राँची: जब मैं झारखंड विधानसभा चुनाव की रेपोर्टिंग कर रहा था तो जो खास बात थी वो ये के झारखंड में लोकल मुद्दे पूरे चुनाव में हावी रहे। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तमाम बड़े नेताओं की कोशिश की चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को वोटेर्स के बीच लाये और एक माहौल बनाए वो पूरी तरह से फ़ेल हो गया।
अपने पहले चुनावी रैली से लेकर आखिर तक, भाजपा के राष्ट्रिए अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर से धारा 370 हटाना, सूप्रीम कोर्ट का अयोध्या पे फैसला और फिर नागरिकता कानून में बदलाव को हर बार उठाया। यहाँ तक के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनआरसी के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदशन को लेकर भी ब्यान दिया के प्रदर्शनकरियों को उनके कपड़े से पहचाना जा सकता है। मतलब सीधा चुनाव को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की।
पर ये मुद्दे झारखंड के लोगों के जीवन से जुड़े सवालों- भूख से मौत, गिरती विधि वैवशता, मोब लिंचिंग, बेरोजगारी, आदिवासियों के जमीनों को कॉर्पोरेट को देना जैसे सवालों को झारखंडवासियों के दिलो-दिमाग से नहीं निकाल पाये।
यही वजह रही के पाँच चरणों में चुनाव होना, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के सभी बड़े नेताओ का कार्यक्रम होना, पर फिर भी झारखंड चुनाव परिणाम को अपने हक़ में भाजपा नहीं बादल पायी।
अगर रैलियों की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित, गृहमंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, जेपी नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ सहित पार्टी के तमाम बड़े नेता प्रचार किए, पर भाजपा का आंकड़ा 27 के पार नहीं हो पाया।
वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा बिना किसी स्टार प्रचारक के झारखंड विधानसभा चुनाव में सिंगल लारजेस्ट पार्टी बन गयी।
गिरिडीह की सीट पर जेएमएम के उम्मीदवार सुदिव्य कुमार सोनू को हराने गृहमंत्री खुद आए, पर वो भी भाजपा को जीत नहीं दिला पाये।
भाजपा, जेएमएम के साथ साथ, सीपीआईएमएल के विनोद सिंह के खिलाफ भी राजनाथ सिंह से लेकर आदित्यनाथ सब को मैदान में उतारा पर सीपीआईएमएल को वापस सीट अपने कब्जे में लेने से नहीं रोक पायी। विनोद सिंह ने सीपीआईएमएल के लिए तीसरी बार बागोदर विधानसभा जीता। उतना ही बार उनके पिता महेंद्र सिंह ने ये सीट जीता था।