झारखंडलोकप्रिय

रघुबर सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में झारखंड के पारा शिक्षक, एक महीने से बेमियादी हड़ताल पर 70 हजार शिक्षक

रांची: बीते सोमवार को देवघर के पारा शिक्षक उज्ज्वल राय ने आखिरी सांस ली। 15 नवंबर को झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान उज्ज्वल चोटिल हो गए थे। इससे ठीक एक दिन पहले दुमका के पारा शिक्षक कंचन कुमार दास की तब ठंड लगने से मौत हो गई जब वो मंत्री लुईस मरांडी के घर के बाहर धरना दे रहे थे। स्थापना दिवस पर प्रदर्शन के दौरान घायल हुए हजारीबाग के पारा शिक्षक सूर्यदेव ठाकुर भी जिंदगी की जंग हार गए और 15 दिसंबर को उनकी मौत हो गई। कंचन कुमार दास पारा शिक्षकों के ‘घेरा डालो डेरा डालो’ आंदोलन का हिस्सा थे जिसके तहत ये शिक्षक, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के आवास के बाहर धरना दे रहे हैं ताकि सरकार पर दबाव बन सके।

15 से 17 दिसंबर के बीच झारखंड में तीन पारा शिक्षकों की मौत हुई है। पिछले एक महीने में नौ पारा शिक्षकों की जान गई है। इनमें दो महिला भी हैं। एक, रामगढ़ की जीनत खातून और दूसरी छतरा की प्रियंका कुमारी। यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि रांची में 15 नवंबर को लाठीचार्ज की घटना के बाद से शिवलाल सोरेन नाम के एक पारा शिक्षक अभी तक लापता हैं।

पारा शिक्षकों का आंदोलन क्या है ?

पारा शिक्षकों का मौजूदा आंदोलन करीब एक महीने पहले झारखंड के स्थापना दिवस के मौके पर 15 नवंबर से शुरू हुआ था स्थापना दिवस के जश्न के दौरान रांची के मोराबादी मैदान में भारी संख्या में पारा शिक्षक पहुंचे थे। ये लोग नौकरी स्थायी करने की मांग कर रहे थे जैसा कि छत्तीसगढ़ में हो चुका है। झारखंड में करीब 70 हजार की तादाद में पारा शिक्षक हैं जो अस्थायी तौर पर स्कूलों में पढ़ा रहे हैं।

पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा ने बताया कि, पारा शिक्षकों के सहायक शिक्षक के तौर पर स्थायी नौकरी मिलने की उम्मीदें तब बढ़ गईं जब झारखंड सरकार के छह सचिवों ने संयुक्त रूप से इसकी मंजूरी दी। हालांकि अभी ये मामला मुख्यमंत्री रघुबर दास के पास लंबित है।

पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा के नारायण महतो ने ई-न्यूजरूम को बताया कि ‘अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव डालने के मकसद से हजारों पारा शिक्षकों ने 15 नबंवरको झारखंड के स्थापना दिवस पर रांची पहुंचने की योजना बनाई थी।’ लेकिन उस दिन हुई पुलिसिया कार्रवाई और लाठीचार्ज के बाद, पारा शिक्षकों बेमियादी हड़ताल पर चले गए।

पारा शिक्षकों के आंदोलन पर सरकार की चुप्पी

नारायण महतो के मुताबिक, 15 नवंबर को 297 पारा शिक्षकों को गिरफ्तार किया गया और उसके बाद जो आंदोलन शुरू हुआ उसमें पारा शिक्षको की मौत का सिलसिला शुरू हो गया। लेकिन एक महीने बाद भी रघुबर दास सरकार ने मौजूदा हालात पर कोई ध्यान नहीं दिया है।

जिन और पारा शिक्षकों की मौत हुई है उनमें राजकुमार पासवान (हजारीबाग), उदय शंकर पांडेय (गढ़वा), जगदेव यादव (चतरा) और रघुनाथ हेम्ब्रम (बोकारो) के नाम शामिल हैं।

पारा शिक्षक चाहते क्या हैं ?

