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क्यों एनपीआर से झारखंड की बड़ी आबादी के लिए संकट खड़ा हो जाएगा?

राँची: केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार पहली अप्रैल से नेशनल पॉप्युलेशन रजिस्टर (एनपीआर) की कार्रवाई शुरू करने जा रही है। जनगणना के साथ में कराये जा रहे इस कार्य के बारे में देश के सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का ये मानना है कि एनपीआर, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजेन्स (एनआरसी) का पहला स्टेप है। एनआरसी, डॉक्युमेंट्स के आधार पे ये तय करेगा कि कौन भारत का नागरिक है और कौन नहीं। ऐसा असम में भी हुआ पिछले साल।

पर झारखंड, देश में एक ऐसा राज्य है, जहां अगर एनपीआर या एनआरसी होता है तो यहाँ आधी से ज़्यादा आबादी न अपनी या परिवार की सही जानकारी दे पाएंगे न सही कागज़ (डॉकयुमेंट) दिखा पाएंगे।

भारत के सबसे नवीन राज्यों में से एक, इसकी उत्पत्ति साल 2000 में हुई और ये अभी भी कई महत्वपूर्ण मापदंडो में पिछड़ा हुआ है और अगर कोई भी प्रक्रिया इन सभी मापदंडों के आधार पे किया जाएगा तो उस कार्य से झारखंडवासियों को सीधा नुकसान होगा।

शिक्षा की स्थिति

झारखंड की कुल सवा तीन सौ करोड़ की आबादी में साक्षरता केवल 67.63 प्रतिशत है, वहीं देश की 74.04- लगभग 7 प्रतिशत कम।

इसमें भी आदिवसियों जिनकी जनसंख्या 28 प्रतिशत है, उनकी साक्षरता दर मात्र 57.13 है।

दलित कम्यूनिटी (अनुसूचित जाति) में साक्षरता तो आदिवासियों से भी कम 40 प्रतिशत के आसपास है।

ग़रीबी रेखा से नीचे की आबादी

नीति आयोग के आंकड़ो के अनुसार, झारखंड की 37 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे हैं। आदिवासियों और दलितो में ये 49 और 40.4 प्रतिशत क्रमशः हैं। और पिछड़ी जाति के 36.6 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हैं झारखंड में।

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5 मार्च को एनपीआर पर रोक की माँग को लेकर राँची की सभा में शामिल लोग

भूमिहीनों की संख्या

झारखंड के जंगलों, पहाड़ों और पठारों पे रहने वाली बड़ी संख्या उन लोगों की है जो भूमिहीन हैं। आदिवासी समाज जहां भी रहता है वो  पूरी दुनिया में मूलनिवासी (indigenous) के तौर पे  देखा जाता हैं। पर वहीं सच्चाई ये भी है कि उनके पास कोई कागज़ नहीं होता।

झारखंड में 32 प्रकार की जनजातियाँ पायी जाती हैं और इनमें कई ऐसे हैं जो विलुप्त हो रहे हैं जैसे बिरहोर। इनके पास न अपनी ज़मीन होती है न ये अपनी बात को नए लोगों के सामने ठीक से रख पाते हैं।

झारखंड में जिन-जिन आदिवासी इलाकों में पत्थलगड़ी हुई हैं वहाँ तो ये भी मुश्किल है कि अभी के माहौल में कोई सरकारी अधिकारी जा पाये।

40 लाख राशन कार्ड रद्द हो चुके हैं

रघुबर दास की पिछली सरकार ने राशन कार्ड को आधार से जोड़ने की कोशिश की तो 40 लाख राशन कार्ड रद्द हो गए और कई मौत भूख से इसलिए हो गयी कि उन्हें राशन नहीं मिल पाया।

अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनको पेंशन की योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा क्योंकि वो लोग अपने बैंक अकाउंट से आधार नहीं जोड़ पाये या दूसरी कागज़ी प्रक्रिया नहीं करवा पाये हैं।

झारखंड के कई शहरों सहित देश के कई हिस्सो में एनपीआर-एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर पिछले तीन महीनों से  बड़ा विरोध प्रदर्शन भी हो रहा है। कई राज्यों ने अपने यहाँ एनपीआर को ख़ारिज भी कर दिया है, जैसे– केरल और पश्चिम बंगाल और कई राज्य सरकार (जैसे छत्तीसगढ़, पंजाब, केरल, राजस्थान और पश्चिम बंगाल) NRC का विरोध विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर कर चुके हैं।

मार्च 5 को राँची में भी कई सामाजिक संगठनों ने झारखंड जनाधिकार महासभा (कई सामाजिक संगठनों का समूह) के अगुवाई में एनपीआर को ख़ारिज करने की माँग की। इस माँग को लेकर पूरे झारखंड से लोग राज भवन के सामने जमा हुए और इसमें पूर्व आईएएस अधिकारी गोपीनाथ कानन, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के स्टूडेंट लीडर अमीर अज़ीज़, माले विधायक विनोद सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ भी शामिल हुये।

सभा से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक ज्ञापन भी दिया गया। बाद में कानन, विनोद, द्रेज़ और एआईपीएफ़ नेता नदीम खान मुख्यमंत्री से भी मिले और अपनी माँग को दोहराया।

“एनपीआर और एनआरसी पूरी तरह से ग़रीब, आदिवासी और दलित विरोधी है। झारखंड जैसे राज्य में जहां ग़रीबी और अज्ञानता ज्यादा है, वहाँ एनपीआर से जुड़े सवालों को न तो लोग ठीक से उत्तर दे पाएंगे न बाद में उसे साबित करने के लिए कागज़ दिखा पाएंगे। इसलिए हमलोगों ने मुख्यमंत्री को कहा है कि वो जनगणना का काम होने दें पर एनपीआर के खिलाफ विधान सभा में प्रस्ताव जल्द लाये,” माले विधायक ने ईन्यूज़रूम को बताया।

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He brings over two decades of journalism experience, having worked with The Telegraph, IANS, DNA, and China Daily. His bylines have also appeared in Al Jazeera, Scroll, BOOM Live, and Rediff, among others. The Managing Editor of eNewsroom has distinct profiles of working from four Indian states- Jharkhand, Madhya Pradesh, Rajasthan and Bengal, as well as from China. He loves doing human interest, political and environment related stories.

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