स्मॉल टाउन, बिग ड्रीम की जब भी मिसाल होगी, धोनी उस चैप्टर के नायक बने रहेंगे

कभी धोनी को कोको-कोला की मॉडलिंग इसलिए नहीं दी गयी कि उनका अपीयरेंस डाउन मार्केट सा था। बाद में क्रिकेट मैदान पर ही नहीं बल्कि स्पोर्टस ब्रांड में भी इस मुकाम तक पहुंचे जहां आज तक कोई भारतीय खिलाडी नहीं पहुंच सका था। मेसी, रोनैल्डो के स्तर तक पहुंच गए

भी सोचा था कि महेंद्र सिंह धोनी चुपके से ऐसे अलविदा कह देंगे? खामोशी से। वक्त कितना क्रूर होता है, बेरहम होता है, हम इससे सीख ले सकते हैं।

धोनी की चुपके से ‘आई क्विट’ घटना के बीच याद करें कि ठीक एक दशक पहले 2007 में वर्ल्ड कप में बुरी तरह हार कर जब पहली बार T-20 वर्ल्ड कप हुआ तो सारे सीनियर हटा दिए गए थे। ‘जूनियर’ धोनी को कमान दे दी गयी टीम इंडिया की। उन्हें प्रूव करना था, उनमें वह जज्बा है कि नहीं। वह स्टॉर इलिमेंट हैं कि नहीं? डाउन मार्केट माहौल से आने के कारण उसमें एक्स फैक्टर है कि नहीं? क्योंकि क्रिकेट देश में सिर्फ खेल नहीं बल्कि एक जुनून भी है जिसके किरदार को नायक सरीखा होना चाहिए।

लेकिन उसके बाद फिर क्या हुआ, वह इतिहास है। धोनी ‘लार्जर दैन लाइफ’ सा लगने लगे। कोई ऐसे सक्सेस नहीं रही, जो उनकी लीडरशिप में न मिली। विश्व में एकमात्र ऐसा कैप्टन जिसने भारत को क्रिकेट के हर फॉर्मेट में नम्बर-1 बनाया।

बचपन में पढ़ते थे, चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है। क्रिकेट में हमने देखा है– धोनी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है।

इंडिव्यूजल सक्सेस तो सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर जैसे प्लेयर लेते रहे लेकिन सौरव गांग्रुली ने बतौर टीम जीत दिलाने की परंपरा की शुरूआत की उसे धोनी ने आदत बना दी। अगर धोनी चाहते तो देश की जीत से अधिक अपनी सेंचुरी बना लेते। लेकिन वह उस मूल्यों में पले-बढ़े जहां परिवार का मुखिया सभी का पेट भरने के बाद अपने लिए खाना बचाता है।

महेंद्र सिंह धोनी आईपीएल के एक मैच में जयपुर में खेलते हुए I फोटो: चन्द्रमोहन आलोरिया

धोनी के काल में भारत की हार खबर बनने लगी। पहले जीत खबर, सरप्राइज एलिमेंट होता था। लेकिन मैदान पर सक्सेस के बावजूद उन्हें डाउन मार्केट से अप मार्केट में प्रोमोशन में काफी परेशानी उठानी पड़ी। कभी उन्हें कोको-कोला की मॉडलिंग इसलिए नहीं दी गयी कि उनका अपीयरेंस डाउन मार्केट सा था। बाद में क्रिकेट मैदान पर ही नहीं बल्कि स्पोर्टस ब्रांड में भी इस मुकाम तक पहुंचे जहां आज तक कोई भारतीय खिलाडी नहीं पहुंच सका था। मेसी, रोनैल्डो के स्तर तक पहुंच गए।

लेकिन अपने धोनी टिपिकल मिडिल क्लास बैकग्राउंड से हैं जहाँ पूरी जिंदगी प्रूव करने में ही गुजर जाती है और फिर भी लगता है बहुत कुछ छूट गया। अपनों की अपेक्षा पूरी नहीं होती। उसी अपेक्षा के बीच धोनी ने पूरी तरह से कप्तानी छोड़ दी। तुम्हें किसी को नहीं, खुद को प्रूव करना है। कुछ गलती हुई, थोड़े अरोगेंस हुए। लेकिन यह सब पार्ट ऑफ लाइफ है। यू आर ए हीरो।

धोनी कभी अनजान जोगिन्दर शर्मा से वर्ल्ड कप जीतवाते हैं कभी हार्दिक पंड्या से हारा हुआ मैच। वह ऐसे हीरो रहे जो दूसरो पर विश्वास किया, उन्हें हीरो बनाया। हर कोई मानेगा कि खुद अपने रिकार्ड पर ध्यान देता तो वनडे में कई शतक और हजारों अतिरिक्त रन बना चुका होता। लेकिन धोनी ने देश को जीताने का जिम्मा लिया। कप्तान से हटकर, टीम से बाहर रहकर भी धोनी रोल मॉडल रहेंगे। स्मॉल टाउन, बिग ड्रीम की जब भी मिसाल होगी, धोनी उस चैप्टर के एक नायक बने रहेंगे।

धोनी एक मिडिल क्लास के संघर्ष की अंतहीन कहानी के प्रतिनिधि करने वाले किरदार हैं। इसे किसी एक ब्रैकेट में बांध कर नहीं समझा जा सकता है।

धोनी एक खिलाड़ी नहीं, एक पीढ़ी है, एक सफर है, एक संघर्ष है, एक कहानी है जो कभी समाप्त नहीं हाेती है, लगातार जारी रहती है…।

बेस्ट ऑफ लक, धोनी।

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