नौकरी को स्थायी करना और वेतन में इजाफा, इन पारा शिक्षकों की मुख्य मांग है। फिलहाल अप्रशिक्षित पारा शिक्षक (प्राथमिक) को महज 7800 रुपए महीने मिलते हैं वहीं प्रशिक्षित को 8200 रुपए मेहनताना मिलता है। मध्य विद्यालयों में प्रशिक्षित पारा शिक्षकों को 8800 रुपए मिलते हैं और जिन लोगों ने टीईटी परीक्षा पास की है वो 9200 रुपए पाते हैं।

लंबे समय तक सेवा देने के बाद भी इन पारा शिक्षकों की तनख्वाह में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है। नारायण महतो को ही लें, पिछले 15 साल से पारा शिक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं लेकिन बहुत मामूली मेहनताना पा रहे हैं।

नारायण महतो कहते हैं कि ’70 हजार प्रदर्शनकारी पार शिक्षकों में से अधिकतर के पास 10 साल से ज्यादा का अनुभव है। हमने अपना बहुमूल्य समय झारखंड के शिक्षा विभाग को दिया है। लेकिन दुख की बात है कि आज की तारीख में हमारे पास स्थायी नौकरी नहीं है और तनख्वाह के नाम पर भी मामूली पैसे ही मिलते हैं। अगर मान लें कि हम में से किसी की मौत हो जाती है तो हमारे परिजनों को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी मिलने का कोई प्रावधान भी नहीं है।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा समेत कई सांसदों और विधायकों ने सार्वजनिक तौर पर माना है कि पारा शिक्षकों की मांग जायज है लेकिन ये जनप्रतिनिधि भी प्रदर्शनकारी पारा शिक्षकों और सरकार के बीच समझौता करा पाने में नाकाम रहे हैं।

पारा शिक्षकों के साथ खड़ा है विपक्ष

झारखंड की तमाम विपक्षी पार्टियों ने पारा शिक्षकों के आंदोलन का समर्थन किया है। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता विपक्ष हेमंत सोरेन ने 17 दिसंबर को ट्वीट कर कहा कि तीन पारा शिक्षकों की मौत के बाद अब रघुबर दास सरकार में नैतिकता नाम की कोई चीज नहीं बची है इसीलिए सरकार गहरी नींद में सो रही है।

पारा शिक्षकों को लेकर सरकार की नीतियों के खिलाफ भाकपा-माले ने कई बार प्रदर्शन किया है। माले नेता विनोद सिंह कहते हैं कि ‘सभी प्रशिक्षित पारा शिक्षकों को तत्काल शिक्षक के तौर पर सरकारी नौकरी दी जानी चाहिए। जहां तक अप्रशिक्षित शिक्षकों की बात है तो उन्हें गैर-शिक्षण कार्य में स्थानी नौकरी मिलनी चाहिए।’

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बेहतरीन सुधार लाने वाली आम आदमी पार्टी का मानना है कि झारखंड की बीजेपी सरकार की मंशा शिक्षा में सुधार लाने की नहीं रही है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि झारखंड सरकार के पास गिरती हुई शिक्षा-व्यवस्था में सुधार करने की न तो कोई नीति है और न ही ये सरकार शिक्षकों का सम्मान करती है। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि झारखंड सरकार लोककल्याण के मकसद को पूरा करने में नाकाम रही है।

आम आदमी पार्टी के झारखंड संयोजक जयशंकर चौधरी ने कहा कि ‘रघुबर दास सरकार शिक्षा को प्राइवेट हाथों में सौंपना चाहती है। सांसदों-विधायकों के विरोध के बावजूद सरकार ने सूबे के कई सरकारी स्कूलों को बंद भी कर दिया है।’

अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार का हवाला देते हुए जयशंकर चौधरी कहते हैं कि वहां सरकार ने कई शिक्षकों को स्थायी नौकरी दी है और उनकी सैलरी में भी अच्छी-खासी वृद्धि की है। उनका कहना है कि ‘दिल्ली में शिक्षकों का भरपूर सम्मान होता है, उन पर न तो लाठीचार्ज होता है और न ही उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।

 

शाहनवाज़ अख़्तर की अंग्रेजी की मूल रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद संदीप कुमार ने eNewsroom के पाठकों के लिए किया है।

Shahnawaz Akhtar

is Founder of eNewsroom. He brings over two decades of journalism experience, having worked with The Telegraph, IANS, DNA, and China Daily. His bylines have also appeared in Al Jazeera, Scroll, BOOM Live, and Rediff, among others. The Managing Editor of eNewsroom has distinct profiles of working from four Indian states- Jharkhand, Madhya Pradesh, Rajasthan and Bengal, as well as from China. He loves doing human interest, political and environment related stories.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button