राँची: झारखंड जनाधिकार महासभा ने आज एक प्रेस वार्ता कर झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को अपने चुनावी मुद्दे याद दिलाये और उनपे तुरंत कारवाई करने की मांग की।
महासभा जो कई जन संगठनो का एक समूह है ने प्रेस वार्ता कर कहा, रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के तहत, झारखंड में जन अधिकारों और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर लगातार हमले हुए, जैसे CNT-SPT में संशोधन की कोशिश, भूमि अधिग्रहण क़ानून में बदलाव, लैंड बैंक नीति, भूख से मौतें, भीड़ द्वारा लोगों की हत्या, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसा, सरकार द्वारा प्रायोजित संप्रदायिकता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमलें, आदिवासियों के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर प्रहार, बढ़ता दमन आदि. वर्तमान सत्तारूढ़ दलों, झामुमो, कांग्रेस और राजद, ने अपने चुनाव अभियान में इनमें से कई मुद्दों को लगातार उठाया था। उनके घोषणापत्रों में भी कई जन मांगें शामिल थीं।
“2019 के विधान सभा चुनाव में लोगों ने स्पष्ट रूप से भाजपा को खारिज किया और स्थानीय मुद्दों और मांगों पर हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले गठबंधन को जनादेश दिया। लेकिन इन दलों द्वारा चुनाव अभियान के अधिकांश मुद्दों और घोषणापत्रों में किए गए वादों पर सरकार ने अभी तक कार्रवाई शुरू नहीं की है। बजट सत्र 28 फ़रवरी से शुरू होने वाला है। झारखंड जनाधिकार महासभा सरकार का ध्यान राज्य के कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों और मांगों पर इस उम्मीद के साथ केन्द्रित करना चाहती है कि सरकार विधान सभा के बजट सत्र में उन पर चर्चा करेगी और कार्रवाई करेगी।”
मालूम हो की, हेमंत सोरेन सरकार के शपथ ग्रहण के दिन ही कैबिनेट ने अपने पहले फैसले में पत्थलगड़ी में शामिल लोगों के ऊपर देशद्रोह मुकदमों को वापस लेने का फैसला लिया था, पर अभी भी मुकदमा हटा नहीं है।
महासभा ने झारखंड के सामाजिक तौर पे प्रभावित कर रहे सभी मामलों को विषयवार अपनी मांग में रखा
CAA, NRC और NPR: CAA, NRC और NPR को रद्द करने पर झारखंड सरकार की चुप्पी बेहद निराशाजनक है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार 1 अप्रैल 2020 से NPR सर्वेक्षण शुरू करने के लिए तैयार है। ऐसी सरकार जो गरीबों और वंचितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है, वो झारखंडियों को NRC और NPR से होने वाले खतरे से बेखबर नहीं रह सकती है। हम मांग करते हैं कि सरकार राज्य में NPR संबंधित सभी गतिविधियों को रोके । साथ ही, सरकार विधानसभा में CAA और NRC के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करे।
महासभा ने ये भी जानकारी दी के वो और अन्य जन संगठन 5 मार्च को राजभवन के समक्ष एक धरना आयोजित कर राज्य सरकार से तुरंत NPR को खारिज करने की माँग रखेंगे।
पत्थलगड़ी: सरकार में गठन के तुरंत बाद, सभी पत्थलगड़ी मामलों को वापस लेने का निर्णय सराहनीय था। लेकिन, घोषणा के दो महीने बाद भी, सभी मामले जस-के-तस हैं। पत्थलगड़ी गाँवों के आदिवासियों में भय और अनिश्चितता का माहौल कायम है, क्योंकि पुलिस और स्थानीय प्रशासन अभी तक इस निर्णय पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा, इन गावों में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन और विद्यालयों में पुलिस कैम्प की स्थापना पर सरकार चुप्पी साधी हुई हैं।
