झारखंड

संडे हो या मंडे, रोज कैसे खाएं झारखंड के बच्चे अंडे, सामाजिक कार्यकर्ताओं का सवाल

झारखंड जनाधिकार महासभा के सामाजिक कार्यकर्ताओं जिनमे ज्यां ड्रेज और योगेंद्र यादव भी शामिल रहे ने बारिश में अंडे लेकर हेमंत सरकार को अंगनबाड़ी में अंडे देने के आदेश का अनुपालन को कहा

रांची: झारखंड की राजधानी में मंगलवार को एक अलग नज़ारा देखने को लोगों को मिला, जब झारखंड जनाधिकार महासभा से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हाथों में बैनर और अंडा लिए बीच शहर खड़े हुए। उनकी मांग थी झारखंड सरकार के उस आदेश को लागू करना जिसमें आंगनबाड़ी में हर दिन एक अंडा देने को बोला गया था।

मंगलवार को, झारखंड जनाधिकार महासभा से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दो विरोध प्रदर्शन किए। वे आगामी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अपनी लड़ाई की घोषणा करने के साथ-साथ सोरेन सरकार को अपने वादों को पूरा करने की याद दिलाने के लिए राजभवन के सामने धरने पर बैठे। बाद में बारिश के बावजूद कार्यकर्ताओं ने अल्बर्ट एक्का चौक पर तख्ती और अंडा भी पकड़ रखा था, जिसमें आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों के लिए अंडा उपलब्ध कराने को तत्काल लागू करने की मांग की गई।

दोनों कार्यक्रमों में राजनीतिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया एवं भारत जोड़ो अभियान से जुड़े योगेंद्र यादव भी शामिल हुए।

शामिल लोगों ने डबल बुलडोज़र भाजपा राज नहीं चाहिए, और हेमंत सरकार, जन वादे निभाओ के नारे भी लगाए।

विभिन्न जिलों से 2000 से अधिक लोग रांची पहुंचे और ‘भाजपा हटाओ, झारखंड बचाओ’ और ‘हेमंत सोरेन सरकार, जन मुद्दों पर वादा निभाओ’ लगाए।

योगेन्द्र यादव ने कहा कि लगातार राज्य में साम्प्रदायिकता फैलाने की कोशिश हो रही है. जनता तो डबल बुलडोज़र भाजपा राज नहीं चाहती है। लेकिन हेमंत सोरेन सरकार को जन मुद्दों पर सच्चाई और प्रतिबद्धता के साथ कार्रवाई कर के जनता के संघर्ष का साथ देना होगा।

लोगों ने आदिवासी-दलित बच्चों में व्यापक कुपोषण के मुद्दे को भी उठाया। एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के 40 फीसद बच्चे कुपोषित हैं।

सोमवती देवी ने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार ने पांच सालों में कई बार घोषणा किया कि मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी में बच्चों को रोज़ अंडे दिए जायेंगे। लेकिन पांच साल गुज़र जाने के बाद भी सरकार बच्चों की थाली में अंडा नहीं दे पाई है।

ज्यां द्रेज़  ने याद दिलाया कि आदिवासी-दलितों के लिए फर्जी मामले और सालों तक जेल में विचाराधीन बन के बंद रहना भी एक बड़ी समस्या है. गठबंधन दलों ने घोषणा पत्र में वादा किया था कि लम्बे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जायेगा।लेकिन इस पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई।

हेमंत सोरेन सरकार झारखंड जनाधिकार महासभा अंडे कुपोषण
हेमंत सोरेन और झारखंड जनाधिकार महासभा के कार्यकर्तागण | साभार: एक्स/हेमंतसोरेनजेएमएम

धरने की शुरुआत में मंथन ने कहा कि 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन दल अपने घोषणा पत्र में अनेक जन मुद्दों पर कार्यवाई का वादा किये थे।  पिछले 5 सालों में राज्य सरकार ने जन अपेक्षा अनुरूप कई काम किये हैं लेकिन अनेक महत्त्वपूर्ण वादे अभी भी अपूर्ण हैं।

बिरसा हेम्ब्रम ने कहा कि पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा राज्य की 22 लाख एकड़ गैरमजरूआ व सामुदायिक ज़मीन को लैंड बैंक में डाल दिया गया था। बिना ग्राम सभा से पूछे, लैंड बैंक से जमीन का आवंटन विभिन्न सरकारी और निजी परियोजनाओं के लिए किया  जा रहा है। झामुमो ने इसे रद्द करने का वादा किया था लेकिन इस पर सरकार चुप्पी साधी हुई है।

जेम्स हेरेंज ने कहा इसी प्रकार भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन, 2017 के तहत निजी व सरकारी परियोजनाओं के लिए बिना ग्राम सभा की सहमति व सामाजिक प्रभाव आकलन के बहुफसलीय भूमि समेत निजी व सामुदायिक भूमि का जबरन अधिग्रहण हो रहा है। पश्चिमी सिंहभूम से आये हेलेन सुंडी ने पूछा कि अपनी चुनी हुई सरकार आदिवासियों का अस्तित्व खत्म होने का इंतजार कर रही है?

अजय एक्का ने कहा कि यह दुःख की बात है कि इस सरकार में भी संसाधनों और स्थानीय व्यवस्था पर पारंपरिक ग्राम सभा के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए पेसा की नियमावली नहीं बन पाई. वन अधिकारों पर संघर्ष करने वाले जॉर्ज मनिपल्ली ने कहा कि राज्य सरकार वन पट्टों के आवंटन के बड़े-बड़े दावे कर रही है लेकिन राज्य के हजारों निजी व सामुदायिक दावे लंबित हैं। सरकार ने घोषणा की थी कि 9 अगस्त 2024 को हर ज़िले में 100-100 सामुदायिक वन पट्टों का वितरण किया जायेगा। लेकिन आज तक एक भी नहीं हुआ है। लातेहार से आए प्रणेश राणा ने कहा कि वन विभाग सदियों से खेती कर रहे ग्रामीणों पर फर्जी मामले दर्ज कर रही है।

आदिवासी समुदायों की  मूल समस्याओं के साथ-साथ राज्य में दलित समुदाय भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। सफाई कर्मचारी आंदोलन के धरम वाल्मीकि ने बताया कि महज़ जाति प्रमाण पत्र और सीवर सेफ्टी टैंक में हो रही मौतों, के मुख्य संघर्ष है अनेक दलित युवा प्रमाण पत्र न बनने के कारण पढाई व रोजगार से वंचित हो रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार ने भूमिहीन परिवारों के जाति प्रमाण पत्र के लिए एक प्रक्रिया बनाकर रखी है, लेकिन वो इतनी जटिल है कि प्रमाण पत्र मिलना ही बहुत मुश्किल है।

देर शाम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने महासभा के लोगों से मुलाकात की और वादा किया कि उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करेगी सरकार।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button