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भतीजे के सामने चाचा और बाग़ी, क्या कांग्रेस बचा पाएगी भोपाल उत्तर सीट?

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव मुसलमान मतदाता कांग्रेस

राहुल गांधी (सादी टी-शर्ट), कांग्रेस प्रत्याशी आतिफ़ आरिफ़ अक़ील लिए भोपाल में रोड शो करते हुए

भोपाल: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुसलमान मतदाताओं वैसे तो पार्टियों के द्वारा अप्रसंगिक कर दिये जा चूके हैं, और सिर्फ दो विधानसभा- भोपाल उत्तर और मध्य हैं जहाँ से कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा में सीधी लड़ाई ज्यादातर सीटों पे होती है और इस बार भी ऐसे ही कुछ होता दिख रहा।

पर क्या हाल है कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों का? राजधानी भोपाल में सोमवार को राहुल गांधी ने रोड शो किया. इस रोड शो में उनके साथ उत्तर भोपाल के कांग्रेस प्रत्शायी आतिफ़ आरिफ़ अक़ील भी मौजूद थे. यह रोड शो की शुरुआत ही उत्तर भोपाल के इमामी गेट इलाके से की गई थी.

लेकिन इस रोड शो में मौजूद एक बड़ा तबका वो था जो अब तक तो कांग्रेस को वोट देता आया है लेकिन इस बार वह पशोपेश में है. कांग्रेस के मौजूदा विधायक आरिफ अक़ील पिछले कई बरसों से यहां विधायक रहे है लेकिन पहली बार उन्होंने बीमारी की वजह से अपने छोटे बेटे आतिफ़ को लड़ने के लिए आगे किया है.

आतिफ़ के ख़िलाफ उनके चाचा आमिर अक़ील ख़ुद मैदान में उतर आये है. इसके अलावा कांग्रेस से एक अन्य बाग़ी नासिर इस्लाम भी मैदान में है. वही आम आदमी पार्टी ने मोहम्मद सउद को मैदान में उतार दिया है. जो पूर्व में पार्षद रहे है. वही भाजपा ने पूर्व महापौर और स्थानीय नेता आलोक शर्मा को मैदान में उतारा है.

इस क्षेत्र की 36 मुसलमान आबादी इसी सोच में है कि कहीं उनका वोट न बंट जाये जिसकी संभावना सबसे ज्यादा इस बार है.

तनवीर अहमद इसी क्षेत्र के मतदाता है और उनका मानना है कि यही सीट है जिसे मुसलमान अपनी सीट बता सकते है.

उन्होंने कहा,“यह एक मात्र सीट है जिसे मुसलमान अपना कहते है लेकिन मुझे इस बार पता नहीं क्या होगा. कोशिश यही होनी चाहिये कि इस सीट पर वोट न बंटे. “

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव और सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी का हाल

प्रदेश में मुसलमान वोटरों को मालूम है कि प्रमुख दल जैसे कांग्रेस और भाजपा  लगातार उनसे दूरी बनाती जा रही है. मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने सिर्फ दो मुसलमान प्रत्याशियों को लड़ाने का फैसला किया है- उत्तर और मध्य भोपाल से. लेकिन भाजपा ने 230 सीटों में से किसी को भी नहीं उतारा है.

आमिर अक़ील जो कि आरिफ अक़ील के छोटे भाई है, वो कहते है, “अगर हक़ न मिलें तो क्या किया जाये उसे छीन लिया जाना चाहिए. मैंने हमेशा उनके(आरिफ अक़ील) लिये काम किया लेकिन उसके बदले में उन्होंने अपने बेटे को उतार दिया.”

वहीं कांग्रेस से बगावत कर लड़ रहे एक अन्य प्रत्याशी नासिर इस्लाम ने कहा, “जब आरिफ अक़ील खुद चुनाव नहीं लड़ रहे थे तो पार्टी को दूसरे कार्यकर्ता को उतारना था. मैंने क्षेत्र में काफी काम किया है. लेकिन मुझे नजरअंदाज किया गया. मेरे चाहने वाले मुझे लड़ा रहे है. वो चाहते थे कि मुझे लड़ना चाहिये.”

