विनेश फोगाट जीत तो अगस्त 6 को ही गई थीं जब दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक की दहलीज पर खड़ी थीं और उनके साथ कई रातें जंतर-मंतर पर बिताने वाली साक्षी मलिक हिन्दी में कमेंट्री कर रही थीं।
यह एक ऐसा क्षण था जो न केवल खेल प्रशंसकों बल्कि अदम्य मानवीय इच्छाशक्ति में विश्वास करने वाले किसी भी व्यक्ति की स्मृति में अंकित रहेगा। लेकिन, इससे एक बार फिर जंतर-मंतर की वह तस्वीरें ताजा हो गईं जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला एथलीट सत्तारूढ़ दल के बाहुबली सांसद ब्रजभूषण पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रही थीं और सांसद के खिलाफ एक साधारण एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी संघर्ष कर रही थीं।
इन लड़कियों को बस यही आस थी कि प्रधानमंत्री उनकी बात सुनेंगे। जंतर-मंतर, जहाँ वे न्याय के लिए खड़ी थीं, मोदी के सपनों के नए संसद भवन से कुछ ही किलोमीटर दूर था। ये लड़कियाँ करीब चालीस दिनों तक ठंड और खुली हवा में वहीं बैठी रहीं। लेकिन, उनकी चीख ‘बेटी बचाओ’ का उद्घोष करने वाले प्रधानमंत्री तक नहीं पहुँची। जैसे मणिपुर की महिलाओं की नहीं पहुँची।
ये लड़कियाँ नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान मोदी से मिलने वहाँ गई थीं। लेकिन, उन्हें सचमुच बाहर निकाल दिया गया। यह दृश्य कल पूरे दिन सोशल मीडिया पर छाया रहा। मोदी ने उन्हें तत्कालीन खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मिलने की सलाह दी। ठाकुर से मुलाकात हुई। लेकिन, समाधान नहीं निकला।
मंथरा, कैकई, खोटा सिक्का, राजनीति की शिकार, विरोध दर्ज कराना है तो पैसा वापस करो, खेल कोटे से मिली नौकरियाँ छोड़ो वगैरह-वगैरह! कुल मिलाकर, असली चुनौतियाँ सत्ताधारी दल और उसकी ट्रोल आर्मी इन खिलाड़ियों को दे रहे थे और उनके स्वाभिमान पर हर दिन नया हमला कर रहे थे, क्यों? ऐसे बीजेपी सांसद के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जिसके खिलाफ पहले से ही आपराधिक रिकॉर्ड है।
एथलीट अपने पदक गंगा में बहाने के लिए हरिद्वार गए। लेकिन, किसान आंदोलन के नेता नरेश टिकैत आए और उन्होंने सरकार से चर्चा करने की बात कहकर पहलवानों को मेडल न बहाने से रोक दिया। यौन शोषण के खिलाफ न्याय के लिए सड़कों पर आँसू बहाते भारत के विश्व-प्रसिद्ध खिलाड़ियों को पुलिस द्वारा घसीटे जाने के दृश्य दुनिया ने देखें। देश के जाने-माने खिलाड़ियों के साथ ऐसा व्यवहार करके हम कैसे विश्व गुरु बनने जा रहे हैं, यह तो मोदी ही बता सकते हैं। लेकिन, एक समय के बाद महिला पहलवानों को आंदोलन वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। पहलवानों की कानूनी लड़ाई अभी भी जारी है। इधर, बृजभूषण सिंह की जगह उनके बेटे कैसरगंज सीट से सांसद बन गए। कुश्ती संघ की गद्दी पर बृजभूषण के समर्थक बैठ गए।
फिर भी इन सब में यह विनेश का अथक लक्ष्य-निर्धारण था जो सामने आया। एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं विनेश को लगातार चोटों से जूझना पड़ा। 2016 ओलंपिक में एक मैच के दौरान उनके दाहिने घुटने में चोट लग गई थी। चोट किसी भी खिलाड़ी के लिए बहुत बड़ा झटका होती है। विनेश को सर्जरी करानी पड़ी। फिर 2021 में कोहनी की सर्जरी। बाद में बाएं घुटने का भी ऑपरेशन करना पड़ा।
इस हाल में इन खिलाड़ियों की यह कहते हुए आलोचना की गई कि इनका करियर खत्म हो गया है, लिहाजा ये पहलवान राजनीति में आने की कोशिश कर रही हैं। ऐसा समय किसी पहलवान के लिए बहुत आशाजनक समय नहीं माना जा सकता था, पर अथक परिश्रम और किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति के सामने झुके बिना लड़ने के जज्बे ने विनेश को इस मुकाम तक पहुँचाया कि देश का एक बड़ा हिस्सा आज उन पर गर्व कर रहा है।
भारतीय खिलाड़ियों को मैदान के अंदर और बाहर कई स्तरों पर संघर्ष करना पड़ता है। क्रिकेट जैसे ग्लैमर और पैसे वाले खेल को छोड़कर अधिकतर खिलाड़ियों को वित्तीय बाधाओं, महासंघ और टीम में राजनीति, शारीरिक चोटें, मानसिक रूप से कठिन क्षण, बढ़ती उम्र, खेल की बदलती तकनीक, फिटनेस जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नए खिलाड़ी वैश्विक स्तर पर सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण के साथ आ रहे हैं।
ऐसे में कुश्ती फेडरेशन के खिलाफ खुलकर खड़ा होना करियर खत्म करने वाला हो सकता है। ये जानते हुए भी विनेश, साक्षी और बजरंग पुनिया सत्ता के शीर्ष के खिलाफ खड़े हो गए। इसके पीछे सोच यह थी कि जो गलत है उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई गई तो आने वाली जनरेशन को यह सब झेलना पड़ेगा। मन में दबा हुआ गुस्सा था। आंदोलन ने इसे सामने ला दिया। पहलवानों का आंदोलन दुर्व्यवहार करने वालों के लिए सबक हो सकता है, न केवल अन्य खिलाडियों के लिए जिन्होंने समान उत्पीड़न सहा है, बल्कि व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक महिला के लिए भी।
विनेश जुझारू पहलवान हैं। एक जापानी पहलवान को पेरिस ओलंपिक हराना कैसे संभव था जो 14 वर्षों में 82 मैचों में अपराजित थी, 4 बार का विश्व चैंपियन थी और जिसने टोक्यो ओलंपिक में एक भी अंक नहीं खोया था। लेकिन, अगस्त 6 विनेश का दिन था जो अखाड़े के बाहर लगातार हारते हुए अंतत: अखाड़े के भीतर एक के बाद एक जीतती जा रही थीं।
परिणाम जो रहा, पर अगस्त 6 का दिन, हर भारतीय को हमेशा, विनेश के जीत और संघर्षों के लिए याद रखना चाहिए।