तेरी जीत से ज्यादा हमारी हार के चर्चे हैं
लोकसभा चुनाव के दौरान जब विरोधी विनोद सिंह के काम और ईमानदारी पर सवाल नहीं कर सकते थे तो विनोद सिंह के बारे में तिलक न लगाना तो चुंदरी ठीक से नहीं रखना और माले को मुसलमानों की पार्टी बता कर अपने लिए वोट मांगा। वहीं लाल झंडे का डर भी दिखाया। हालांकि बिहार से माले के दो सदस्य, सांसद चुने गए और इस बार आठ कॉमरेड पूरे देश से संसद पहुंचे रहें हैं
गिरिडीह: लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद, वैसे तो ये बात कांग्रेस पार्टी के साथ भी हो रही जिसे, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से कम सीटें मिली पर कांग्रेस और राहुल गांधी की चर्चा बीजेपी से ज्यादा हो रही है। यही हाल कोडरमा सीट के परिणाम के बाद, भाजपा के जीते हुए कैंडिडेट से ज्यादा विनोद सिंह, जो चुनाव हार गए, के बारे में चर्चा हो रही।
सीपीआईएमएल के विनोद सिंह को 414643 मत मिले, और वो अन्नपूर्णा देवी से हार गए। राजनीतिज्ञ विश्लेषक इसे एक सम्मानजनक हार मान रहें हैं, क्योंकि दूसरे स्थान पर रहते हुए कोडरमा लोकसभा चुनाव में कभी किसी उम्मीदवार ने 4 लाख का आंकड़ा नहीं छुआ। हालांकि कुछ एक बार तीस प्रतिशत से ज्यादा मत दूसरे नंबर पे रहने वाले उम्मीदवार को मिले हैं।
पूर्व विधायक महेंद्र सिंह के बेटे, विनोद सिंह ने अपनी पहचान काम के वजह से पूरे झारखंड और उसके बाहर बनाया है, विनोद सिंह को जानने वाले लोग उनके हार और खास कर बड़े अंतर को समझ नहीं पा रहें।
क्यों हार हुई इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी की
तीन बार के बगोदर से विधायक विनोद सिंह के बारे में लोग जानते हैं कि वो जनता से झूठे वादे कर, जाति-धर्म या पैसे दे कर वोट मांगने की राजनीति नहीं करते हैं। बल्कि माले विधायक की पहचान काम करने वाले प्रतिनिधि की रही है और इसलिए वो झारखंड विधान सभा के उत्कृष्ट विधायक भी बने।
लोकसभा चुनाव के दौरान विरोधी जब विनोद सिंह के काम और ईमानदारी पर सवाल नहीं कर सकते थे तो विनोद सिंह के बारे में तिलक न लगाना तो चुंदरी ठीक से नहीं रखना और माले को मुसलमानों की पार्टी बता कर अपने लिए वोट मांगा। वहीं लाल झंडे का डर भी दिखाया। हालांकि बिहार से माले के दो सदस्य, सांसद चुने गए और इस बार पूरे आठ सांसद कम्युनिस्ट पार्टियों से पूरे देश से संसद पहुंचे हैं।
राहुल या प्रियंका गांधी के किसी प्रोग्राम का नहीं होना
झारखंड में लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए दोनों राहुल और प्रियंका गांधी आए थे, पर कोडरमा लोकसभा में दोनों में से किसी एक नेता का इंडिया गठबंधन द्वारा कार्यक्र्म नहीं लेना, विनोद सिंह और कुछ हद तक कल्पना सोरेन, जो गाण्डेय से उपचुनाव लड़ रहीं थीं को महंगा पड़ा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यहाँ चुनाव प्रचार के बाद और खासकर उनका ये कहना कि मुझे वोट दें, मैं आपका प्रधानमंत्री भी हूँ और सांसद भी, के बाद इंडिया से किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता का प्रचार में आना बहुत जरूरी हो गया था।
कांग्रेस पार्टी के मनीफेस्टो की चर्चा देश भर में हो रही थी और राहुल या प्रियंका के आने से कोडरमा-गिरिडीह इलाके में भी इसका सीधा लाभ विनोद सिंह, मथुरा महतो और कल्पना सोरेन को मिलता जिनके जीत की मार्जिन और बढ़ सकती थी।
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी जो अब 74 वर्ष के हो गए हैं और जिनको अपने चुनाव में इस बार संघर्ष करना पड़ा जीतने के लिए, उनपे भरोसा कर कोडरमा की जनता ने कितना सही फैसला लिया, ये भी देखने वाली बात होगी।
वहीं देश के सबसे पिछड़े इलाके में शुमार, कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में आने वाले पाँच सालों में कितना काम होता है और यहाँ के सवाल संसद में कितना उठता है, उसपे भी नज़र रहेगी।