यही बात आमिर अक़ील भी कह रहे है कि उन्हें लड़ाने वाले उनके चाहने वाले लोग है जो चाहते है कि वो चुनाव लड़े.

वही तीसरे प्रत्याशी आम आदमी पार्टी के मोहम्मद सउद भी जी जान से प्रचार करने में लगे है. उन्होंने कहा, “मुझे हर तबके से अच्छा ख़ासा समर्थन मिल रहा है और जीत मेरी ही होगी.”

इसके अलावा भी कई कुछ अन्य मुस्लिम प्रत्याशी निर्दलीय के तौर पर अपनी किस्मत आजमा रहे है. जो शायद ज्यादा असर न डाल पाये. लेकिन कांग्रेस का कम होता हर वोट भाजपा प्रत्याशी के लिये फायदेमंद साबित होगा.

वही भाजपा के प्रत्याशी आलोक शर्मा मुसलमानों से कहते रहे है कि वो भले वोट उन्हें न दें लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी को भी न दें. उनकी कोशिश यही है कि मुसलमानों के वोट बंट जायें. मुसलमानों के वोट बंट जाना मतलब उनकी जीत आसान हो जाना है.

इससे पहले आरिफ अक़ील एक बार आलोक शर्मा को चुनाव में हरा चुकें है. पिछले दो चुनाव में 2018 और 2013 में भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिये मुसलमान प्रत्याशी को चुनाव में उतारा था. 2013 में पूर्व मंत्री आरिफ बेग और फिर 2018 में पूर्व मंत्री रसूल अहमद सिद्दीकी की बेटी फातिमा रसूल को लेकिन उन्हें हराने में कामयाब नहीं रहे थे.

यह पहला मौका है जब भाजपा को जीत काफी करीब नज़र आ रही है. वही मुसलमानों वोटों का बिखराव उनके लिये जीत को और आसान बना सकता है.

इसी वजह से ज्यादातर मुसलमान यह जानने की कोशिश में है कि आखिर उन्हें किस प्रत्याशी को वोट देना चाहिए जो उनके वोटों में बिखराव न करें.

आरिफ मसूद अपने चुनाव प्रचार में

प्रदेश में इससे लगी दूसरी सीट पर कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक आरिफ मसूद को फिर से उतारा है. आरिफ मसूद के सामने भाजपा के ध्रुवनारायण सिंह है जिन्हें लोग शहला मसूद कांड में उनका नाम आने की वजह से जानते है. यह सीट पिछली बार भाजपा के सुरेंद्रनाथ सिंह के पास थी.

आरिफ मसूद ने बताया, “मेरे वोटरों ने मेरा काम देखा हैं और वो उसे देखते हुए ही वोट करेंगे. मुझे किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं है. मेरा चुनाव बहुत आसान है.”

यहां पर भी काटे की टक्कर देखने को मिल रही है. इस सीट पर लगभग 45 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता है. हालांकि क्षेत्र के लोग मानते है कि आरिफ मसूद ने कोविड के दौरान हर किसी की काफी मदद की है. ध्रुवनारायण सिंह पहले इस क्षेत्र से विधायक रहे चुके है लेकिन इस बार वो भी हर तबके में पहुंच कर जीतने के लिए जी जान लगा रहे है.

जब 17 तारीख को पूरे प्रदेश की 230 सीटों पर वोटिंग होगी तो इन दो सीटों पर भी लोगों की नजर होगी कि आख़िर यहां से कौन जीत सकता है.

मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष के.के मिश्रा का कहना है कि प्रदेश में कांग्रेस बहुत आसानी से सरकार बनाने जा रही है और किसी भी सीट पर दूसरे प्रत्याशियों की वजह से उसे कोई दिक्कत नहीं आने वाली है.

उन्होंने कहा, “चाहे बात उत्तर भोपाल की हो या फिर मध्य भोपाल की दोनों ही सीट पर कांग्रेस के विधायक रहे है और इस बार भी कांग्रेस का प्रत्याशी आसान जीत दर्ज करने जा रहे है. इसलिये यह कहना ग़लत होगा कि उनके लिये कोई मुश्किल होने जा रही है. उन्हें हर वर्ग से समर्थन मिल रहा है.”

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