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दिल्‍ली में ऑड-ईवन की वापसी – पूर्व में कितना रहा असरदार

अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस की रैंकिंग के अनुसार, बहुत लंबे समय तक दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक माना जाने वाला शहर बीजिंग अब, दुनिया के टॉप 10 सबसे प्रदूषित शहरों में भी नहीं है। बीजिंग के वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों पर संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में इस सुधार का श्रेय वाहन उत्सर्जन नियंत्रण और कोयले पर निर्भरता को कम करने जैसी कई अलग-अलग नीतियों को दिया गया है

नई दिल्ली: पूरे भारत में, दिवाली का समय उत्सव और खुशियाँ लेकर आता है, लेकिन दिल्ली में, यह जहरीली हवा भी लाता है। घने धुएं ने एक बार फिर देश की राजधानी को अपनी चपेट में ले लिया है। दिल्ली-एनसीआर में लगातार हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है। वायु प्रदूषण से हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात बन गए हैं। दिल्ली में वायु गुणवत्ता की खराब स्थिति के बीच अब सरकार ने फिर से एक बार दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू करने का फैसला किया है।

ऑड-ईवन (Odd-Even) फॉर्मूला दिल्ली  मे चौथी बार लागू किया जा रहा है। दिल्ली मे यह ऑड-ईवन फॉर्मूला दिवाली की अगली सुबह 13 से 20 नवंबर तक लागू रहेगा। एक सप्ताह के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूला योजना की वापसी की घोषणा, पहले से ही “गंभीर” वायु प्रदूषण के और भी खराब होने की आशंका के तहत किया गया है। इस एक हफ्ते के बीच इसकी समीक्षा की जाएगी। उसके बाद सरकार तय करेगी कि इसे आगे जारी रखा जाए या नहीं। पॉल्यूशन कंट्रोल करने के लिए दिल्ली में कई नए नियम लागू किए जा रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ा नियम है ऑड-ईवन रूल। इसके तहत हफ्ते में कुछ दिन केवल ईवन (Even) नंबर की नंबर प्लेट वाली गाडियाँ सड़कों पर चल सकेगी और बाकी दिन ऑड (Odd) नंबर प्लेट की व्हीकल्स चलाई जा सकेंगी।

पिछले सात वर्षों में दिल्ली में चौथी बार ऑड-ईवन फॉर्मूला योजना लागू की जाएगी। गिरते वायु प्रदूषण को कण्ट्रोल करने में ऑड-ईवन सबसे कठोर प्रतिक्रियाओं में से एक माना जाता है! पहली बार इस योजना को 2016 में और फिर 2019 में दो बार आजमाया गया था। वाहनों की कई श्रेणियों को छूट दी गई थी, जिनमें टैक्सी (सीएनजी से चलने वाली हैं), महिलाओं द्वारा संचालित कारें (सुरक्षा के विचार से), इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों और सभी दो-पहिया वाहन शामिल हैं (नई योजना का विवरण अभी घोषित नहीं किया गया है)।

नियम यह था कि 2, 4,6, 8 और 0 वाली तारीखों पर ईवन नंबर की गाड़ियां चलाई जा सकेंगी। वहीं, 1, 3, 5, 7 और 9 वाली तारीखों पर ऑड नंबर प्लेट की गाड़ियां सड़कों पर उतर सकेंगी।

क्या ऑड-ईवन फॉर्मूला एक कारगर उपाय है बढ़ते प्रदूषण को रोकने मे? वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय के रूप में ऑड-ईवन को चीन, मैक्सिको और फ्रांस के शहरों में भी किसी न किसी रूप में आजमाया गया है। यह कितना असरदार और प्रभावी है उस पर लगभग हर जगह गरमागरम बहस हुई है। स्कीम का प्रदूषण पर कितना असर पड़ेगा? इसका पता लगा पाना मुश्किल है और एक्सपर्ट्स भी यही मानते हैं। सड़कों पर वाहनों की संख्या कम होने से प्रदूषण के लेवल में निश्चित रूप से कमी आएगी, लेकिन इसका एक सीमित असर ही देखने को मिलेगा क्योंकि टू व्हीलर गाड़ियों के आने-जाने पर कोई रोक नहीं होगी। इससे पहले जब ऑड-ईवन स्कीम लागू की गई है तब कुछ टू-व्हीलर, हाइब्रिड व्हीकल, सीएनजी से चलने वाली टैक्सी समेत कई वाहनों पर रोक नहीं लगाई गई थी। अगर इस बार भी ऑड-ईवन को इसी तरह से लागू किया जाता है तो इसका एक हद तक ही असर देखने को मिलेगा।

दिल्ली में प्रदूषण फैलाने में परिवहन मुख्य रूप से जिम्मेदार है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऑड-ईवन लागू होने से प्रदूषण पर किस हद तक लगाम लगेगा इसका आकलन करना मुश्किल है। स्कीम केवल दिल्ली के वाहनों पर लागू होगी, जबकि राजधानी की सीमा से लगने वाले दूसरे राज्यों के इलाकों से भी लोग यहां आते हैं। ऐसे में स्कीम किस हद तक कारगर साबित होगी इसका पता लगा पाना मुश्किल है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऑड-ईवन फॉर्मूला अच्छा कदम है, लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिए उन वाहनों पर भी रोक लगे, जिन्हें छूट दी गई है। 2016 से 2019 तक कई बार ऑड-ईवन को लागू किया गया, लेकिन इसके उतने अच्छे प्रभाव देखने को नहीं मिले, जिसकी उम्मीद की जा रही थी।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की संचालन समिति के सदस्य सच्चिदानंद त्रिपाठी ने साल 2016 में स्कीम को लेकर एक स्टडी का जिक्र करते हुए कहा कि इसका PM 2.5 पर काफी कम असर देखने को मिला। दिल्ली के कुछ हिस्सों में इसमें 8.10 फीसदी की कमी देखी गई, जबकि बाकी जगहों पर कुल 2-3 प्रतिशत की कमी नजर आई। वहीं, साल 2019 की बात करें तो दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक पर असर देखने को मिला था।

प्रदूषण के मौजूदा हालत को नियंत्रण मे ला पाना कठिन है लेकिन असंभव नहीं। अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस की रैंकिंग के अनुसार, बहुत लंबे समय तक दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक माना जाने वाला शहर बीजिंग अब, दुनिया के टॉप 10 सबसे प्रदूषित शहरों में भी नहीं है। बीजिंग के वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों पर संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में इस सुधार का श्रेय वाहन उत्सर्जन नियंत्रण और कोयले पर निर्भरता को कम करने जैसी कई अलग-अलग नीतियों को दिया गया है, जिन्होंने शहर के प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों को अलग अलग तरीकों से काबू किया गया। लेकिन इन सभी नीतियों का आधार एक वायु गुणवत्ता प्रबंधन दृष्टिकोण है जो कानून और प्रवर्तन तंत्र, व्यवस्थित योजना, शक्तिशाली स्थानीय मानकों, मजबूत निगरानी क्षमता और उच्च सार्वजनिक पर्यावरण जागरूकता पर केंद्रित है। दिल्ली और भारत को भी ऐसा ही करना होगा वरना वायु प्रदूषण जैसे स्थायी समस्या को अस्थायी तरीको से नहीं निपटा जा सकता है।

Aakash

is a freelance journalist

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