धर्म की राजनीति का ध्वजारोहण देखती जनता, अस्पतालों के बाहर लाश में बदल रही है

रविश कुमार लिखते हैं | आप ख़ुद भी देख रहे हैं। हर सवाल का जवाब धर्म में खोजा जा रहा है। सवाल जैसे बड़ा होता है धर्म का मसला आ जाता है। धर्म के मुद्दे को प्राथमिकता मिलती है। स्वास्थ्य के मुद्दे को नहीं।आप यही चाहते थे। धर्म की झूठी प्रतिष्ठा का धारण करना चाहते थे। अधर्मी नेताओं को धर्म का नायक बनाना चाहते थे। उन्होंने आपको आपकी हालत पर छोड़ दिया है। गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है राज्य में हालात भगवान भरोसे है। अस्पतालों का हाल भगवान भरोसे है। जिसे भगवान बनाते रहे वह चुनाव भरोसे हैं। उसका एक ही पैमाना है। चुनाव जीतो

Date:

Share post:

[dropcap]अ[/dropcap]स्पताल और श्मशान में फ़र्क़ मिट गया है। दिल्ली और लखनऊ का फ़र्क़ मिट गया है।अहमदाबाद और मुंबई का फ़र्क मिट गया है। पटना और भोपाल का फ़र्क़ मिट गया है।

अस्पतालों के सारे बिस्तर कोविड के मरीज़ों के लिए रिज़र्व कर दिए गए हैं। कोविड के सारे गंभीर मरीज़ों को अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहा है। कोविड के अलावा दूसरी गंभीर बीमारियों के मरीज़ों को कोई इलाज नहीं मिल पा रहा है। कीमो के मरीज़ों को भी लौटना पड़ा है। अस्पताल के बाहर एंबुलेंस की कतारें हैं। भर्ती होने के लिए मरीज़ घंटों एंबुलेंस में इंतज़ार कर रहे हैं। दम तोड़ दे रहे हैं।

कोविड और स्वास्थ्य सेवा

जिन्हें आई सी यू की ज़रूरत है उन्हें जनरल वार्ड भी नहीं मिल रहा है। जिन्हें जनरल वार्ड की ज़रूरत है उन्हें लौटा दिया जा रहा है। शवों को श्मशान ले जाने के लिए गाड़ियां नहीं मिल रही हैं। सूरत से ख़बर है कि विद्युत शवदाह गृह में इतने शव जले कि उसकी चिमनी पिघल गई। लोहे का प्लेटफार्म गल गया। कई और शहरों से ख़बर है कि श्मशान में लकड़ियां कम पड़ जा रही है। अख़बारों में जगह-जगह से ख़बरें हैं। संवाददाता श्मशान पहुंच कर वहां आने वाले शवों की गिनती कर रहे हैं क्योंकि सरकार के आंकड़ों और श्मशान के आंकड़ों में अंतर है। सूरत के अलावा भोपाल और लखनऊ से भी इसी तरह की खबरें आ रही हैं। अंतिम संस्कार के लिए टोकन बंट रहा है।

एबुंलेंस आने में वक्त लग रहा है। एंबुलेंस के आने में कई घंटे लग रहे हैं। लखनऊ के इतिहासकार और पद्म श्री योगेश प्रवीण के परिजन एंबुलेंस का इंतज़ार करते रह गए। कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने चिकित्सा अधिकारी को फोन किया। तब भी एंबुलेंस का इंतज़ाम नहीं हो सका। ब्रजेश पाठक ने पत्र लिखा है कि हम लोगों का इलाज नहीं करा पा रहे हैं। यही हाल सैंपल लेने का है।कोविड के मरीज़ के फोन करने के दो दो दिन तक सैम्पल लेने कोई नहीं आ रहा है। सैंपल लेने के बाद रिपोर्ट आने में देरी हो रही है।

सरकार के पास एक साल का वक्त था। अपनी कमज़ोरियों को दूर करने का। उसे पता था कि कोविड की लहर फिर लौटेगी लेकिन उसे प्रोपेगैंडा में मज़ा आता है। दुनिया में नाम कमाने की बीमारी हो गई है। दुनिया हंस रही है। चार महीने के भीतर हम डाक्टरों और हेल्थ वर्कर को भूल गए। उन्हें न तो समय से सैलरी मिली और न प्रोत्साहन राशि। जिन्हें कोविड योद्धा कहा गया वो बेचारा सिस्टम का मारा-मारा फिरने लगा। न तो कहीं डाक्टरों की बहाली हुई और न नर्स की।

जो दिखाने के लिए पिछले साल कोविड सेंटर बने थे सब देखते देखते गायब हो गए। आपको याद होगा। साधारण बिस्तोरों को लगाकर अस्पताल बताया जाता था। आप मान लेते थे कि अस्पताल बन गया है। उन बिस्तरों में न आक्सीजन की पाइप लाइन है न किसी और चीज़ की। मगर फोटो खींच गई। नेताजी ने राउंड मार लिया और जनता को बता दिया गया कि अस्पताल बन गया है। क्या आप जानते हैं पिछले साल जुलाई में दिल्ली में सरदार पटेल कोविड सेंटर बना था। दस हज़ार बिस्तरों वाला। एक तो वह अस्पताल नहीं था। क्वारिंटिन सेंटर जैसी जगह को अस्पताल की तरह पेश किया गया। अस्पताल होता तो उतने डाक्टर होते। एंबुलेंस होती। वो सब कहां है?