ग्राम सभा और प्राकृतिक संसाधन: दो प्रमुख मांगों, जो पत्थलगड़ी आंदोलन के मूल कारण थे – पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों और पेसा क़ानून को लागू करना – पर भी सरकार चुप है। झामुमो और कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में पेसा कानून के पूर्ण कार्यान्वयन का वादा किया था। पिछली सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून में किया गया संशोधन और लैंड बैंक नीति को आदिवासियों ने स्पष्ट रूप से खारिज किया। सरकार इन दोनों नीतियों को तुरंत निरस्त करे। दोनों घोषणापत्रों में कहा गया है कि सरकार जबरन भूमि अधिग्रहण नहीं करेगी। इसके साथ, कांग्रेस ने अडानी पॉवरप्लांट परियोजना (गोड्डा), ईचा-खरकई बांध (पश्चिम सिंहभूम) और मंडल बांध (पलामू) जैसी परियोजनाओं को रद्द करने का भी वादा किया है। लेकिन सत्ता में आने के बाद दोनों पार्टियाँ व सरकार इस मुद्दे पर चुप है। ऐसी परियोजनाओं का विरोध करने वाले या केवल आदिवासी और दलित होने के कारण हज़ारों लोग विचारधीन कैदी के रूप में सालों से जेल में बंद हैं। हालाँकि झामुमो और कांग्रेस के घोषणापत्र में इस मुद्दे का उल्लेख किया गया हैं, लेकिन सरकार ने अभी तक इस ओर कोई कार्यवाई नहीं की है।
मॉब लिंचिंग: प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक स्वशासन प्रणाली के संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता देने के साथ साथ, सरकार को राज्य में बढ़ती सांप्रदायिकता और भीड़ द्वारा हिंसा को भी रोकने की आवश्यकता है। हमें उम्मीद है कि सरकार माँब लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाएगी, जैसा कि घोषणा पत्र में कहा गया था। साथ ही, सरकार को तुरंत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिंचिंग के विरुद्ध बनाए गए दिशानिर्देशों को तुरंत पूर्ण रूप से लागू करना चाहिए।
भुखमरी और कुपोषण: राज्य में व्यापक भुखमरी और कुपोषण को कम करना सरकार की मुख्य प्राथमिकताओं में होना चाहिए। सरकार को इसके लिए एक पांच-वर्षीय समग्र योजना तैयार करनी चाहिए। इसकी शुरुआत जन वितरण प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं और मातृत्व अधिकारों को सार्वभौमिक करने और इनके अंतर्गत मिलने वाले अधिकारों की वृद्धि के साथ हो सकता है। आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण (ABBA) व्यवस्था के कारण लोगों के अधिकारों के उल्लंघन व परेशानियों का मुद्दा कांग्रेस और झामुमो ने लगातार अपने चुनावी अभियान में उठाया था। लेकिन अब वे बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण को जन वितरण प्रणाली और अन्य कल्याणकारी योजनाओं से हटाने की आवश्यकता पर चुप हैं। कुपोषण को कम करने के लिए, सरकार को तुरंत मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ियों में मिलने वाले अंडों की संख्या बढ़ानी चाहिए। साथ ही, उनके द्वारा नरेगा में मजदूरी दर बढ़ाने के किए गए वादे को पूर्ण करना चाहिए और राज्य में नरेगा को पुनर्जीवित करना चाहिए।
कई अन्य मुद्दे भी हैं जिनपर सरकार को तुरंत कार्यवाई करने की ज़रूरत है। उदहारण के लिए, राज्य की वर्तमान स्थानीयता नीति को रद्द कर के झारखंडियों के हित और मांग अनुरूप नीति बनाने की आवश्यकता है। हमें उम्मीद है कि गठबंधन को हमेशा याद रहेगा कि लोगों ने पिछली भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों, सांप्रदायिक नीतियों और दमन के जवाब में गठबंधन को वोट दिया था। महासभा मांग करती है कि सरकार चर्चित किए गए सभी जन मुद्दों पर स्पष्ट प्रतिबद्धता दिखाए। महासभा आशा करती हैं कि ये प्रतिबद्धता बजट और आगामी विधानसभा सत्र में झलकेगी, महासभा ने कहा।