनाज के सरकारी मूल्य से नहीं रहा। समर्थन मूल्य का मतलब है आपरेशन लोटस के तहत जोड़-तोड़ की सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के अवसरवादी सांसदों-विधायकों से मिले समर्थन के बदले उन्हें दिया जाने वाला मूल्य

हास्य व्यंग के सबसे बड़े कवि या यों कहें के समकालीन भारत के राजनीतिक घटनाक्र्म पे अपनी कविता करने वाले सम्पत सरल ने पार्लियामेंट में कृषि विधेयकों के पास होने पे एक कविता पढ़ी है जो ईन्यूज़रूम उनके आज्ञा के साथ अपने पाठको के लिए शेयर कर रहा है।

 

पढ़े पूरी कविता:-

जो तमाम काम करने की कह कर आए थे, वे आते ही काम तमाम करने में लग गए।

राज्यसभा में कृषि विधेयक माराडोना शैली से पास करा लिए गए। माराडोना शैली यानी रेफरी अपना हो, तो हाथ से गोल करके भी फुटबॉल मैच जीता जा सकता है।

जिन कृषि विधेयकों पर वोटिंग जरूरी थी, उपसभापति ने उन पर मात्र ध्वनिमत से मुहर लगवाली। विपक्ष का तो यह तक दावा है कि ध्वनिमत में भी मत कम थे और ध्वनि अधिक।

हंगामा करने का दोषी मानते हुए विपक्ष के आठ सांसद यह कहते हुए निलंबित कर दिए कि साध्य पवित्र हो, तो साधन भी पवित्र होने चाहिएं। तो जहांपनाह विपक्ष भी तो आपसे यही कह रहा था।

निलंबित आठों सांसदों ने संसद परिसर स्थित गांधी प्रतिमा के पास रात भर धरना दिया।

उपसभापति हरिवंश जी अगली सुबह निलंबित सांसदों के लिए घर से चाय ले गए। आठों ही सांसदों ने उनकी चाय पीने से इंकार कर दिया। जाहिर सी बात है, एक चाय का जला हुआ देश, दूसरी चाय नहीं पीता।

लोगों ने सोशलमीडिया पर हरिवंश जी की चिट्ठी पढ़ी। जिसमें उन्होंने खुद को जस्टिफाई करते हुए गांधी, जेपी, लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर आदि को अपना आदर्श बताया।

लोगों में चर्चा है कि यदि यह चिट्ठी उन्हें कागज पर लिखी मिलती, तो वे कोना फाड़कर पढ़ते।

मेरा मानना है यदि हरिवंश जी इन महापुरुषों में से किसी एक को भी अपने आचरण में उतार लेते, तो बजाय पार्लियामेंट में बैठने के, किसानों के साथ सड़कों पर होते।

क्या उलटबांसी है? चाय बेचते थे, तो देश पर चर्चा करते थे। देश बेच रहे हैं, तो चाय पर चर्चा करते हैं।

सत्य जानने के लिए मेरा एक मित्र तो मोदीजी के कहे का उलटा अर्थ निकालने लगा है। जब मोदीजी ने कहा था- झोला उठाकर चल दूंगा, तब मित्र ने बताया था कि मोदीजी कह रहे हैं- झोला थमा कर चल दूंगा।

2014 के बाद से शब्दों के अर्थ बदल गए हैं। अब समर्थन मूल्य से तात्पर्य अनाज के सरकारी मूल्य से नहीं रहा।

समर्थन मूल्य का मतलब है आपरेशन लोटस के तहत जोड़-तोड़ की सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के अवसरवादी सांसदों-विधायकों से मिले समर्थन के बदले उन्हें दिया जाने वाला मूल्य।

मजा देखिए, जो रबी और खरीफ में अंतर नहीं जानते और खेत जिन्होंने सिर्फ फिल्मों और हवाईजहाजों की खिड़कियों से देखे हैं, वे किसानों को कृषि विधेयकों के फायदे बता रहे हैं।

कृषि विधेयकों से किसानों की आय वैसे ही डबल हो जाएगी, जैसे नोटबन्दी से काला धन आ चुका है।

Exit mobile version