जगह जगह से फोन आ रहे हैं। अस्पताल में भर्ती मरीज़ को ये दवा चाहिए वो दवा चाहिए। इस बात का कोई प्रचार नहीं है कि संक्रमण के लक्षण आने के पहले दिन से लेकर पांचवे दिन तक क्या करना है। किस तरह खुद पर निगरानी रखनी है। कौन सी दवा लेनी है जिससे हालात न बिगड़े। इतना तो डाक्टर समझ ही गए होंगे कि संक्रमण के लक्षण आने के कितने दिन बाद मरीज़ की हालत तेज़ी से बिगड़ती है। उससे ठीक पहले क्या किया जाना चाहिए। क्या आपने ऐसा कोई प्रचार देखा है जिससे लोग सतर्क हो जाए। स्थिति को बिगड़ने से रोका जाए और अस्पतालों पर बोझ न बढ़े।

हमने एक मुल्क के तौर पर अच्छा खासा वक्त गंवा दिया है। स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत नहीं किया। जनवरी, फरवरी और मार्च के महीने में टीकाकरण शुरू हो सकता था लेकिन तरह तरह के अभियानों के नाम पर इसे लटका कर रखा गया और निर्यात का इस्तमाल अपनी छवि चमकाने में किया जाने लगा। और जब दूसरी कंपनियों के टीका अनुमति मांग रहे थे तब ध्यान नहीं दिया गया। जब हालात बिगड़ गए तो आपात स्थिति में अनुमति दी गई। अगर पहले दी गई होती तो आज टीके को लेकर दूसरे हालात होते। ख़ैर।

आप ख़ुद भी देख रहे हैं। हर सवाल का जवाब धर्म में खोजा जा रहा है। सवाल जैसे बड़ा होता है धर्म का मसला आ जाता है। धर्म के मुद्दे को प्राथमिकता मिलती है। स्वास्थ्य के मुद्दे को नहीं।आप यही चाहते थे। धर्म की झूठी प्रतिष्ठा का धारण करना चाहते थे। अधर्मी नेताओं को धर्म का नायक बनाना चाहते थे। उन्होंने आपको आपकी हालत पर छोड़ दिया है। गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है राज्य में हालात भगवान भरोसे है। अस्पतालों का हाल भगवान भरोसे है। जिसे भगवान बनाते रहे वह चुनाव भरोसे हैं। उसका एक ही पैमाना है। चुनाव जीतो।

आम जनता लाचार है। उसकी संवेदना शून्य हो गई है। उसे समझ नहीं आ रहा है कि उसके साथ क्या हो रहा है। वो बस अपनों को लेकर अस्पताल जा रही है, लाश लेकर श्मशान जा रही है। जनता ने जनता होने का धर्म छोड़ दिया है। सरकार ने सरकार होने का धर्म छोड़ दिया है। मूर्ति बन जाती है। स्टेडियम बन जाता है। अस्पताल नहीं बनता है। आदमी अस्पताल के बाहर मर जाता है।

इस बात का कोई मतलब नहीं है कि गृहमंत्री चुनाव प्रचार में हैं। मास्क तक नहीं लगाते। इस बात का कोई मतलब नहीं है कि प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार में हैं। मास्क लगाते हैं। एक ही बात का मतलब है कि क्या आप वाकई मानते हैं कि मरीज़ों की जान बचाने का इंतज़ाम सही से किया गया है? मेरे पास एक जवाब है। आप गोदी मीडिया देखते रहिए। अपने सत्यानाश का ध्वजारोहण देखना चाहिए।

spot_img

Related articles

बिहार में मोहम्मद अतहर हुसैन की मॉब लिंचिंग और नीतीश कुमार

बिहार के नालंदा में 50 वर्षीय कपड़ा विक्रेता मोहम्मद अतहर हुसैन की बर्बर तरीके से आठ हिंदू आतंकवादियों...

৬ ডিসেম্বর, আবেগ আর হিকমাহ: মুর্শিদাবাদের নতুন মসজিদকে ঘিরে বড় প্রশ্ন

৬ ডিসেম্বর এমন একটি দিন যা প্রতিটি মুসলিমের হৃদয়ে গভীরভাবে খোদাই হয়ে আছে, বিশেষ করে ভারতের মুসলমানদের হৃদয়ে। ১৯৯২...

The Cost of Piety: Murshidabad’s Quran Recital and the Question of Intention

A planned mass Quran recitation in Murshidabad, expected to draw nearly one lakh participants, has triggered debate over its underlying niyyat. Supporters frame it as devotion, while critics question the timing, intention, and scale. The event’s purpose, more than its size, has become the real flashpoint.

New Masjid in Murshidabad: Qur’anic Caution for a Community Still Healing from Babri

A new mosque project in Murshidabad has triggered discussion over intention and politics, especially on December 6. Qur’an 9:108 and the Masjid Dhirar lesson stress sincerity as the foundation of any masjid. With Babri’s memory alive, the community urges caution and taqwa.