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ये सितारा जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया

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बाराबंकी के राजा जहांगीराबाद की आलीशान कोठी में उस वक़्त के स्थानीय एसडीएम इमामुद्दीन शाह का परिवार रहा करता था। 20 जुलाई 1950 को इमामुद्दीन शाह के घर एक बेटा पैदा हुआ, जिसने उस कोठी में लड़खड़ा-लड़खड़ा कर चलना और तोतला-तोतला कर बोलना सीखा और जब ये बच्चा तीन-चार साल का था कि इमामुद्दीन शाह का तबादला हो गया और उनका परिवार बाराबंकी से चला गया। फिर साठ सालों के बाद जब वो नन्हा-मुन्ना बच्चा इस कोठी में आया तो वो आलिशान कोठी खंडहरनुमा ईमारत में तब्दील हो चुकी थी जबकि वो नन्हा मुन्ना बच्चा हिंदी फिल्म जगत का मशहूर अदाकार नसीरुद्दीन शाह बन चुका था। शोहरत की बुलंदियों को छूने के बाद भी नसीरुद्दीन शाह अपनी जन्मस्थली को नहीं भूले और उसे तलाशते हुए बाराबंकी शहर के घोसि‍याना मोहल्‍ला जा पहुंचे।

कोठी के मौजूदा मालिक मोहम्मद युनुस बताते हैं कि जब नसीरुद्दीन शाह अपनी बेगम के साथ वहाँ पहुंचे तो देखते ही देखते लोगों का जमे ग़फ़ीर उमड़ पड़ा। उनसे हाथ मिलाने के लिए लोगों में आपाधापी मच गई। मेरे पीछे खड़ा मेरे मकान में काम कर रहा एक मज़दूर सीमेंट बालू से सना हाथ बार-बार उनसे मिलाने के लिए बढ़ा रहा था और मैं बार-बार उसे पीछे झटक दे रहा था। नसीरुद्दीन साहब की नज़र उसके हाथ पर पड़ गई। उन्होंने बढकर उससे हाथ मिलाया। फिर दूसरों से हाथ मिलाने से पहले उन्होंने अपना गंदा हाथ अपने पैंट की जेब में डाल लिया और सीमेंट बालू को अंदर ही अंदर पोंछने लगे। मैं इस चीज़ को ग़ौर से देख रहा था। मैंने कहा पानी मंगवाता हूँ आप हाथ धो लें।

उन्होंने कहा, तबतक बहुत देर हो जाएगी। सबका हक़ है मुझसे हाथ मिलाने का, और फिर हाथ निकाल कर लोगों से मिलाने लगे। मैंने देखा कि उनका हाथ पैंट की पॉकेट में पूरी तरह साफ़ हो चुका था।

नसीरुद्दीन शाह के वालिद उन्हें कोई बड़ा अधिकारी बनाना चाहते थे जबकि उनका मन स्कूल के दिनों से ही एक्टिंग की तरफ़ मायल था। नसीरुद्दीन शाह के मुताबिक, वह पिता को कभी समझ ही नहीं पाए और फिर समय के साथ बाप-बेटे के बीच की दूरीयां बढ़ती चली गईं। नसीरुद्दीन शाह को आज भी यह दुख सालता है कि पिता के अंतिम पलों में वह न तो उनके पास पहुंच पाए और न ही उन्हें देख पाए।

नसीरुद्दीन शाह की पहली शादी दिवंगत एक्ट्रेस सुरेखा सीकरी की सौतेली बहन मनारा सीकरी से 20 साल की उम्र में हुई थी। उस वक़्त मनारा उम्र में क़रीब 15 साल नसीर से बड़ी थीं और अपने पहले शौहर से अलग रह रही थीं। इनकी शादी सिर्फ़ 1 साल ही चल पाई और दोनों ने तलाक़ ले लिया था। उन दोनों की बेटी हिबा शाह और रत्ना-नसीरुद्दीन के बेटे विवान शाह और ईमाद शाह साथ-साथ रहते हैं। विवान ने विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘सात ख़ून माफ़’ और फराह खान की ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में काम किया है। रत्ना पाठक और नसीरुद्दीन की मुलाक़ात 1975 में हुई थी। उस समय दोनों को-थियेटर आर्टिस्ट थे और ‘संभोग से सन्यास तक’ नामक प्ले एक साथ कर रहे थे। दोनों साथ काम करते-करते काफ़ी करीब आ गए और एक दूसरे को डेट करने लगे। क़रीब 7 साल के रिलेशनशिप के बाद 1982 में दोनों ने शादी की।

नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज़ होगा। नसीर की क़ाबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की व्यवसायिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नसीर अपने शानदार अंदाज़ से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से ज़िंदा कर दिया। ये सितारा जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी ‘मासूम’। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती ‘मासूम’ में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल ख़ूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को एक स्टार का दर्जा मिल गया।

मुझे नसीरुद्दीन शाह ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म ‘कर्मा’ में, जिसमें उन्होंने ख़ैरुद्दीन चिश्ती का अमर किरदार निभाया था। फ़िल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट दिलीप कुमार भी थे, और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। दूसरी बार उन्होंने मुझे मुत्आस्सिर किया फिल्म ‘सरफ़रोश’ के शायर गुल्फ़ाम हसन के रोल में और तीसरी बार मुत्आस्सिर किया ‘द वेडनेस डे’ के बम प्लानर एक आदमी के किरदार में। मुझे उम्मीद है कि कोई भी फिल्म का शौक़ीन इंसान इन तीनों फिल्मों में नसीरुद्दीन शाह के तीनों किरदारों को भूलना नही चाहेगा। 2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म ‘द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन’ में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ़ पाकिस्तानी फ़िल्म ‘खुदा के लिए’ में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है।

नसीर की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज़्यादा होती है, और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी, कुलभूषण खरबंदा और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई ऊंचाई प्रदान की। ‘निशान्त’ जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफ़र शुरू करने वाले नसीर ने ‘आक्रोश’, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘भवनी भवाई’, ‘अर्धसत्य’, ‘मंडी’ और ‘चक्र’ जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश की।

नसीरूद्दीन शाह को 1987 में पद्म श्री और 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

1979 में फ़िल्म ‘स्पर्श’ और 1984 में फ़िल्म ‘पार’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो 2006 में फ़िल्म ‘इक़बाल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 1981 में फ़िल्म ‘आक्रोश’, 1982 में फ़िल्म ‘चक्र’ और 1984 में फ़िल्म ‘मासूम’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में फ़िल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 में उन्हें “संगीत नाटक अकादमी अवार्ड” से भी सम्मानित किया गया।

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